यहां चालक-गार्ड खुद बंद करते हैं क्रासिंग, फिर अागे बढ़ती है ट्रेन
पूर्वोत्तर रेलवे के तीन रेल खंडों पर ट्रेनें प्रत्येक समपार फाटकों पर रुकते हुए चलती हैं। इन फाटकों पर न सिग्नल है और न झंडी। लोको पायलट और गार्ड अपनी सूझबूझ से ही ट्रेन चलाते हैं।
गोरखपुर, प्रेम नारायण द्विवेदी। बात कुछ अटपटी है, लेकिन सोलह आने सच। पूर्वोत्तर रेलवे वाराणसी मंडल के तीन रेल खंडों पर आज भी गाडिय़ां प्रत्येक समपार फाटकों पर रुकते हुए चलती हैं। इन फाटकों पर न सिग्नल है और न झंडी। लोको पायलट और गार्ड अपनी सूझबूझ से ही ट्रेन चलाते हैं। वे खुद ही ट्रेन से उतरकर क्रॉसिंग पार कराते हैं।
सलेमपुर-बरहज के बीच दो, हथुआ- पंचदेवरी के बीच 12 और महराजगंज- मसरख रेलमार्ग के बीच 11 सहित कुल 25 समपार फाटकों पर गेटमैन तैनात नहीं हैं। इन फाटकों पर पहुंचते ही ट्रेन बिना रेड सिग्नल के रुक जाती है। सहायक लोको पायलट इंजन से उतरकर फाटक बंद कर ट्रेन को पास कराते हैं। ट्रेन पास कराने के बाद गार्ड स्थानीय लोगों की आवाजाही के लिए फाटक को खोल देते हैं। हथुआ-पंचदेवरी 31 किमी रेलमार्ग पर तो गार्ड के साथ एक कांटावाला भी चलता है। वह फाटक बंद करने के बाद सिटी बजाते हुए ट्रेन को पास कराता है, फिर गार्ड के साथ आगे बढ़ जाता है। हथुआ-पंचदेवरी और सलेमपुर-बरहज रेलमार्ग पर तो यह व्यवस्था बहुत पहले से चली आ रही है, लेकिन रेलवे प्रशासन ने महराजगंज- मसरख नई रेल लाइन पर भी इस अंग्रेजों के जमाने की व्यवस्था को लागू कर दिया है। यह तब है जब इस वर्ष पूर्वोत्तर रेलवे के समस्त मानव रहित फाटकों को मानव सहित कर दिया गया है। फाटकों पर पूर्व सैनिक तैनात किए जा रहे हैं।
घर से दौड़कर पकड़ लेते हैं ट्रेन
इन रूटों पर सिर्फ लोकल ट्रेनें चलती हैं। प्रत्येक समपार फाटकों पर रुकने के चलते लोग घर से दौड़कर ट्रेन पकड़ लेते हैं। लेकिन इससे रेलवे की आय में चपत भी लगती है। टिकटों की बुकिंग बहुत कम होती है।
फाटकों पर ही जल जाता 400 लीटर डीजल
ट्रेन प्रत्येक फाटक पर कम से कम दस मिनट रुकती है। खड़े इंजन में प्रति घंटा औसत 25 लीटर डीजल जलता है। प्रति रुकावट यानी रुककर चलने में अतिरिक्त 12 से 15 लीटर तेल खर्च होता है। ऐसे में प्रत्येक क्रॉसिंग पर खड़े होने और चलने में ही प्रति घंटा औसत 50 लीटर डीजल खर्च हो जाता है। औसत प्रत्येक क्रॉसिंग पर लगभग आठ लीटर डीजल जल जाता है। ऐसे में तीनों रेल खंडों पर एक ट्रेन के एक बार बार आने-जाने में सिर्फ फाटकों पर ही कम से कम 400 लीटर डीजल खर्च हो जाता है।
इस संबंध में पूर्वोत्तर रेलवे के सीपीआरओ संजय यादव ने कहा कि जिन रेलमार्गों पर एक से दो ट्रेनें ही चलती हैं, वहीं इस तरह की व्यवस्था लागू है। सलेमपुर-बरहज, हथुआ-पंचदेवरी व महराजगंज-मसरख रूट के फाटकों पर गेटमैन तैनात नहीं हैं।