सबरंग: प्रकृति का उपहार, गोरखपुर का श्रृंगार रामगढ़ताल
रामगढ़ ताल गोरखपुर के दक्षिण-पूर्वी भाग में स्थित, सांस्कृतिक धरोहर, प्राचीन मान्यताएं और आधुनिक विकास का संगम है। कभी मछुआरों की आजीविका का स्रोत रहा यह ताल, आज पर्यावरणीय जागरूकता का प्रतीक है। लोककथाओं और ऐतिहासिक तथ्यों से जुड़ा यह ताल, राप्ती नदी की छाड़न झील भी माना जाता है। मानवीय हस्तक्षेप से इसका क्षेत्रफल कम हुआ, पर अब यह पर्यटन का केंद्र बन गया है।

रामगढ़ ताल। जागरण
शहर के दक्षिण-पूर्वी हिस्से में फैला रामगढ़ ताल जल का एक विशाल विस्तार मात्र नहीं, पूर्वी उत्तर प्रदेश की सांस्कृतिक स्मृतियों, प्राचीन मान्यताओं, भौगोलिक उतार-चढ़ाव और आधुनिक शहरी परिवर्तन का अनोखा संगम भी है। गोरखपुर के लिए प्रकृति का अनुपम उपहार यह ताल कभी मछुआरों की आजीविका का आधार रहा पर आज यह पर्यावरणीय जागरूकता का प्रतीक बन चुका है।
पर्यटन की दृष्टि से तो यह हब सा बन गया है। समय के साथ इसका स्वरूप तो बदला, लेकिन महत्व कभी कम नहीं हुआ बल्कि बढ़ा ही। लोककथाओं, महाभारतकालीन इतिहास, भूगोल और आधुनिक विज्ञान सब अपने-अपने तरीके से इस ताल की उत्पत्ति को व्याख्यायित करते हैं। उसकी गौरवशाली ऐतिहासिकता पर मुहर लगाते हैं। बदलते समय की मानवीय गतिविधियों के बीच रामगढ़ ताल एक जीवित दस्तावेज के रूप में सामने आता है। रामगढ़ताल को लेकर परंपरा और परिवर्तन के इसी संगम की कहानी सुनाती उप मुख्य संवाददाता डा. राकेश राय की रिपोर्ट...
रामगढ़ ताल के उद्भव के बारे में कई लोककथाएं प्रचलित हैं। एक प्रमुख मान्यता के अनुसार प्राचीन काल में इस पूरे क्षेत्र में एक सम्पन्न राज्य स्थित था, जिसकी राजधानी ‘जनकीर्ण’ नाम के कस्बे में थी। कहते हैं कि यहां एक दिन एक ऋषि पधारे। राजा ने उनका आदर नहीं किया, जिससे वह क्रोधित हो गए। क्रोधित होकर पूरे राज्य को श्राप दे दिया।
परिणामस्वरूप राजधानी समेत पूरा राज्य धरती में धंस गया और समय के साथ जलभराव होने से वह भूमि एक विशाल ताल के रूप में परिवर्तित हो गई। बाद में रामगढ़ ताल के नाम से मशहूर हो गई। यह मान्यता न सिर्फ लोक विश्वासों की धरोहर है बल्कि यह दर्शाती है कि ताल के उद्भव प्रकृति और संस्कृति के संगम का परिणाम है।

दूसरी मान्यता ऐतिहासिक तथ्यों पर आधारित है। महाभारत युग के बाद लगभग 750 ईसा पूर्व में गोरखपुर के आसपास कई गणतंत्र फले-फूले। इनमें से एक था कोलिय साम्राज्य। रामगढ़ ताल के दक्षिण-पश्चिम में स्थित ‘रामगढ़ अधिवास’ को कोलिय साम्राज्य की राजधानी माना गया। कोलिय गणराज्य सरयू से गंडक के बीच एक पतली पट्टी में स्थापित था।
इसके पूर्व में पिप्पलीवन, उत्तर-पूर्व में कुशीनगर और उत्तर में हिमालय की पर्वत श्रृंखलाएं थीं। समय बीतने के साथ कोलिय गणराज्य का पतन हुआ, राजनीतिक महत्ता घटती गई और भूगर्भीय परिवर्तन ने क्षेत्र के भू-स्वरूप को बदल दिया। यह माना जाता है कि इन्हीं भूगर्भीय हलचलों के कारण रामग्राम और आस-पास के क्षेत्र धंसकर जलभरी भूमि में बदल गए, जिसे आज हम रामगढ़ ताल के नाम से जानते हैं।

