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    कमरे के 'कश्मीर' में उगा रहे केसर, हिमाचल में प्रशिक्षण लेकर एक कमरे में शुरू की फूल की खेती

    Updated: Wed, 03 Dec 2025 03:43 PM (IST)

    हिमाचल प्रदेश में प्रशिक्षण के बाद, एक व्यक्ति ने कमरे में केसर की खेती शुरू की। यह दर्शाता है कि प्रशिक्षण और तकनीक से सीमित स्थान में भी केसर उगाया ...और पढ़ें

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    केसर की देखभाल करते विनोद कुमार शुक्ल। जागरण 

    अरुण मुन्ना, गोरखपुर। केसर के पुष्प का उल्लेख आते ही मन-मस्तिष्क पर एक दृश्य उभरता है-तीन रक्तिम धागों (वर्तिकाग्र) को समेटे नीले बैंगनी पुष्पों से सजी कश्मीर की वादियां। लेकिन अब केसर की सुगंध ही नहीं, इसकी खेती भी कश्मीर से बाहर लहलहाने लगी है। बागवानी के शौकीन विनोद कुमार शुक्ल गोरखपुर में अपने घर के कमरे में केसर उगा रहे हैं। इसके लिए उन्हें कमरे में कश्मीर जैसे वातावरण का प्रबंध करना पड़ा है।

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    रुस्तमपुर में आजाद चौक के पास रहने वाले राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के जिला गो सेवा प्रमुख विनोद कुमार शुक्ल को बायोटेक्नोलाजी में एमटेक बीटिया नेहा ने एक दिन बातों ही बातों में खेती-किसानी में होते नवाचारों की जानकारी दी। समझाया कि किस तरह एरोपोनिक विधि से एक कमरे में कश्मीर सा वातावरण तैयार कर यहां भी केसर उगाया जा सकता है।

    रोचक बतकही से उपजी उत्सुकता के बाद इस बारे में जानने-समझने के लिए विनोद हिमाचल प्रदेश के सोलन गए और एक सप्ताह का प्रशिक्षण प्राप्त किया। वापस लौटकर नौ गुणा 16 फीट के आकार वाले कमरे में एरोपोनिक विधि से केसर की खेती के लिए पांच लाख की लागत से सेटअप तैयार किया। तापमान नियंत्रित रखने वाली प्रभावी चिलर मशीन लगाई, जिससे कमरे में बर्फ तक जम जाती है।

    आर्द्रता नियंत्रण के लिए दो मशीनें और पौधों को अनुकूल वातावरण देने के लिए रंग-बिरंगी रोशनी का प्रबंध किया गया। नोएडा निवासी रमेश ने भी उनको तकनीकी सुझाव दिए। प्रशिक्षण के बाद वह कश्मीर जाकर 1300 रुपये प्रति किलो की दर से 80 किलो बीज खरीदा। बीते अगस्त महीने में केसर की खेती शुरू की। सुबह के समय कमरे में यू-ट्यूब से पक्षियों की चहचहाहट और गायत्री मंत्र बजाते हैं।

    आर्द्रता और कमरे में लगी चिलर मशीन से पौधों को पोषण मिलता है। लगभग चार माह की प्रक्रिया के बाद फूल निकलने प्रारंभ हो गए हैं। फूलों को अलग करने के बाद पौधों को मिट्टी में लगाते हैं, ताकि बीज का उत्पादन हो सके। वे बताते हैं कि 80 किलो बीज से लगभग 250 ग्राम केसर का उत्पादन होगा। साथ ही बीज भी तैयार किए जा रहे हैं, ताकि आगे खेती का विस्तार हो सके।

    कमरे में खिले फूलों से 250 ग्राम केसर तैयार होने का अनुमान है। कश्मीरी केसर की कीमत पांच लाख रुपये किलो तक है। उनका कहना है कि इस सबके बीच उन्हें दोगुणा मात्रा में बीज भी मिल जाएंगे। इससे आगे लागत कम होती जाएगी और गोरखपुर में कश्मीर का 'लाल सोना' कहलाने वाला केसर उगाना लगभग दो वर्ष के बाद मुनाफे का सौदा सिद्ध होगा। शहर के एक होटल संचालक ने उनसे केसर की मांग भी की है। वे बताते हैं कि केसर की खेती को बढ़ावा देने के लिए उन्होंने केंद्रीय कृषि मंत्री को पत्र भेजा है। स्थानीय स्तर पर किसी के इच्छुक होने उनको नि:शुल्क प्रशिक्षण प्रदान करेंगे।

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    तापमान नियंत्रण है सबसे महत्वपूर्ण
    विनोद बताते हैं कि एरोपोनिक विधि में बिना मिट्टी के पौधों की जड़ें हवा में रखी जाती हैं। पोषक तत्वों को धुंध के रूप में दिया जाता है। वे बताते हैं कि बीज को लाकर उन्होंने 20-20 लीटर पानी भरे अलग- अलग टब में रख दिया। प्रत्येक में खाने वाला 50-50 ग्राम चूना मिलाया। करीब पांच मिनट के बाद सभी बीजों को निकालकर पंखे की हवा के नीचे सुखाया। इसके बाद लकड़ी के ट्रे में उनको सजा दिया।

    छोटे बीज जो लगभग मटर के आकार के थे, उनको देसी गाय के गोबर और नारियल के अवशेष से बनी खाद में दो- दो इंच की दूरी पर रख दिया। केसर की खेती में तापमान क्रमशः कम करना अत्यंत आवश्यक होता है। शुरुआत में दिन का तापमान 20 और रात का 18 डिग्री सेल्सियस रखा जाता है। पंद्रह दिनों बाद इसे कम करके 18 और 16 डिग्री सेल्सियस किया जाता है। अंत में तापमान 14 और 12 डिग्री सेल्सियस पर स्थिर किया जाता है। आर्द्रता शुरुआत में 90 प्रतिशत रहती है, जिसे बाद में 95 प्रतिशत कर दिया जाता है।