Chaurichaura Shatabdi Mahotsav: छह सुनवाई में महामना पं. मदनमोहन मालवीय ने बचाई थी 151 की जान
चौरी चौरा की घटना अंग्रेजी सरकार के लिए अप्रत्याशित थी। वह भारतीय के मन में इस बात का डर बनाए रखना चाहती थी कि किसी भी विद्रोह पर वह क्रूर हुक्मरान ही है इसलिए घटना की विवेचना पक्षपात पूर्ण तरीके से की गई। 225 लोगों को अभियुक्त बनाया गया।

गोरखपुर, जेएनएन। चौरी-चौरा जनप्रतिरोध ने अंग्रेजों के होश उड़ा दिए थे। 1857 के स्वतंत्रता संघर्ष के बाद यह पहला मौका था, जब सरकारी तंत्र के खिलाफ किसान इतना मुखर हुए। महज तीन साल पहले जलियांवाला बाग में निर्दोषों को गोलियों से भूनने की घटना लोगों के जेहन में थी और अंग्रेजी सरकार का बर्बर चेहरा सामने रख रही थी। इतिहासकार कहते हैैं कि चौरी चौरा की घटना अंग्रेजी सरकार के लिए अप्रत्याशित थी। वह भारतीय के मन में इस बात का डर बनाए रखना चाहती थी कि किसी भी विद्रोह पर वह क्रूर हुक्मरान ही है, इसलिए घटना की विवेचना पक्षपात पूर्ण तरीके से की गई। 225 लोगों को अभियुक्त बनाया गया। 172 लोगों को मृत्युदंड दे दिया। जागीरदारों से जुड़े लोगों को शक का लाभ देकर छोड़ दिया गया। किसानों की मर्सी अपील भी खारिज कर दी गई।
बौखला गई थी ब्रिटिश हुकूमत, देना चाहती थी कड़ा संदेश
वहीं, भारतीयों के प्रत्युत्तर देने की इस ताकत को कांग्रेस सहित कई बड़े नेताओं ने भी हाशिये पर रख दिया। चौरी चौरा पुस्तक के लेखक सुभाष चंद्र कुशवाहा कहते हैैं कि सेशन कोर्ट के फैसले के खिलाफ महामना पं. मदनमोहन मालवीय ने हाईकोर्ट में अपील की। इस पूरे मामले की कुल छह सुनवाई हुई। 24 मार्च 1922 को जब फैसला आया तो सेशन कोर्ट द्वारा 172 लोगों की फांसी का फैसला हाईकोर्ट को बदलना पड़ा। हाईकोर्ट ने 19 सेनानियों को फांसी, 14 को आजीवन कारावास, 19 को 8 साल, 57 को पांच साल और बीस को तीन-तीन साल की सजा दी। दो सेनानियों की मौत ट्रायल के दौरान हो गई थी।
सेशन कोर्ट ने 172 को सुनाई थी फांसी, 151 को बचा लिया
दीन दयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय के पूर्व विभागाध्यक्ष प्रो. हिमांशु चतुर्वेदी कहते हैं कि कांग्रेस नेताओं ने इस पूरे प्रकरण को नकार दिया था। बाबा राघवदास ने मुकदमे के लिए चंदा इकट्ठा किया था ताकि वकालत से जुड़े खर्च को वहन किया जा सके। सब कुछ खो चुके किसानों पर बोझ न पड़े। महामना मुकदमा लड़े और 151 को फांसी से बचा लिया।

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