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    Interview: भारतीय महिला हॉकी प्लेयर प्रीति दुबे ने संघर्ष के दिनों को किया याद, कहा- 'हार से निकलती है जीत की राह'

    Updated: Thu, 05 Dec 2024 12:29 PM (IST)

    भारतीय महिला हॉकी टीम की फारवर्ड खिलाड़ी प्रीति दुबे ने अपने संघर्ष के दिनों को याद किया। उन्होंने बताया कि कैसे उन्होंने एथलेटिक्स से हॉकी तक का सफर तय किया और कैसे वीर बहादुर सिंह स्पोर्ट्स कॉलेज ने उनके जीवन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। प्रीति ने यह भी बताया कि कैसे उन्होंने टीम से बाहर होने के बाद भी हार नहीं मानी और कड़ी मेहनत से वापसी की।

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    गोरखपुर निवासी प्रीति दुबे, हॉकी खिलाड़ी- जागरण

    भारतीय महिला हाकी टीम की फारवर्ड खिलाड़ी व ओलिंपियन प्रीति दुबे का कहना है कि सफलता से पहले तरह-तरह की चुनौतियां आतीं हैं। कई बार प्रयास में मिली हार से मनोबल टूट जाता है लेकिन इससे घबराने की जरूरत नहीं है। उसी हार में जीत की राह छिपी होती है जिसे तलाश कर आगे बढ़ने की जरूरत है। खेल में गीता का वह श्लोक और भी प्रासंगिक हो जाता है, जिसमें कहा गया है कि बिना फल की चिंता किए बस कर्म करते रहिए। दैनिक जागरण के वरिष्ठ संवाददाता प्रभात कुमार पाठक से विशेष बातचीत में ओलिंपियन प्रीति दूबे ने अपने संघर्ष के दिनों को याद किया और सफलता की कहानी सुनाई। प्रस्तुत है बातचीत के प्रमुख अंश... ।

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    -सुना है आप शुरू में एथलेटिक्स की खिलाड़ी थीं, हॉकी में रुचि कैसे बढ़ी और इसका चयन कैसे किया? आज आप सफलता के इस मुकाम पर हैं इसके लिए कितनी मेहनत करनी पड़ी?

    - स्कूल के दिनों में जब भी कोई प्रतियोगिता होती थी मैं उसमें बढ़-चढ़कर हिस्सा लेती थी। खासकर दौड़ में तो जरूर भाग लेती थी। वर्ष 2007 में स्कूल की तरफ मेरा चयन ओपन मैराथन के लिए किया गया। उस समय मैं एनई रेलवे इंटर कालेज में पढ़ती थी और नौ वर्ष की थी।

    सैयद मोदी रेलवे स्टेडियम में हुए तीन किमी के मैराथन में भाग लिया और प्रथम स्थान प्राप्त किया। उस समय मेरे पापा अवधेश कुमार दूबे रेलवे में शंटिंग मास्टर और पूर्व ओलिंपियन प्रेम माया मैम वहां क्रीड़ाधिकारी थीं। वे हमारे खेल से इतना प्रभावित हुईं कि उन्होंने मेरे पापा को हॉकी खेलने के लिए प्रेरित करते हुए अभ्यास के लिए क्षेत्रीय क्रीड़ांगन में भेजने को कहा। पापा राजी हो गए। हालांकि उन्होंने हमें अभ्यास के लिए भेजना शुरू तो जरूर किया लेकिन हॉकी के लिए नहीं एथलेटिक्स के लिए।

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    उसी दौरान मेरा राज्य स्तरीय मैराथन के लिए चयन हो गया। मैं नियमित स्टेडियम जाती थी और वहां बैठकर हॉकी का मैच देखती थीं। धीरे-धीरे मेरी रुचि हॉकी में बढ़ने लगी। उस समय वहां हॉकी की कोच अनीता मैम थी, जिनकी देखरेख में मैं हॉकी का अभ्यास करने लगी। यह बात घरवालों को भी नहीं बताया। बाद में समाचार पत्र से पता चला कि मैराथन स्थगित हो गया है।

    प्रीति दुबे। जागरण


    इसके बाद पापा ने स्टेडियम जाना बंद करा दिया। इसी दौरान अनीता मैम मेरे घर आईं और पापा को प्रेरित किया कि वह मुझे हॉकी खेलने के लिए प्रोत्साहित करें। अनीता मैम के कहने पर पापा ने अभ्यास के लिए फिर से स्टेडियम भेजना शुरू किया और उसी समय से हॉकी मेरे करियर में शामिल हो गया।

    -स्पोर्ट्स कालेज का आपके जीवन में कितना योगदान है? यहां से भारतीय हॉकी टीम तक के सफर कैसे तय किया?

