गुजरात की लोकसंस्कृति से जुड़ाव, फिटनेस संवार रहा गरबा-डांडिया
गोरखपुर में दशहरा पर्व के मौके पर महिलाएं गरबा और डांडिया सीख रही हैं। व्यस्त दिनचर्या के बावजूद वे प्रशिक्षण शिविरों में भाग ले रही हैं जिससे उन्हें फिटनेस और कुछ नया करने का अवसर मिल रहा है। शिविरों में पारंपरिक और फिल्मी गानों पर प्रशिक्षण दिया जा रहा है जहाँ हर उम्र की महिलाएं उत्साहपूर्वक भाग ले रही हैं।

अरुण मुन्ना, जागरण, गोरखपुर। दशहरा पर्व के मौके होने वाले आयोजनों के लिए शहर की महिलाएं और युवतियां गुजरात की लोकसंस्कृति से जुड़कर नई कला सीख रही हैं। गरबा और डांडिया नृत्य के प्रति उनका उत्साह देखते बन रहा है। घरेलू जिम्मेदारियों और व्यस्त दिनचर्या के बीच समय निकालकर प्रशिक्षण शिविर में पहुंच रही हैं।
इससे जहां उनकी फिटनेस संवर रही है। वहीं कुछ अलग करने का मौका भी मिल रहा है। शिविर में पारंपरिक गुजराती गीतों के अलावा नाट स्टाप फिल्मी डांडिया गीतों की धुन पर प्रशिक्षण दिया जा रहा है।
बबीना रोड स्थित शिप्रा लान में गोरखनाथ के प्रवीण राज और प्रशांत केतन की ओर से आयोजित शिविर में अहमदाबाद के कोरियोग्राफर बृजेश जानी प्रशिक्षण दे रहे हैं। प्रशिक्षक का कहना है कि महिलाएं और युवतियां अपनी दिनचर्या में बदलाव कर दो घंटे का समय निकालकर डांडिया और गरबा सीख रही हैं।
हर दिन नए प्रतिभागियों का जुड़ाव हो रहा है। लगभग एक माह तक यह शिविर जारी रहेगा। नृत्य एक बेहतरीन व्यायाम है। गरबा से वजन के साथ मानसिक तनाव भी दूर होता है।
अलीनगर की रोमा ने बताया कि वह पिछले एक सप्ताह से प्रशिक्षण ले रही हैं। दोपहर का काम निपटाकर रोजाना अपराह्न तीन से शाम पांच बजे तक डांडिया सीखने पहुंचती हैं। कुछ नया सीखने की ललक लिए आरती अपने सात माह के बच्चे के साथ शिविर में पहुंचती हैं। बच्चे की देखभाल प्रशिक्षक टीम के सदस्य संभालते हैं ताकि वह नृत्य सीख सकें।
सूरजकुंड की निकिता ने बताया कि इस नृत्य को सीखने से दूसरी लोकसंस्कृति से जुड़ाव बढ़ रहा है।करुणा ने बताया कि दोपहर में आमतौर पर महिलाओं के आराम करने का समय होता है। बच्चों के स्कूल से लौटने के बाद उनको नाश्ता इत्यादि देकर शिविर में पहुंचती हैं।
कोई नई चीज सीखने से खुशी मिलती है। सुप्रिया और प्रियंका ने कहा कि आम दिनों में नृत्य के लिए समय नहीं मिल पाता, लेकिन दशहरा के बहाने उन्हें स्वास्थ्य और खुशी दोनों मिल रही हैं। यहां आने के लिए उनको स्वजन से अनुमति मिल चुकी है। उनकी देखादेखी कई अन्य महिलाओं भी शामिल होने लगी हैं। जिनके परिवार में बच्चों के देखभाल में समस्या है। वो उनको साथ लेकर पहुंच रही हैं।
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कोरियोग्राफर ने बताया कि अब इस तरह के प्रशिक्षणों की मांग बढ़ रही है। महिलाएं न केवल नई परंपरा सीख रही हैं, बल्कि व्यस्त जीवनशैली से बाहर निकलकर खुद को फिट और ऊर्जावान बनाए रखने का भी प्रयास कर रही हैं। इस तरह के प्रशिक्षण का आयोजन बीआरडी मेडिकल कालेज रोड, तारामंडल, बेतियाहाता और गोलघर सहित अन्य जगहों पर भी किया जा रहा है, जिसमें महिलाओं की भागीदारी बढ़ी है।
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