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    गोरखपुर सबरंग: योगानंद ने योग से गोरखपुर को दिलाई अंतरराष्ट्रीय पहचान, इनके नाम पर बनी है यह सड़क

    गोरखपुर की नखास चौक सड़क अब परमहंस योगानंद के नाम से पहचानी जाएगी जिनकी जन्मभूमि मुफ्तीपुर में है। सीएम योगी के प्रयास से यह पर्यटन केंद्र बन रहा है। योगानंद ने अमेरिका में क्रिया योग का पाठ पढ़ाया। उनका जन्म गोरखपुर में हुआ और बचपन में ही उनका आध्यात्मिक रुझान दिखने लगा था जब वह गोरखनाथ मंदिर में ध्यान करते पाए गए थे।

    By Rakesh Rai Edited By: Vivek Shukla Updated: Sun, 24 Aug 2025 09:11 AM (IST)
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    घोष कंपनी से नखास चौक वाली सड़क की एक पहचान परमहंस योगानंद से है। जागरण

    घोष कंपनी से नखास चौक वाली सड़क की एक पहचान परमहंस योगानंद के बचपन का मकान भी है, जो कोतवाली के बगल बसे मुफ्तीपुर में हुआ करता था। उसी मकान में योगानंद का जन्म हुआ था। उनका बचपन गुजरा था। लंबे समय से यह मकान अपनी इस पहचान का मोहताज था लेकिन अब यह स्थिति नहीं है। उनकी जन्मभूमि 'योगभूमि' के नाम से विकसित हो रही है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के प्रयास से पर्यटन केंद्र के रूप में विकसित हो रही है। ऐसे में उस सड़क को योगानंद के नाम से पहचान मिल रही है।

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    यह वहीं योगानंद हैं, जिन्होंने अमेरिका में रहकर पूरे विश्व को क्रिया योग का पाठ पढ़ाया। जन्मस्थली के रूप में गोरखपुर की चर्चा करके इस शहर का नाम देश-दुनिया में पहुंचाया। योगानंद का जन्म पांच फरवरी 1993 को हुआ। उन दिनों उनके पिता भगवती चरण घोष तत्कालीन बंगाल-नागपुर रेलवे के कर्मचारी के तौर पर गोरखपुर में तैनात थे। उनके आठ वर्ष के गोरखपुर प्रवास के दौरान ही योगानंद यानी मुकुंद लाल घोष (योगानंद का बचपन का नाम) का यहां जन्म हुआ।

    योगानंद के पिता मुफ्तीपुर के उसी घर में किराएदार थे, जिसे योगानंद के जन्मस्थल के रूप में जाना जाता है। हालांकि सेंट एंड्रयूज कालेज में प्राथमिक शिक्षा के दौरान वह गाेरखपुर से चले गए, लेकिन शहर को अपना नाम दे गए। इसका प्रमाण उनके उन भक्तों व शिष्यों का निरंतर गोरखपुर आना है, जो जन्मस्थली पर शीश नवाने आते हैं। गोरखपुर का नाम योगानंद से जोड़कर पूरी दुनिया को अपने गुरु की जन्मस्थली की कहानी सुनाते हैं।

    क्रिया योग को ईश्वर से साक्षात्कार का प्रभावी तरीका मानने वाले योगानंद ने भारतीय योग दर्शन के प्रसार के लिए अमेरिका में 'सेल्फ रियलाइजेशन फेलोशिप' का गठन किया और बाद में हिंदुस्तान में 'योगदा सत्संग' सोसायटी बनाई।

    आटोबायोग्राफी आफ योगी (हिंदी योगी कथामृत) उनकी सबसे ज्यादा पढ़ी जाने वाली किताब है, जिसका अनुवाद कई भाषाओं में हुआ। शहर से योगानंद के जुड़ाव के चलते ही गोरखपुर में यह किताब खूब बिकती है। बहुत से घरों के सेल्फ में पूरे सम्मान के साथ सजती है।

    1920 में सर्वधर्म सम्मेलन में हिस्सा लेने के लिए योगानंद अमेरिका चले गए और वहां से पूरी दुनिया में क्रिया योग का प्रचार-प्रसार किया। सात मार्च 1952 को अमेरिका में ही भारतीय राजदूत विनय रंजन सेन के सम्मान में आयोजित भोज में भारत का गुणगान करते हुए उनका देहावसान हो गया।

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    गोरखनाथ मंदिर से शुरू हुआ था योगानंद का योग

    योगानंद के परिवार के लोग उनमें आध्यात्मिक व्यक्तित्व का दर्शन बचपन से ही करने लगे थे। उन्हें परमहंस योगी के तौर पर देखने लगे थे। इसे लेकर एक किस्सा काफी मशहूर है। एक बार बालक योगानंद ने अपने परिवार वालों से गोरखनाथ मंदिर ले चलने को कहा। व्यस्तता के चलते घर वाले उन्हें मंदिर नहीं ले जा सके तो एक दिन वह अचानक घर से गायब हो गए।

    काफी खोजने के बाद वह गायब होने के अगले दिन सुबह गोरखनाथ मंदिर में ध्यान में लीन बैठे मिले। यह किस्सा इस बात का प्रमाण है कि योगानंद का योग व ध्यान गोरखनाथ मंदिर से शुरू हुआ था। बाबा गोरखनाथ पर उनका अटूट विश्वास था।