AIIMS Gorakhpur: बच्चे के पेट में मिला दुर्लभ फंगस, 23 दिन में ले ली जान
गोरखपुर एम्स में एक दुर्लभ मामला सामने आया जहाँ एक नवजात शिशु के जठरांत्र पथ में फंगस संक्रमण पाया गया। बच्चे की हालत गंभीर होने पर उसे एम्स में भर्ती कराया गया लेकिन उसकी जान नहीं बचाई जा सकी। डॉक्टरों के अनुसार यह देश में पहला मामला है जिसमें कैंडिडा गुइलियरमोंडी के साथ कैंडिडेमिया मिला है। डॉक्टरों ने इस पर शोध किया है।

दु्र्गेश त्रिपाठी, गोरखपुर। आठ दिन के बच्चे के जठरांत्र में दुर्लभ फंगस मिला है। इसने बच्चे की हालत बिगाड़ दी। बच्चा एम्स की इमरजेंसी में आया। उसकी आंत का ज्यादातर हिस्सा सड़ चुका था। ऑपरेशन के बाद एम्स के एनआइसीयू में उसे भर्ती कराया गया लेकिन जन्म के 23वें दिन उसकी मृत्यु हो गई।
इससे पहले अमेरिका और अन्य कई देशों में इस फंगस की पुष्टि हुई थी लेकिन नेक्रोटाइजिंग एंटरोकोलाइटिस (एनईसी) के रोगी में कैंडिडा गुइलियरमोंडी के साथ कैंडिडेमिया (रक्त में फंगल संक्रमण) मिलने का यह देश का पहला मामला है। एम्स के डाक्टरों ने इस पर शोध किया है। यह शोध अध्ययन इंडियन जर्नल आफ मेडिकल माइक्रोबायोलाजी में प्रकाशित हुआ है।
बिहार के छपरा के आठ दिन के एक नवजात शिशु को पेट में सूजन, चार दिनों तक शौच न होने, दो-तीन बार पित्तयुक्त उल्टी और दो दिनों तक त्वचा का रंग पीला पड़ने की शिकायत के साथ एम्स की इमरजेंसी में ले आया गया था। नवजात शिशु का जन्म समय पर हुआ था और समय पूरा होने के बाद सिजेरियन प्रसव से उसका जन्म हुआ था।
उसका जन्म के समय वजन 2.3 किलोग्राम था। मां के अनुसार, नवजात शिशु को जन्म के बाद शौच भी हुई और तीन-चार दिनों तक उसे स्तनपान कराया गया था। शुरुआत में डिब्बे का भी दूध दिया गया था।
यह है फंगस
कैंडिडा गुइलियरमोंडी एक अपेक्षाकृत दुर्लभ यीस्ट या फंगस है। यह कैंडिडेमिया का कारण बनता है। यह प्रजाति आमतौर पर मानव त्वचा, मुख म्यूकोसा और गुप्तांग में रहती है। पिछले 20 वर्षों में कई देशों में कैंडिडा गुइलियरमोंडी के मामलों में वृद्धि हुई है। साथ ही इचिनोकैन्डिन्स और एजोल्स के प्रति संवेदनशीलता में भी कमी आई है।
ऊपरी दूध से भी हो सकती है समस्या
बच्चों में यह समस्या मां की जगह डिब्बे या अन्य दूध पिलाने से हो सकती है। नवजात शिशु को संक्रमण था इसलिए डाक्टरों ने सिर्फ खून का नमूना लिया था।
यह है जठरांत्र पथ
पाचन तंत्र का वह मार्ग है जो मुं से गुदा तक फैला होता है। इसमें ग्रासनली, आमाशय, और आंत शामिल हैं। यह पाचन, पोषक तत्वों के अवशोषण और अपशिष्ट को बाहर निकालने का काम करता है। इस पथ में विभिन्न प्रकार के जठरांत्र संबंधी रोग हो सकते हैं। यह संक्रमण, सूजन या रुकावट के कारण बनते हैं।
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शोध में यह शामिल
डाॅ. श्वेता सिंह, डाॅ. विवेक हाडा, डाॅ. अंचला भारद्वाज, डाॅ. गौरव गुप्ता, डाॅ. शुभांगी चतुर्वेदी, डाॅ. अतुल आर रुकादिकर, डाॅ. अरूप मोहंती, डाॅ. पारुल सिंह।
कैंडिडा गुइलियरमोंडी का एनईसी से जुड़ाव, संवेदनशील नवजात आबादी के प्रबंधन में सतर्क निगरानी और व्यापक देखभाल के महत्व को दर्शाता है। हमारी जानकारी के अनुसार भारत में नेक्रोटाइजिंग एंटरोकोलाइटिस से पीड़ित किसी रोगी में कैंडिडा गुइलियरमोंडी के साथ कैंडिडेमिया की यह पहली रिपोर्ट है।
-डाॅ. गौरव गुप्ता, विभागाध्यक्ष सर्जरी, एम्स
एम्स के डाॅक्टरों की टीम ने नवजात का पूरा उपचार किया लेकिन संक्रमण ज्यादा बढ़ चुका था। इस असामान्य लेकिन गंभीर संक्रमण के बारे में हमारी समझ और प्रबंधन को बेहतर बनाने के लिए ऐसे मामलों की निरंतर निगरानी और रिपोर्टिंग आवश्यक है। शोध के माध्यम से जानकारी सामने आती है।
-मेजर जनरल (सेवानिवृत्त) डाॅ. विभा दत्ता, कार्यकारी निदेशक एम्स
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