कहने का मलतब रामगढ़ ताल सिर्फ एक ताल नही बल्कि गोरखपुर के इतिहास, संस्कृति, भूगोल और आधुनिक विकास का आईना भी है। यह मिथक भी हैं, पुरातात्विक धरोहर भी। शोध का विषय है और आज के पर्यटन का आकर्षण भी। यह एक ऐसी जीवंत धरोहर है, जिसने समय के साथ अपना रूप बदला पर अपनी आत्मा—प्रकृति और समाज के सह-अस्तित्व को जीवित रखा। गोरखपुर की पहचान बन चुका रामगढ़ ताल आज भी अतीत की गहराइयों में उतरने के साथ भविष्य की संभावनाओं को रोशन करता है। यह सिर्फ जल का भंडार नहीं बल्कि शहर के जीवन, संस्कृति और प्रकृति के बीच चल रही कहानी का एक अमर अध्याय है।
‘गोखुर झील’ के रूप में रामगढ़ ताल
जहां लोककथाएं और इतिहास इस ताल को सांस्कृतिक परंपराओं से जोड़ते हैं, वहीं आधुनिक भू-शोध रामगढ़ ताल की कहानी को एक नया वैज्ञानिक आधार प्रदान करते हैं। काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के डा. सतीश चंद्र सिंह और डा. उजागिर सिंह के शोध के अनुसार रामगढ़ ताल राप्ती नदी की ‘छाड़न झील’ है। यानी नदी द्वारा छोड़े गए पुराने मार्गों में बना विशाल जल भंडार।
राप्ती नदी अपने अनिश्चित मार्ग परिवर्तन के कारण मशहूर रही है। भूगर्भिय सर्वेक्षण, उपग्रहीय प्रतिमाओं और गोरखपुर के पुराने जलमार्गों जैसे गोड़धोइया नाला, बौलिया नाला, रेलवे गोल्फ ग्राउंड नाला की क्रमबद्धता से सिद्ध होता है कि कभी राप्ती नदी गोरखनाथ मंदिर के पास से बहती थी। समय के साथ नदी पश्चिम की ओर सरकती गई और उसके पुराने मार्गों में पानी भर जाने से कई छाड़न झीलें बनीं। इन्हीं में सबसे बड़ी झील बनी- रामगढ़ ताल। इस बात का जिक्र शहरनामा गोरखपुर में भूगोलविद प्रो. शिवशंकर वर्मा ने विस्तार से किया है।
प्राकृतिक धरोहर के रूप में रामगढ़ ताल
रामगढ़ ताल सिर्फ जल का स्रोत नहीं बल्कि एक विशिष्ट पारिस्थितिकीय तंत्र है। इसके चारों ओर बसे गांव गोपलापुर, भैरोपुर, रामगढ़, गायघाट, मेहरवा की बागी, महादेव झारखंडी के रहने वाले लोग पीढ़ियों से इसे आजीविका, पेयजल, सिंचाई, मछली पालन और पशुपालन के लिए उपयोग करते रहे हैं। इसके जल में पलने वाली मछलियों की गुणवत्ता और स्वाद ने इसे क्षेत्र के प्रमुख मत्स्य केंद्रों में शामिल कर लिया गया है। कभी यह ताल मल्लाह, निषाद, केवट समुदाय की जीवनरेखा था। इसने न सिर्फ भोजन बल्कि पूरे सामाजिक-आर्थिक ढांचे को आकार दिया।
1970 के दशक तक ताल का पानी इतना स्वच्छ था कि ग्रामीण इसे पीने योग्य मानते थे। साथ ही हजारों पशुओं के लिए ताल के आसपास उगी घास चारा उपलब्ध कराती थी। इसके अतिरिक्त ताल से निकली दो प्रमुख नहरें एक बड़े भूभाग की कृषि आवश्यकताओं को पूरा करती थीं। पूर्वी नहर आज भी सक्रिय है, जबकि पश्चिमी नहर पर अब सड़कें और कालोनियां बन चुकी हैं पर स्थानीय लोग इसे आज भी ‘नहर रोड’ के नाम से पहचानते हैं।

