गोरखपुर सबरंग: विविध रंगों वाली रामलीला, यहां आस्था और संस्कृति का होता है संगम
गोरखपुर में रामलीला की परंपरा सदियों पुरानी है जो धार्मिक आस्था और सांस्कृतिक एकता का प्रतीक है। बर्डघाट की रामलीला सबसे पुरानी है जिसके बाद आर्यनगर धर्मशाला बाजार और विष्णु मंदिर की रामलीलाएं शुरू हुईं। बर्डघाट रामलीला समिति राघव-शक्ति मिलन का आयोजन करती है। आर्यनगर की रामलीला में गोरक्षपीठाधीश्वर की विजय शोभायात्रा शामिल होती है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने रामलीला मैदानों के विकास पर ध्यान दिया है।

गोरक्ष धरा की रामलीला पूर्वांचल की उन प्राचीन सांस्कृतिक परंपराओं में से एक है, जो न केवल धार्मिक आस्था बल्कि सामाजिक एकता और सांस्कृतिक चेतना का भी प्रतीक है। स्थानीय राजाओं और जनसामान्य के सहयोग से सैकड़ों वर्ष पहले विकसित हुई यह परंपरा और समय के साथ यह एक भव्य आयोजन का रूप ले चुकी है।
शहर की सांस्कृतिक जीवनधारा बन चुकी है। रामलीला मंचन के माध्यम से रामायण के प्रसंग-राम जन्म, वनवास, सीता हरण, रावण वध-केवल धार्मिक उत्सव ही नहीं रहे, बल्कि लोगों के लिए नैतिक मूल्यों, आदर्श जीवन और सांस्कृतिक धरोहर को आत्मसात करने का अवसर भी बन चुके हैं। दशहरा करीब आ गया है, ऐसे में भगवान श्रीराम की लीलाओं की प्रस्तुति का क्रम एक बार फिर शुरू हो गया है।
इसके जरिये शहर भक्ति व संस्कृति की ज्योति से आलोकित होने लगा है। अवसर है नगर में आयोजित होने वाली रामलीलाओं के इतिहास को जानने का, उसके अवलोकन के लिए लोगों को आमंत्रित करने का। नगर में आयोजित होने वाली रामलीला का इतिहास बताती वरिष्ठ संवाददाता डा. राकेश राय की रिपोर्ट...
रामलीलाओं की शुरुआत का कोई ऐतिहासिक साक्ष्य तो नहीं है लेकिन मान्यता है भगवान राम के वनवास के दौरान अयोध्यावासियों ने 14 वर्ष की वियोग की अवधि उनकी बाल लीलाओं को खेलकर बिताई थी। बाद में उन्हीं बाल लीला ने संपूर्ण रामलीला का रूप ले लिया, जिसे आज पूरी भव्यता के साथ संपूर्ण उत्तर भारत में खेला जाता है। बहुत से लोग रामलीला की अभिनय परंपरा की शुरुआत का श्रेय गोस्वामी तुलसीदास को देते हैं।
ऐसा मानने वाले लोग इसकी शुरुआत का स्थान अयोध्या और काशी बताते हैं। लेकिन इन सभी मान्यताओं के बीच हम रामलीला को पौराणिक मौखिक परंपरा का रंग-आख्यान भी मान सकते हैं। वक्त के साथ रामलीलाओं के मंचन और उनके स्वरूप में बदलाव भले आया हो लेकिन इसे लेकर शायद ही किसी को संदेह हो कि की यह परंपरा समृद्ध ही हुई है। यह बात गोरखपुर के परिप्रेक्ष्य में भी सही साबित होती है। यहां भी रामलीला मंचन ने बदलाव के दौर में समय के साथ कदमताल किया है और साल-दर-साल समृद्ध होती गई है।
ऐसे हुई गोरखपुर में रामलीला की शुरुआत
गोरखपुर में रामलीला के मंचन की शुरुआत कब हुई, इस पर स्पष्ट रूप से कुछ कहना है तो मुश्किल है लेकिन संगठित रूप से शहर के लोगों को इसके अवलोकन का अवसर 1858 में मिला। जाहिर है कि इसे लेकर असंगठित प्रयास का इतिहास काफी पुराना होगा लेकिन लिखित इतिहास भी 171 साल पुराना है, जो शहर के लोगों के रामलीला प्रेम और श्रद्धा का प्रमाण है।
संगठनात्मक शुरुआत की बात करें तो इसका श्रेय जाता है बर्डघाट की रामलीला को, क्योंकि इसी रामलीला समिति को सबसे पुरानी समिति की पहचान प्राप्त है। लंबे समय तक संगठित रूप से इसी रामलीला समिति की ओर से रामलीला का मंचन होता रहा।
