Gorakhpur AIIMS: गोरखपुर एम्स में डॉक्टरों की कमी ने बढ़ाई चिंता, ओपीडी में लगातार बढ़ रही रोगियों की संख्या
गोरखपुर एम्स में मूत्र रोग और किडनी रोगियों को अभी पक्के इलाज के लिए इंतजार करना होगा। साक्षात्कार प्रक्रिया के बाद भी यूरोलॉजिस्ट और नेफ्रोलॉजिस्ट नहीं मिल सके हैं। विशेषज्ञ डॉक्टरों की कमी के कारण रोगियों को दिक्कतों का सामना करना पड़ता है और उन्हें रेफर कर दिया जाता है। एम्स में प्रोफेसरों की भी कमी है जिससे विभागों का संचालन प्रभावित हो रहा है।

जागरण संवाददाता, गोरखपुर। एम्स में मूत्र रोग और किडनी रोगों से जूझ रहे रोगियों को पक्के उपचार के लिए अभी इंतजार करना पड़ेगा। एम्स प्रशासन की ओर से पूरी की गई साक्षात्कार प्रक्रिया के बाद भी अभी यूरोलाजिस्ट और नेफ्रोलाजिस्ट नहीं मिल सके।
नेफ्रोलाजिस्ट के रूप में खुद चेयरमैन पद्मश्री डा. हेमंत कुमार हैं लेकिन वह एम्स को लगातार समय नहीं दे सकते हैं। वह टेली व वीडियो कंसल्टेंटिंग के माध्यम से किडनी रोगियों के उपचार की शुरुआत करेंगे।
वर्ष 2019 में एम्स की स्थापना के बाद से ही विशेषज्ञ डाक्टरों की तैनाती बड़ी समस्या बनी हुई है। कार्यकारी निदेशक मेजर जनरल (सेवानिवृत्त) डा. विभा दत्ता के विशेष प्रयास से कई विभागों में विशेषज्ञ डाक्टरों का चयन हुआ है लेकिन अब भी कई विभाग डाक्टरों का इंतजार कर रहे हैं। विशेषज्ञ डाक्टर न होने से रोगियों को दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। उन्हें एम्स से रेफर कर दिया जाता है।
विभागों में प्रोफेसरों की बहुत कमी
एम्स के कई महत्वपूर्ण विभागों में एक प्रोफेसर तक नहीं है। सर्जरी विभाग एडिशनल प्रोफेसर के भरोसे चल रहा है तो नेत्र रोग, नाक कान व गला रोग, मानसिक रोग, गैस्ट्रो, न्यूरोलाजी, हार्ट आदि विभागों में भी प्रोफेसर नहीं हैं। इमरजेंसी में सात डाक्टरों की तैनाती है लेकिन सभी असिस्टेंट प्रोफेसर हैं।
वरिष्ठ डाक्टरों की उपलब्धता न होने का खामियाजा रोगियों को भुगतना पड़ता है। सभी विभागों में प्रोफेसरों की उपलब्धता हो जाने पर जूनियर और सीनियर रेजिडेंट के पद भी बढ़ जाएंगे। इससे ज्यादा से ज्यादा डाक्टर पढ़ाई के लिए एम्स में आएंगे। यह डाक्टर ओपीडी और इमरजेंसी में भी सेवा देंगे। इससे रोगियों को उपचार के लिए परेशान नहीं होना पड़ेगा।
आवास की कमी भी बड़ी समस्या
एम्स की स्थापना के समय डाक्टरों के लिए सिर्फ 48 आवास ही बनाए गए। एम्स अब डाक्टरों की संख्या बढ़ाकर 213 करने जा रहा है। ऐसी स्थिति में सिर्फ 48 आवास होने से ज्यादातर डाक्टरों को परिसर से बाहर रहना पड़ता है।
एम्स परिसर में सुरक्षा, बच्चों के खेलने की व्यवस्था, अच्छा माहौल होने और ओपीडी व इमरजेंसी में तत्काल पहुंचने की सुविधा होने से डाक्टर यहीं रहना चाहता हैं। इस कारण आवास के लिए बहुत मारामारी मची रहती है। आवास न होने से भी डाक्टर एम्स में आने से बच रहे हैं।
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