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    सैलानियों के लिए मुसीबत बने पथभ्रष्ट बौद्ध भिक्षु, पूरी दुनिया में खराब हो रही बौद्ध धर्म की छवि

    By JagranEdited By:
    Updated: Fri, 10 Aug 2018 09:05 AM (IST)

    जीवन भर जिस धम्म की राह पर चलते हुए शांति, अ¨हसा, मैत्री, करुण की बात भगवान बुद्ध ने की, आज उसी का उपहास किया जा रहा है। कुशीनगर में महापरिनिर्वाण स्थली पर कुछ ऐसे भिक्षु हैं जो इस धर्म का कतई पालन नहीं कर रहे हैं। उन्हें नकली बौद्ध भिक्षु बताया जा रहा है। ऐसे ही एक नकली बौद्ध भिक्षु के शरीर से चीवर को उतार दिया गया। बौद्ध भिक्षुओं ने नकली बौद्ध भिक्षुओं को पकड़ने और उनके शरीर से चीवर उतारने का काम शुरू कर दिया है।

    सैलानियों के लिए मुसीबत बने पथभ्रष्ट बौद्ध भिक्षु, पूरी दुनिया में खराब हो रही बौद्ध धर्म की छवि

    अजय कुमार शुक्ल, गोरखपुर : जीवन भर जिस धम्म की राह पर चलते हुए शांति, अ¨हसा, मैत्री, करुणा व अपरिग्रहण की बात भगवान बुद्ध ने की। इस धम्म व त्याग के चीवर पर उनकी ही महापरिनिर्वाण स्थली पर दाग लगा तो सवाल खड़ा होना लाजिमी है। चीवर ओढ़ धम्म से विमुख हुए ये पथभ्रष्ट बौद्ध भिक्षु, जहां बौद्ध धर्म को बदनाम कर रहे हैं, वहीं देशी-विदेशी सैलानियों के लिए भी मुखीबत बन कर खड़े हुए हैं।

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    अंतरराष्ट्रीय पर्यटक स्थली कुशीनगर में ऐसे ही एक बौद्ध भिक्षु के पथभ्रष्ट होने की बात कहते हुए भिक्षु संघ ने उसका चीवर उतार दिया। बुद्ध स्थली व धम्म बदनाम न हो इसलिए कुशीनगर भिक्षु संघ ने प्रशासन से मदद की गुहार लगाई है। जिलाधिकारी को शिकायती पत्र सौंप कुशीनगर के ऐसे पांच बौद्ध भिक्षुओं का नाम लिखित रूप से देते हुए कार्रवाई की मांग की है। उनका कहना है कि ये बौद्ध भिक्षु धम्म का पालन नहीं करते, केवल सैलानियों से दान लेने के लिए पवित्र चीवर व धम्म को बदनाम कर रहे हैं। इनके इस कृत्य से पूरी दुनिया में बौद्ध भिक्षुओं की साख पर बट्टा लग रहा है तो बौद्ध धर्म बदनाम भी हो रहा है।

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    क्या है चीवर का महत्व

    -बौद्ध धर्म में चीवर का बड़ा महत्व है। चीवर दान बौद्ध धर्म में सबसे बड़े दान के रूप में स्थान रखता है। बौद्ध धर्म ग्रहण करने के बाद चीवर पहनने (विशेष अंग वस्त्र) वाले व्यक्ति को संन्यासी, गृह त्यागी, ब्रह्माचारी होने के साथ शील का पालन करना होता है। बौद्ध भिक्षु धर्म का संवाहक होता है। इसलिए वह पूरी तरह से आदर का पात्र भी माना जाता है। इसलिए चीर को त्याग, धर्म व पवित्रता का प्रतीक माना जाता है।

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    यह है बौद्ध भिक्षु बनने का नियम

    -बौद्ध धर्म ग्रहण करने के बाद श्रामणेर के रूप में गुरु के साथ रहकर धम्म का आचरण सीखना होता है। 10 शील व 75 शेखियों का पालन करेंगे। इसके बाद पांच साल तक गुरु की शरण में ही रहेंगे, कहीं और नहीं जा सकते। इस दौरान शील के सभी 227 नियमों का पालन करेंगे। इस अवधि के बाद गुरु की अनुमति से ही वे कहीं जा सकेंगे। गृहस्थ का जीवन नहीं जी सकते, एक संन्यासी के रूप में रहना होगा और धम्म का पालन करना होगा।

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    धर्म परिवर्तन के साथ ही बदल जाती है जाति

    -बौद्ध धर्म ग्रहण करते ही व्यक्ति की जाति भी बदल जाती है। वह अल्पसंख्यक जाति का हो जाता है। इससे इतर पथभ्रष्ट बौद्ध भिक्षु अपनी जाति भी नहीं बदलते और न ही धम्म का आचरण ही करते हैं। इसलिए संघ इनके विरुद्ध कार्रवाई करने को आगे आता है।

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    शिकायत के बाद जिलाधिकारी ने शुरू कराई जांच

    -भिक्षु संघ द्वारा जिलाधिकारी से शिकायत की गई तो उन्होंने इसकी जांच पुलिस अधीक्षक को सौंप रिपोर्ट मांगी है। हालांकि धार्मिक मामले में प्रशासनिक कार्रवाई को लेकर अधिकारी पशोपेश में हैं।

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    पथभ्रष्ट है पांचों बौद्ध भिक्षु: भिक्षु संघ अध्यक्ष

    कुशीनगर भिक्षु संघ अध्यक्ष अग्ग महापंडित भदंत ज्ञानेश्वर ने कहा कि ये पांचों बौद्ध भिक्षु पथभ्रष्ट हैं और धम्म का पालन नहीं कर रहे हैं। केवल दान लेने के लिए चीवर धारण कर लिया जो पूरी तरह से गलत है। इससे परिनिर्वाण स्थली कुशीनगर की छवि पूरी दुनिया में खराब हो रही है। बौद्ध धर्म बदनाम हो रहा है।

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    कराई जा रही जांच: डीएम

    जिलाधिकारी डा. अनिल कुमार ¨सह ने कहा कि भिक्षु संघ की ओर से मिली शिकायत के आधार जांच का आदेश दिया गया है। धार्मिक मामला है, इसमें जो भी नियमसंगत होगा, किया जाएगा।