बुद्धकालीन धरोहर से आधुनिक सुंदरीकरण तक
यह मान्यता लंबे समय से प्रचलित है कि भगवान बुद्ध के अवशेष जिस स्तूप में सुरक्षित थे, वह रामग्राम स्तूप राप्ती नदी के मार्ग परिवर्तन से बह गया था। माना जाता है कि उस स्तूप का एक भाग इसी ताल क्षेत्र में स्थित था। यह विश्वास श्रीलंका, जापान और चीन जैसे बौद्ध देशों के पर्यटकों को आज भी आकर्षित करता है। बुद्ध के महापरिनिर्वाण स्थल कुशीनगर आने वाले पर्यटकों की पूरी कोशिश होती है कि वह रामगढ़ताल का दर्शन जरूर करें। उसे देखने के बाद ही अपनी अपनी तीर्थयात्रा को पूरा समझें।
इनकी मौजूदगी से चमक रहा रामगढ़ ताल
- वाटर स्पोर्ट्स कांप्लेक्स
- शहीद अशफाक उल्ला खां प्राणि उद्यान
- राजकीय बौद्ध संग्रहालय
- योगिराज बाबा गंभीरनाथ प्रेक्षागृह
- मुक्ताकाशी मंच
- वीर बहादुर सिंह नक्षत्रशाला
- बोट जेटी
- चंपा देवी पार्क
- दिग्विजयनाथ पार्क
- डा. आंबेडकर पार्क
- सर्किट हाउस
- वाटर बाडी
- मुंबई के मरीन ड्राइव जैसे मनोरम तट
- पांच सितारा होटल कोर्टयार्ड बाय मैरियट
- निर्माणाधीन कन्वेंशन सेंटर व होटल ताज
- ताल बाजार
- नया सवेरा
- आलीशान क्रूज
- फ्लोटिंग रेस्तरां
- लेक व्यू खूबसूरत अपार्टमेंट व कालोनियां
समय के साथ ऐसे सिकुड़ा ताल का दायरा
मानवीय हस्तक्षेप, अवैध कब्जों, नगरीकरण और विकास योजनाओं ने ताल के क्षेत्रफल पर गहरा प्रभाव डाला। 1916 में ताल का क्षेत्रफल 7.79 वर्ग किमी था। 1940 तक यह 7.72 वर्ग किमी तक रहा। 1971 में 7.67 वर्ग किमी और 2007 में घटकर सिर्फ 7.00 वर्ग किमी रह गया। सिघड़िया, करमहिया, झारखंडी, मोहद्दीपुर, कूड़ाघाट, सहारा कालोनी आदि क्षेत्रों में विकास ने दलदली भूमि को समाप्त कर दिया।
इससे ताल न केवल सिकुड़ा बल्कि गहराई भी तेजी से कम हुई। हालांकि ताल काे त्याग का प्रतिफल भी मिला है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के प्रयास से यह आज प्रदेश के खूबसूरत प्राकृतिक स्थलों में गिना जाता है। यहां पर्यटकों को रेला लगा रहता है।
सीमांकन के बाद थम गया अतिक्रमण
वर्ष 2010 में ‘राष्ट्रीय झील संरक्षण कार्यक्रम’ के तहत ताल को चारों ओर से बाांध बनाकर सीमांकित किया गया। क्षरण के चलते आकार घटने न पाए, इसके लिए बोल्डर लगाया गया है। बाकायदा खूबसूरत किनारा बनाया गया है, उसे सजाया गया है। इससे अतिक्रमण की आशंका पर भी विराम लगा है। कहने में गुरेज नहीं कि रामगढ़ताल को अब जाकर स्थायी स्वरूप मिला है और मिलता ही जा रहा है। विविध सुविधाओं ने ताल को गोरखपुर की पहचान बना दिया है। आने वाले वर्षों में यह न सिर्फ प्राकृतिक धरोहर बल्कि अंतरराष्ट्रीय पर्यटन आकर्षण के रूप में भी स्थापित हो सकता है।
एक नजर में
- उद्भव : किंवदंतियों, ऐतिहासिक कड़ियों और राप्ती नदी के मार्ग परिवर्तन से निर्मित
- क्षेत्रफल : लगभग 7.00 वर्ग किमी और 1800 एकड़
- पर्यटन आकर्षण : जलक्रीड़ा, तटवर्ती पार्क, संग्रहालय, बुद्धकालीन धरोहर की मान्यता
- पर्यावरणीय महत्व : जैव विविधता, प्राकृतिक जलस्रोत, पारिस्थितिक तंत्र

