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    केला कैसे बन रहा सेहत के लिए खतरनाक? एक ही दिन में बदल रहा कई रंग, सामने आया ये बड़ा 'खेल'

    Updated: Wed, 01 Oct 2025 03:04 PM (IST)

    गोरखपुर में मिलावटखोर पानी में केमिकल डालकर केले को पका रहे हैं जिससे केला जल्दी पीला हो जाता है। पहले कार्बाइड का इस्तेमाल होता था लेकिन अब इथेफान का उपयोग हो रहा है। खाद्य सुरक्षा विभाग के अनुसार केमिकल से पकाया गया केला स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है और इससे पेट संबंधी रोग हो सकते हैं।

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    अम्बेडकर चौक पर शाम चार बजे बिकने के लिए रखा गया हरा केला का रंग बदलकर हुआ पीला। जागरण

    दुर्गेश त्रिपाठी, गोरखपुर। मिलावटखोरों ने ज्यादा कमाई के चक्कर में पानी में केमिकल डालकर केला पकाना शुरू कर दिया है। सुबह बिल्कुल हरा केले का छिलका दोपहर में पीला हो जा रहा है। शाम को छिलका गाढ़ा पीला और केला बिल्कुल गीला हो जा रहा है।

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    रात तक यह केला खाने लायक नहीं रह जा रहा है। दैनिक जागरण ने मंगलवार को आंबेडकर चौक पर कलेक्ट्रेट के दक्षिणी गेट के बगल में सेंट एंड्रयूज डिग्री कालेज के सामने एक ठेले पर रखे केले की अलग-अलग समय पर फोटो कराई। सुबह 10 बजे केले का छिलका बिल्कुल हरा दिखा।

    दोपहर 1:30 बजे छिलका पीला दिखने लगा और शाम तकरीबन 4:30 बजे केले का छिलका गाढ़ा पीला हो चुका था। सुबह जो केला 40 रुपये में एक दर्जन मिल रहा था, शाम पांच बजे उसका रेट 20 रुपये दर्जन कर दिया गया। केला विक्रेताओं का कहना था कि यह केला रात में पूरी तरह खराब हो जाएगा इसलिए जो भी रेट मिलेगा, बेचकर निकल जाएंगे।

    केला पकाने के लिए मिलावटखोर पहले कार्बाइड का इस्तेमाल करते थे। इससे केला पकने में देर होती थी। साथ ही बिक्री न होने पर केला खराब हो जाता था। इसके बाद केमिकल इथेफान का इस्तेमाल किया जाने लगा।

    नियमानुसार इस केमिकल का इस्तेमाल चैंबर में किया जाता है। चैंबर में कच्चा केला डाला जाता है। इसके बाद इथेफान चैंबर में अलग रखा जाता है। इससे निकलने वाली गैस से केला पकाया जाता है। इस प्रक्रिया में भी केला देर से पकता है।

    नवरात्रि में केला की मांग बढ़ी तो मिलावटखोरों ने पानी में केमिकल मिलाकर केला उसमें डुबोना शुरू कर दिया। डुबोने के बाद केला बाहर निकालकर छोटे व्यापारियों को बेचा जाता है। यह व्यापारी ठेले पर इसे रखकर गांव-गांव पहुंचकर बेचते हैं।

    मांग के अनुसार पकाते हैं केला

    पहले केला एक साथ पकाया जाता था। यदि मांग कम रहती थी तो भारी मात्रा में केला खराब हो जाता था। अब केला मांग के अनुसार पकाया जा रहा है। जितनी मांग उसके आधार पर केला पकाकर बेचा जाता है। सभी विक्रेताओं को पता है कि वह जो केला बेच रहे हैं, उसे केमिकल में डुबोकर पकाया गया है। इस कारण यह काफी देर तक सही नहीं रह सकता है।

    ऐसे घर में खुद पकाएं केला

    सूखे टाट से केला ढककर रख दें। दो दिन में केला पक जाएगा। कागज के थैले (पेपर बैग) के अंदर कच्चा केला रख दें। केले में गैस होती है। यह बैग के अंदर उसे पका देगी। केले किसी भी कपड़े में लपेटकर कागज के बैग में रख दें तो वह जल्दी ही पक जाएंगे।

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    कौड़ीराम में रंग रहे थे केला

    खाद्य सुरक्षा एवं औषधि प्रशासन की टीम ने पिछले वर्ष कौड़ीराम में छापा मारकर केमिकल से केला पकाने का पर्दाफाश किया था। उस समय मिलावटखोरों ने पानी में पीले रंग का केमिकल मिला दिया था। इस केमिकल वाले पानी में केला डुबोकर निकाला जाता था। इससे केले के छिलके का रंग पीला हो जाता था। टीम ने चार नमूने लिए थे। सभी नमूने जांच में फेल हो गए थे।

    केला सिर्फ चैंबर में ही पकाया जा सकता है। जिले में केला पकाने के 30 से 40 प्लांट हैं। इनकी लगातार मानीटरिंग भी की जाती है। पानी में केमिकल मिलाकर केला डुबोकर बेचना गलत है। ऐसा केला स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होता है। केला पकाने में सीधे रसायनों के संपर्क में आने वाली कोई भी विधि अब मान्य नहीं है। केला घर में पकाना ज्यादा अच्छा है। केमिकल से पकाए गए केले के इस्तेमाल से पेट संबंधी रोग होते हैं।

    डा. सुधीर कुमार सिंह, सहायक आयुक्त खाद्य सुरक्षा एवं औषधि प्रशासन