1914 में आर्यनगर की रामलीला शुरू हुई और उसके महज चार वर्ष के बाद यानी 1918 में धर्मशाला बाजार की रामलीला का शुभारंभ हो गया। 1972 से विष्णु मंदिर असुरन चौक की ओर से रामलीला की शुरुआत हुई। वर्तमान में इन चारो समितियों की ओर से प्रतिवर्ष पूरे उत्साह के साथ राम लीला का मंचन किया जाता है। इस बार भी यह क्रम शुरू हो चुका है।
बर्डघाट रामलीला : नवरात्र से दो दिन पहले होती है शुरुआत
बर्डघाट रामलीला मैदान में होनेे वाली रामलीला के मंचन की शुरुआत नवरात्र के दो दिन पहले होती है। इसकी शुरुआत का श्रेय पुरुषोत्तम दास, गुलाब चंद, लखन चंद और बाबू जगन्नाथ अग्रवाल को जाता है। यहां रामलीला के मंचन के लिए अयोध्या से कलाकार बुलाए जाते हैं। हर दिन रामलीला देखने के लिए हजारों लोगों की भीड़ उमड़ती है।
राम बारात व वन यात्रा के जुलूस से जनता बड़ी संख्या में जुड़ती है। आस्था व श्रद्धा के साथ उसका हिस्सा बनती है। बर्डघाट रामलीला मैदान पर होने वाली रामलीला का मंचन देखने के लिए शहर ही नहीं बल्कि आसपास के गांव के लोग भी आते हैं। बहुत से परिवार के लोग तो इसे अपनी परंपरा मानते हैं। इस बार भी अयोध्या की जनक दुलारी आदर्श सेवा समिति रामलीला के मंचन के लिए शहर में डेरा डाल चुकी है। 18 सितंबर से मंचन की शुरुआत भी कर चुकी है।
बर्डघाट रामलीला में राम विवाह के मंचन में प्रस्तुति देते कलाकार। जागरण
बर्डघाट समिति कराती है राघव का शक्ति से मिलन
बर्डघाट रामलीला समिति रामलीला के आयोजन के क्रम में एक अद्भुत आयोजन करती है। भगवान श्रीराम को मां दुर्गा से मिलाती है। इस परंपरा को वह राघव-शक्ति मिलन का नाम देती है। इस मिलन की शुरुआत 1948 में मोहन लाल यादव, रामचंद्र सैनी, मेवालाल यादव और रघुवीर मास्टर ने राघव शक्ति मिलन कमेटी की स्थापना करके की। तभी से इस परंपरा का निर्वहन निरंतर हो रहा है।
होता यह है कि विजयदशमी के दिन बर्डघाट रामलीला के भगवान श्रीराम, रावण का वध करने के बाद माता सीता, भाई लक्ष्मण और भक्त हनुमान के साथ विजय जुलूस लेकर दुर्गा मिलन चौक यानी बसंतपुर तिराहे पर पहुंचते हैं। वहां शहर की प्राचीनतम दुर्गाबाड़ी की प्रतिमा का पूजन-अर्चन करते हैं। आरती कर रावण से युद्ध में विजय दिलाने के लिए उनके प्रति आभार व्यक्त करते हैं और आशीर्वाद प्राप्त करते हैं।
इस अद्भुत पल को देखने के लिए हजारों की संख्या में श्रद्धालु बसंतपुर पहुंचते हैं। ऐसी परंपरा देश में और कहीं देखने को नहीं मिलती है। इसके लिए बर्डघाट रामलीला समिति और दुर्गाबाड़ी की बंगाली समिति की हर वर्ष सराहना होती है।
आर्यनगर रामलीला : गोरखनाथ मंदिर से खास रिश्ता
आर्यनगर की रामलीला बर्डघाट की रामलीला के एक दिन बाद यानी नवरात्र के एक दिन पहले पितृपक्ष की चतुर्दशी से शुरू होती है। अंधियारीबाग स्थित मानसरोवर रामलीला मैदान में इसका मंचन होता है। इस रामलीला की शुरुआत 1914 में बाबू गिरधर दास आदि ने की। उन्होंने अपनी मानसरोवर रामलीला मैदान की जमीन रामलीला समिति को दे दी।
यहां रावण वध दशहरे के दूसरे दिन होता है। दशहरे के दिन परंपरागत रूप से गोरक्षपीठाधीश्वर की विजय शोभायात्रा गोरखनाथ मंदिर से निकलती है। पूरी भव्यता के साथ मानसरोवर रामलीला मैदान में पहुंचती है। वहां पहुंचकर गोरक्षपीठाधीश्वर भगवान श्रीराम, माता सीता व लक्ष्मण जी की आरती उतारते हैं और विजय के लिए श्रीराम का राजतिलक करते हैं।
