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    Gorakhpur: महिला रनिंग स्टाफ के प्रति संवेदनशील हुआ रेलवे, बदलेगी सहायक महिला लोको पायलट और गार्ड की कैटेगरी

    By Jagran NewsEdited By: Nitesh Srivastava
    Updated: Tue, 10 Oct 2023 07:18 PM (IST)

    कार्यस्थल पर महिला रेलकर्मियों को आने वालीं समस्याओं के प्रति दैनिक जागरण भी अपनी खबरों के माध्यम से रेलवे प्रशासन को सचेत करता रहा है। इसी वर्ष 12 मार्च के अंक में ‘कंट्रोल को सूचना न देनी पड़े रास्ते में नहीं पीती हैं पानी’ शीर्षक से खबर प्रकाशित की थी जिसमें सहायक लोको पायलट गार्ड सहित अन्य रनिंग स्टाफ की समस्याएं प्रकाशित की गई थीं।

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    तस्वीर का इस्तेमाल प्रतीकात्मक प्रस्तुतिकरण के लिए किया गया है। जागरण

    जागरण संवाददाता, गोरखपुर। महिला रनिंग स्टाफ के प्रति रेलवे बोर्ड संवेदनशील हुआ है। अब वह भी सामान्य कर्मचारियों की भांति अपनी ड्यूटी कर सकेंगी। कार्यस्थल पर कठिन चुनौतियों का सामना करने वालीं सहायक महिला लोको पायलट (एएलपी), गार्ड (ट्रेन मैनेजर) और ट्रैक मेंटेनर की कैटेगरी बदलेगी।

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    इसकी प्रक्रिया पूरी करने से पहले रेलवे बोर्ड के उप निदेशक संजय कुमार ने छह अक्टूबर को क्षेत्रीय महाप्रबंधकों को चिट्ठी लिखी है।

    आल इंडिया रेलवे मेंस फेडरेशन (एआइआरएफ) का हवाला देते हुए बोर्ड ने पूछा है कि क्षेत्रीय रेलवे स्तर पर महिला रनिंग स्टाफ की कैटेगरी बदलने के लिए कितने आवेदन लंबित हैं? कैटेगरी बदली गई है या नहीं। बोर्ड के पत्र ने महिला रनिंग स्टाफ के चेहरे पर खुशी ला दी है।

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    जानकारों के अनुसार रेलवे में नौकरी के उत्साह में महिलाएं सहायक लोको पायलट, गार्ड और ट्रैक मेंटेनर तो बन जाती हैं, लेकिन उन्हें कार्यस्थल पर कई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है।

    सहायक लोको पायलट और गार्ड ड्यूटी के दौरान रास्ते में प्यास लगने के बाद भी इसलिए पानी नहीं पीतीं, ताकि कंट्रोल को सूचित न करना पड़े। ट्रेनों के इंजनों में टायलेट की व्यवस्था नहीं होने से अधिकतर लोको पायलट ड्यूटी से ही समझौता कर लेती हैं। यही स्थिति स्टेशन यार्ड में कार्य करने वालीं ट्रैक मेंटेनर की भी है। माहवारी के दौरान उनकी मुश्किलें और बढ़ जाती हैं।

    लोको पायलट यात्री ट्रेनों के रुकने पर इंजन से उतरकर यात्रियों से धक्का-मुक्की कर पीछे वाले कोच के टायलेट का उपयोग तो कर लेती हैं, लेकिन मालगाड़ी लेकर चलने वालीं कर्मियों को दिक्कतें उठानी पड़ती हैं। हर पल संरक्षा प्रभावित होने की आशंका भी बनी रहती है।

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    जोश और जज्बा के बावजूद महिलाकर्मी स्टेशन पर कार्यालय के कार्यों में रुचि लेने लगी हैं। वे रेलवे प्रशासन के सामने समस्याओं का हवाला देते हुए कैटेगरी बदलने की गुहार लगाती हैं, लेकिन कोई सुनवाई नहीं हो पाती।

    एआइआरएफ के सहायक महामंत्री व एनई रेलवे मजदूर यूनियन के महामंत्री केएल गुप्ता कहते हैं, संगठन ने वर्ष 2018 में ही इस प्रकरण को उठाया था।

    बोर्ड के तत्कालीन अध्यक्ष विनोद कुमार यादव के गोरखपुर दौरे पर भी ज्ञापन सौंपा गया था। देर से ही सही बोर्ड को महिला रनिंग स्टाफ की याद आई है। पूर्वोत्तर रेलवे में 227 इलेक्ट्रिक इंजन हैं, लेकिन किसी में भी टायलेट नहीं है।

    महिला रेलकर्मियों की समस्या उठाता रहा है जागरण

    कार्यस्थल पर महिला रेलकर्मियों को आने वालीं समस्याओं के प्रति दैनिक जागरण भी अपनी खबरों के माध्यम से रेलवे प्रशासन को सचेत करता रहा है। इसी वर्ष 12 मार्च के अंक में ‘कंट्रोल को सूचना न देनी पड़े, रास्ते में नहीं पीती हैं पानी’ शीर्षक से खबर प्रकाशित की थी, जिसमें सहायक लोको पायलट, गार्ड सहित अन्य रनिंग स्टाफ की समस्याएं प्रकाशित की गई थीं।