स्थानीय पर्यटन को नई ऊंचाई दे रहा ताल
पर्यावरणीय दृष्टि से यदि रामगढ़ताल का मूल्यांकन किया जाए तो यह ताल एक महत्वपूर्ण जैव-विविधता हाटस्पाट है। इसके जरिये 100 से अधिक देशी और प्रवासी पक्षियों को प्रवास का अवसर मिलता है। ऐसे में यह बर्ड वाचिंग के लिए भी समूचे पूर्वांचल के आकर्षण का केंद्र बन चुका है। यह ताल शहर के तापमान को नियंत्रित रखने और भूजल को रिचार्ज करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, इसलिए इसे गोरखपुर का 'इको-लंग्स' भी कहा जाता है। करीब 723 हेक्टयर क्षेत्र में फैली यह प्राकृतिक झील अति प्राचीन है। इसीलिए इसका समृद्ध सांस्कृतिक व सामाजिक इतिहास है। इतिहास की तह में जाएं तो इसका रिश्ता प्राचीन कोलिय गणराज्य के रामग्राम से जुड़ता है। भूगर्भीय रूप से यह ताल राप्ती नदी के पुराने मार्ग के अवशेषों से बना है, जो इसे प्राकृतिक विरासत के रूप में विशेष पहचान देता है। आज यह स्थल ‘पूर्वांचल के मरीन ड्राइव’ के रूप में विकसित हो चुका है। ताल के किनारे बनी आकर्षक सड़कें, नौकायन सुविधाएं, वाटर स्पोर्ट्स कांप्लेक्स, लेजर शो और खूबसूरत सेल्फी पाइंट्स इसे आधुनिक पर्यटन केंद्र का रूप देते हैं। रेस्टोरेंट्स और मनोरंजन सुविधाओं से युक्त यह जगह युवाओं, परिवारों और पर्यटकों के लिए पसंदीदा गंतव्य बन गई है। रामगढ़ ताल न केवल प्रकृति, इतिहास और आधुनिकता का अद्भुत संगम है बल्कि यह स्थानीय पर्यटन और अर्थव्यवस्था को भी नई ऊंचाइयों तक ले जा रहा है। -प्रो. हर्ष कुमार सिन्हा, आचार्य, दीदउ गोरखपुर विश्वविद्यालय, गोरखपुर।

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आर्थिक व सांस्कृतिक प्रगति का चमकता उदाहरण
पूर्वी उत्तर प्रदेश की सबसे महत्वपूर्ण प्राकृतिक झीलों में से एक गोरखपुर का रामगढ़ ताल है। यह बड़ी झील हमेशा शहर की एक प्रमुख पारिस्थितिक विशेषता रही है, जो बाढ़ को नियंत्रित करने, भूजल स्तर में सुधार करने और विभिन्न जलीय जीवन के लिए एक निवास स्थान प्रदान करने में मदद करती है। हाल के वर्षों में, सरकार द्वारा किए गए उल्लेखनीय विकास कार्यों के चलते रामगढ़ ताल गोरखपुर के लिए प्रगति और गौरव का प्रतीक भी बन गया है।
सरकार ने रामगढ़ ताल क्षेत्र को एक सुंदर और आधुनिक झील के किनारे में बदल दिया है। पैदल यात्रा और साइकिल चलाने की पटरियों, उद्यानों, आकर्षक प्रकाश व्यवस्था और बैठने की विविध जगहों ने झील को पर्यटकों के लिए एक स्वच्छ, सुरक्षित और आनंददायक स्थान बना दिया है। नौका विहार, कयाकिंग और अन्य जल खेलों की सुविधाओं ने उत्साह और झील के मनोरंजक मूल्य को बढ़ाया है।
रामगढ़ ताल के शांत वातावरण, जल गतिविधियों और सुंदर दृश्यों का आनंद लेने के लिए अब हजारों आगंतुक आते हैं। नतीजतन, रेस्तरां, कैफे, खाने की दुकानें, होटल और दुकान जैसे स्थानीय व्यवसाय तेजी से बढ़े हैं। इससे बहुत से लोगों के लिए रोजगार के नए अवसर पैदा हुए हैं। शहर की अर्थव्यवस्था मजबूत हुई है। रामगढ़ ताल के परिवर्तन से पता चलता है कि सरकार की प्रभावी योजना और समर्पित प्रयास से पर्यावरण और नागरिकों के जीवन दोनों में सुधार हो सकता है। एक प्राकृतिक झील को एक जीवंत पर्यटन स्थल में बदलकर सरकार ने न केवल एक महत्वपूर्ण पारिस्थितिकी तंत्र की रक्षा की है बल्कि आर्थिक विकास के नए दरवाजे भी खोले हैं। रामगढ़ ताल गोरखपुर की आर्थिक व सांस्कृतिक प्रगति का एक चमकता हुआ उदाहरण है। -अचिंत्य लाहिड़़ी, सह समन्वयक, इंटेक, गोरखपुर चैप्टर।

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