इस रामलीला का मंचन देखने के लिए भी प्रतिदिन सैकड़ों लोगों की भीड़ लगती है। गोरक्षपीठ से निकलने वाली शोभायात्रा का भी पूरे उत्साह के साथ हिस्सा बनती है। इस परंपरा के चलते आर्यनगर की रामलीला समूचे पूर्वांचल में विशेष मानी जाती है। इसकी ख्याति पूरे उत्तर भारत तक पहुंचती है।
धर्मशाला बाजार में पूर्णिमा के दिन होता है रावण वध
धर्मशाला बाजार की रामलीला की खासियत यह है कि इसका मंचन नवरात्र के तीसरे दिन शुरू होता है। रावण वध पूर्णिमा के दिन होता है। धर्मशाला बाजार की रामलीला की शुरुआत 1918 में अभयचंद, रामप्रसाद पांडेय आदि ने की थी। तब रामलीला के लिए कोई निश्चित जमीन नहीं थी तो कभी किसी के घर तो कभी किसी स्कूल में रामलीला का मंचन होता था।
1946 में रामलीला समिति ने रामलीला के लिए धर्मशाला बाजार में जमीन खरीद ली। तभी से यह रामलीला अपनी जमीन पर अनवरत रूप से मंचित हो रही है। इस बार बार भी इसके भव्य मंचन की तैयारी हो चुकी है। शुरुआत नवरात्र के तीसरे दिन से होने जा रही है।
विष्णु मंदिर रामलीला : दशहरे बाद होता है मंचन
यह रामलीला दशहरा के पांचवें दिन बाल्मीकि जयंती के दिन से शुरू होती है। इस रामलीला में रामलीला के अलावा प्रवचन, श्रीराम कथा व श्रीविष्णु महायज्ञ कार्यक्रम भी होते हैं। इसमें श्रद्धालुओं की बड़ी भीड़ होती है। प्रतिदिन दो से तीन हजार श्रद्धालु विविध कार्यक्रमों में भाग लेते हैं। राम बरात व वनयात्रा के जुलूस में भी श्रद्धालुओं की बड़ी संख्या भाग लेती है।
बसंतपुर चौक पर राघव शक्ति मिलन कार्यक्रम। फाइल फोटो
इस रामलीला की शुरुआत सबसे बाद यानी 1972 में परशुराम गुप्ता, रूपचंद मौर्य, सुशील कुमार श्रीवास्तव, गोरख प्रसाद व राधेश्याम श्रीवास्तव ने की था। पहले वर्ष केवल भरत-मिलाप का कार्यक्रम हुआ। दूसरे वर्ष से पूरी रामलीला मंचित की जाने लगी। 2006 तक रामलीला के साथ कभी-कभी प्रवचन भी आयोजित होता था। लेकिन 2006 से रामलीला के साथ प्रवचन, कथा, संकीर्तन व महायज्ञ भी शुरू हुआ।
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भंडारे के साथ आयोजन का समापन होने लगा। यह सिलसिला आज भी जारी है। ऐसे ही आयोजनों की इस वर्ष भी तैयारी है।
इस वर्ष समितिवार रामलीला आयोजन
समिति शुभारंभ | रावण वध |
बर्डघाट रामलीला | 18 सितंबर 02 अक्टूबर |
आर्यनगर रामलीला | 22 सितंबर 03 अक्टूबर |
धर्मशाला रामलीला | 26 सितंबर 06 अक्टूबर |
विष्णु मंदिर रामलीला | 07 अक्टूबर 16 अक्टूबर |
चमका दिए गए रामलीला मैदान
रामलीला को लेकर गोरक्षपीठ हमेशा संवेदनशील रही है। आर्यनगर रामलीला से जुड़ी गोरक्षपीठ की विजयशोभा यात्रा की परंपरा इसका प्रमाण और आधार है। रामलीला मंचन को लेकर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ तो इतने संजीदा हैं कि प्रदेश का मुखिया बनने से पहले वह मंचन के दौरान होने वाले आयोजनों का भी हिस्सा बना करते थे।
ऐसे में प्रदेश का नेतृत्व संभालने के बाद उन्होंने रामलीला मैदान की दशा सुधारने पर भी ध्यान दिया है। बर्डघाट रामलीला मैदान को चमका दिया। मानसरोवर मैदान का भी स्वरूप बदल दिया। इससे दोनों ही मैदान में रामलीला के मंचन को भव्यता मिली है।
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