    - वीर बहादुर सिंह स्पोर्ट्स कालेज की बदौलत ही आज मैं हॉकी टीम में हूं। यहां हमें खेलने का बेहतर माहौल मिला। कोच शशि नवैत की देखरेख में हॉकी की स्टीक पकड़ना सीखा। मैं तो सिर्फ एक सामान्य पत्थर थी, जिसे मेरी कोच ने तराशा। यही से राज्य स्तरीय व राष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में प्रतिभाग किया।

    2009 में सबसे पहले छत्तीसगढ़ के राजनन गांव में आयोजित सब जूनियर नेशनल हॉकी चैंपियनशिप में भाग लिया। उसमें सफलता भी मिली। तब से आज तक मैंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। l दो बार टीम से और एक बार कैंप से बाहर हुईं। इस दौरान आपकी मनोदशा क्या रहीं। कैसे इससे अपने आप को उभारा? - वर्ष 2018 में मैं टीम से और 2019 में कैंप से बाहर हुईं। फिर भी मैंने हार नहीं मानी। कोराना काल का समय था।

    सभी स्टेडियम बंद थे। उस दौरान मैं गोरखपुर में थी। स्पोर्ट्स कालेज गई और कोच शशि मैम की देखरेख में कड़ी मेहनत की। 2020 में फिर मैं कैंप में चुनी गई। एक वर्ष तक रहीं और फिर हमें बाहर होना पड़ा। इसके बार भी मैं निराश नहीं हुईं और कड़ी मेहनत की। 2024 में टीम में फिर से वापसी हुई। आज चयनकर्ता मेरे प्रदर्शन से खुश हैं।

    -हाल ही में बिहार के राजगीर में हुए एशिया चैंपियनशिप में चीन को हराकर स्वर्ण पदक जीतने के बाद आपका अगला लक्ष्य क्या है?

    - इस जीत से पूरी टीम उत्साह से लबरेज है। सभी खिलाड़ी ऊर्जा से भरे हैं। अब हमारा अगला लक्ष्य वर्ष 2028 में लास एंजिल्स में होने वाले ओलिंपिक में देश के गोल्ड मेडल लाना है। इसके लिए हम सब कड़ी मेहनत कर रहे हैं।

    वीर बहादुर सिंह स्पोर्ट्स कालेज के मैदान पर अभ्यास करतीं प्रीति दुबेl जागरण


    -युवा खिलाड़ियों को आप क्या संदेश देना चाहेंगी। विपरीत परिस्थिति में वह कैसे अपनी प्रतिभा निखारें?

    -युवा खिलाड़ियों से मैं यही कहना चाहतीं हूं कि चाहे कुछ भी हो जाए हार नहीं मानना है। कड़ी मेहनत व अनुशासन से हम कोई लक्ष्य हासिल कर सकते हैं। गीता के श्लोक कर्म करो, फल की चिता न करो पर मैं काफी विश्वास करती हूं। मैदान में नियमित अभ्यास करें। अभ्यास के समय सकारात्मक सोच काफी मायने रखता है। मैंने भी यही किया और आज इस मुकाम पर हूं।

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    -सुना है स्पोर्ट्स कालेज में पढ़ाई के दौरान आपने कुछ संकल्प किया था। बाद में वह पूरा भी हुआ।

    -यह सही बात है। वर्ष 2009 में मैं कक्षा सात में पढ़ती थी। उस दौरान कार्यालय में लगे बोर्ड को देखकर मैंने अपने कोच शशि मैम से सवाल किया कि इस पर सभी खेल के खिलाड़ियों के नाम हैं। हॉकी में किसी का नहीं है। इस पर कोच शशि ने कहा कि हॉकी में किसी का ऐसा प्रदर्शन ही नहीं है, जिससे उनका नाम यहां अंकित हो। तभी मैं बोल पड़ी हॉकी में सबसे पहले यहां मेरा नाम लिख जाएगा। मेरी वह बात बाद में सही साबित हुई और 2016 रियो ओलिंपिक के बाद आज मेरा नाम वहां अंकित है, जिसे देखकर गर्व होता है।