जी ललचाए पर रंग-बिरंगी मिठाई न खाएं, कैंसर होने का खतरा; स्वास्थ्य विभाग ने जारी की चेतावनी
गोरखपुर में दशहरे से छठ तक चीनी से बनी रंग-बिरंगी मिठाइयों की मांग बढ़ जाती है जिनमें हाथी घोड़े और ताजमहल जैसी आकृतियाँ शामिल हैं। विक्रेता अधिक बिक्री के लिए अखाद्य रंगों का उपयोग करते हैं जो स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हैं। खाद्य सुरक्षा एवं औषधि प्रशासन विभाग इन रंगों के इस्तेमाल से बचने की सलाह देता है।

दुर्गेश त्रिपाठी, जागरण गोरखपुर। चीनी से बने हाथी-घोड़े, शेर, मीनार, मछली, मुर्गा, झोपड़ी, ताजमहल आदि जैसी रंग-बिरंगी आकृतियां देखकर खाने के लिए जी ललचाने लगता है। बच्चे तो इसके दीवाने हैं ही, मधुमेह से बचे युवा और बुजुर्ग भी इसका सेवन करते हैं। दशहरा से लेकर दीपावली, करवा चौथ, अन्नकूट और छठ तक तो इसकी मांग जबरदस्त बढ़ी रहती है।
ग्रामीण क्षेत्रों में लगने वाले मेले में इसकी बिक्री को देखकर कारोबारी पहले से ही सक्रिय हो जाते हैं। लोगों को ललचाने और ज्यादा बिक्री के लिए चीनी से बनी इन मिठाइयों में अखाद्य रंगों का इस्तेमाल शुरू कर दिया गया है। यह रंग स्वास्थ्य के लिए बहुत हानिकारक होते हैं।
खाद्य सुरक्षा एवं औषधि प्रशासन विभाग रंग से बनी मिठाइयों के इस्तेमाल से बचने की सलाह दे रहा हैं। खाद्य पदार्थों में रंगों का इस्तेमाल हाल के वर्षों में बढ़ गया है। खाद्य सुरक्षा एवं औषधि प्रशासन विभाग ने कुछ शर्तों के साथ खाद्य रंगों के इस्तेमाल की अनुमति दी है लेकिन यह रंग महंगे होते हैं।
इस कारण ज्यादातर कारोबारी अखाद्य रंगों का इस्तेमाल करते हैं। वह इन रंगों को औने-पौने दाम में खरीदकर मिठाई में मिलाते हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि अखाद्य रंग पेट में जाने के बाद बाहर नहीं निकल पाते हैं। यह रंग आंत में इकट्ठा होकर कैंसर का कारण बन सकते हैं। साथ ही लिवर को भी नुकसान पहुंचा सकते हैं।
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प्राचीन समय से हो रहा निर्माण
चीनी के खिलौनों की मिठास से दीपावली पर्व मनाए जाने की परंपरा बहुत पुरानी है। पहले मिठाई निर्माता खाद्य रंगों का इस्तेमाल करते थे। साथ ही लोग शारीरिक श्रम भी बहुत ज्यादा करते थे इसलिए इन मिठाइयों के खाने के बाद भी मधुमेह नहीं होता था। केमिकल युक्त रंग न मिलने से यह मिठाई पेट को भी नुकसान नहीं पहुंचाती थीं लेकिन अब अखाद्य रंगों के इस्तेमाल से सेहत पर संकट खड़ा हो गया है।
रंग खाने वाली चीज नहीं होती है। रंगीन मिठाई से सभी को परहेज करना चाहिए। अखाद्य रंग शरीर में इकट्ठा होकर रोगों का कारण बनते हैं। मिठाई का रंग गाढ़ा है तो यह और भी खतरनाक है। नागरिक अपने स्वास्थ्य को सुरक्षित रखने के लिए अच्छे खाद्य पदार्थों का ही सेवन करें। कोई खाद्य पदार्थ देखने में अच्छा लग रहा है तो यह जरूरी नहीं है वह खाने योग्य भी हो। चीनी से बनी मिठाई के नमूने लिए जाएंगे। - डा. सुधीर कुमार सिंह, सहायक आयुक्त, खाद्य सुरक्षा एवं औषधि प्रशासन।
10 किग्रा चीनी से बनते हैं नौ किलोग्राम खिलौने
सिकरीगंज में मिठाई निर्माता विवेकानंद उर्फ गुड्डू मोदनवाल कहते हैं कि 10 किलोग्राम चीनी से नौ किलोग्राम खिलौने बनते हैं। पहले चाशनी बनती है। फिर इसे लकड़ी के सांचों में डाल दिया जाता है। ठंडा होने पर सांचा खोल देते हैं तो तैयार खिलौना निकल आता है।
खाने में यह काफी कुरकुरे होते हैं और चीनी के कारण भरपूर मीठे भी होते हैं। यह मिठाई खाने में भी काफी कड़क होती है। बच्चों को यह मिठाई काफी पसंद आती है। यह मिठाई दीपावली पर देवी-देवताओं के पूजन में प्रसाद के रूप में चढ़ाई जाती है।
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