Ram Prasad Bismil Jayanti: फांसी के कुछ घंटे पहले जेल में राम प्रसाद बिस्मिल को कसरत करता देख सहम गए थे अंग्रेज अफसर, किया था ये सवाल
Pandit Ram Prasad Bismil Jayanti 2022 भारत की आजादी में अहम भूमिका निभाने वाले काकोरी कांड के महानायक पंडित राम प्रसाद बिस्मिल की जयंती पर पूरा देश नमन कर रहा है। इस मौके पर उनसे जुड़ी खास कहानी इस लेख के लिए पढ़िए...

गोरखपुर, जागरण संवाददाता। Pandit Ram Prasad Bismil Jayanti भारतीय स्वाधीनता संग्राम के महानायक पंडित राम प्रसाद बिस्मिल की जयंती पर आज पूरा देश नमन कर रहा है। इस मौके पर हम आपको भारत की आजादी में अहम भूमिका निभाने वाले काकोरी कांड के महानायक पंडित राम प्रसाद बिस्मिल से जुड़ी खास कहानी बताने जा रहे हैं।
बिस्मिल को कसरत करते देख जेलर ने किया था ये सवाल: 19 दिसंबर 1927 को सुबह छह बजे काकोरी कांड के नायक पंडित राम प्रसाद बिस्मिल को गोरखपुर जेल में फांसी दी जानी थी। फांसी दिये जाने से कुछ ही घंटे पूर्व बैरक में पंडित राम प्रसाद बिस्मिल को कसरत करते देख जेलर व पहरेदार अचंभित रह गए थे। जेलर उनसे पूछा था कि पंडित- तुम्हें कुछ ही घंटे में फांसी होनी है। कसरत क्यों कर रहे हो। पंडित जी ने जवाब दिया था कि यह भारत माता की चरणों में अर्पित होने वाला फूल है। मुरझाया हुआ नहीं होना चाहिए। स्वस्थ व सुंदर दिखना चाहिए।
चार माह 10 दिन गोरखपुर की जेल में रहे पंडित राम प्रसाद बिस्मिल: पंडित राम प्रसाद बिस्मिल की आत्मकथा में यह लाइनें पढ़ने के बाद हर भारतवासी की छाती गर्व से चौड़ी हो जाती है। गोरखपुर जेल में वह चार माह 10 दिनों तक बंद रहे। 10 अगस्त 1927 को अंग्रेजों ने उन्हें लखनऊ जेल से गोरखपुर भेज दिया था। यहां उन्हें कोठरी संख्या सात में रखा गया था। उस समय इसे तन्हाई बैरक कहा जाता था।
जेल के कमरे को साधना केंद्र के रूप में प्रयोग किए थे बिस्मिल: गोरखपुर में आने के बाद बिस्मिल ने कमरे को साधना केंद्र के रूप में प्रयोग किया था। इस कोठरी को अब बिस्मिल कक्ष और शहीद पंडित राम प्रसाद बिस्मिल बैरक के नाम से संरक्षित किया गया है। पंडित बिस्मिल शाहजहांपुर के निवासी थे। उनका जन्म 11 जून 1897 को हुआ था।
पावन हो रही जेल की माटी: पंडित राम प्रसाद बिस्मिल को गोरखपुर जेल में जहां फांसी दी गई थी, उस स्थल को एक तीर्थस्थल के रूप में विकसित करने में प्रदेश सरकार जुटी हुई है। पंडित जी जेल में जहां फांसी दी गई थी, जिस चौकी पर वह विश्राम करते थे, साधना केंद्र, उनकी स्मृतियों से जुड़ीं सभी वस्तुओं का पर्यटन विभाग जीर्णोद्धार कर चुका है। आगंतुकों यहां आने के लिए अब किसी के अनुमति की जरूरत नहीं है। वह यहां आसानी से आकर एक-एक वस्तुओं, फांसी घर, उनकी बैरक आदि को देख कर आभास कर सकते हैं कि पंडित जी ने यहां चार माह का वक्त यहां कैसा बीता होगा। इसके लिए जेल के बाहर से एक रास्ता बनाकर उसे खोल दिया गया है।
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