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    UP News: पूर्वांचल की खाद से लहलहाएंगे असम के चाय बागान, पीकर लोग बोलेंगे- वाह...

    असम के चाय बागानों में पूर्वांचल की जैविक खाद से नई जान आ गई है। इस खाद से चाय की पत्तियां मुलायम और चमकदार हो रही हैं। जैविक खाद की मांग बढ़ने से क्षेत्र में रोजगार के अवसर भी बढ़ रहे हैं। रेलवे की पहल से खाद की ढुलाई में लगने वाला खर्च भी कम हुआ है। इससे जैविक खाद उद्योग और रोजगार को भी बढ़ावा मिलेगा।

    By Prem Naranyan Dwivedi Edited By: Vivek Shukla Updated: Wed, 19 Feb 2025 07:43 AM (IST)
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    असम के चाय बगान जैविक खाद से लहलाएंगे। जागरण

    प्रेम नारायण द्विवेदी, जागरण संवाददाता, गोरखपुर। पूर्वांचल की जैविक खाद से असम के चाय बगान लहलाएंगे। चाय की पत्तियां साफ्ट होंगी। पत्तियों की चमक बढ़ेगी। चाय पीकर लोग बोलेंगे, वाह...। संतकबीर नगर जनपद के जैविक खाद की मांग असम में बढ़ गई हैं। पूर्वोत्तर रेलवे में पहली बार 16 फरवरी को खलीलाबाद स्टेशन से 21 वैगन जैविक खाद लदी मालगाड़ी पूर्वोत्तर सीमांत रेलवे स्थित सालचापारा स्टेशन के लिए रवाना की गई।

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    आने वाले दिनों में खलीलाबाद से जैविक खाद की नियमित ढुलाई होगी। खलीलाबाद से जैविक उर्वरक का स्थाई एवं नियमित लदान के लिए रेलवे ने तैयारी आरंभ कर दी है। रेलवे के सहयोग से क्षेत्रीय उद्यमियों में भी उत्साह है। रेलवे की कमाई तो बढ़ेगी ही, क्षेत्र में जैविक खाद उद्योग और रोजगार को भी बढ़ावा मिलेगा।

    दरअसल, असम के चाय बागानों में जैविक खाद की मांग बढ़ी तो बागान मालिक खलीलाबाद पहुंच गए। जैविक खाद की मांग बढ़ी तो उत्पादन भी बढ़ने लगा, लेकिन खाद की ढुलाई राह में रोड़ा बनने लगी। उद्यमी चाहकर भी मांग के अनुसार चाय बगान तक अपनी खाद नहीं भेज पा रहे थे।

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    जैविक खाद गोरखपुर, महराजगंज, देवरिया समेत पूर्वांचल और बिहार तक ही सिमट कर रह गई थी। उद्यमियों ने सड़क मार्ग से खाद भेजनी शुरू की, लेकिन वह बहुत खर्चीला साबित हुआ। ऐसे समय में पूर्वोत्तर रेलवे लखनऊ मंडल के वरिष्ठ मंडल वाणिज्य प्रबंधक आशुतोष गुप्ता के नेतृत्व में वाणिज्य विभाग की पहल रंग लाई।

    रेलवे की टीम ने उद्यमियों को राह दिखाई और कम खर्च पर मालगाड़ी से असम तक खाद पहुंचनी शुरू हो गई। महज तीस लाख में 21 वैगन में 27 हजार बोरी जैविक खाद लदी मालगाड़ी असम तक भेजकर बेलघाट निवासी उद्यमी श्रीनारायण सिंह कौशिक उत्साहित हैं। कहते हैं, सड़क मार्ग से एक टन खाद भेजने में छह हजार रुपये खर्च होते थे।

    Gorakhpur Fertilizer गोरखपुर में खाद कारखाना। जागरण


    आज रेलवे से एक टन खाद भेजने में सिर्फ 18 सौ रुपये लग रहे हैं। असम तक भेजने में एक बोरी खाद की कीमत करीब तीन गुणा बढ़ जा रही थी। ढुलाई में खर्च कम लगने से असम के किसान भी उत्साहित हैं। चाय बगान के चार ग्रुप के किसानों ने उन्हें अभी से पर्याप्त मात्रा में खाद भेजने का आर्डर कर दिया है।

    रेलवे ने भी खलीलाबाद से नियमित खाद की लदान करने का आश्वासन दिया है। रेलवे स्टेशन पर माल लदान के लिए अलग से प्लेटफार्म तैयार किया जा रहा है। जैविक खाद के फायदे बताते हुए उन्होंने कहा कि मृदा को पोषक तत्व मिल जाते हैं।

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    रेलवे की बिज़नेस डेवलपमेंट यूनिट द्वारा लोडिंग के लिए निरंतर प्रयास किया जा रहा है, जिसके फलस्वरूप नई लोडिंग मिली है। जिसमें खलीलाबाद से आर्गेनिक फर्टिलाइज़र की लोडिंग की गई है। इस तरह की पहल से क्षेत्र में नए अवसर बनेंगे। व्यापारी रेलवे के माध्यम से सुविधाजनक तरीके से सामान भेज सकेंगे। - पंकज कुमार सिंह, मुख्य जनसंपर्क अधिकारी- पूर्वोत्तर रेलवे

    फसलें रसायनिक खादों के दुष्प्रभाव से बच जाती हैं। साथ ही उत्पादन भी बढ़ जाता है, किसानों को उसका रेट अधिक मिलता है। वह सुगर केन के वेस्ट प्रोडक्ट से जैविक खाद बनाते हैं, जिससे मृदा को प्रचूर मात्रा में पोषक तत्व मिल जाता है।