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    Gorakhpur Factory Fire: कंट्रोल रूम से लेकर टैंक कूलिंग तक, मिनट-दर-मिनट चलती रही कार्रवाई

    Updated: Fri, 21 Nov 2025 07:10 PM (IST)

    गोरखपुर के गीडा अग्निकांड में, प्रशासन और फायर ब्रिगेड ने त्वरित रणनीति अपनाकर आग पर काबू पाने का प्रयास किया। स्टोरेज टैंक को बचाने, पाइप लाइनों को नियंत्रित करने और क्षेत्र की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए एडीजी, कमिश्नर, डीएम सहित कई अधिकारियों ने मौके पर रहकर काम किया। आग की स्थिति को देखते हुए पानी के दबाव को बढ़ाया गया और हाइड्रोलिक प्लेटफार्म का उपयोग किया गया। बिजली विभाग ने भी तत्काल कार्रवाई की।

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    घंटे-घंटे पर बदलती रणनीति, टेक्निकल टीम की चेतावनी पर बढ़ा पानी का फोर्स। आर्काइव

    जागरण संवाददाता, गोरखपुर। आग को काबू करने के लिए प्रशासन और फायर ब्रिगेड ने जिस तरह मिनट-दर-मिनट रणनीति बदली, वह पूरे औद्योगिक क्षेत्र के लिए एक बड़ा आपरेशन बन गया। आग का सबसे बड़ा खतरा स्टोरेज टैंक पर मंडरा रहा था। टैंक के तापमान को कम करना, पाइप लाइन के जलते हिस्सों को अलग-अलग दिशा से दबाना और पूरे क्षेत्र की सुरक्षा सुनिश्चित करना,ये सब एक साथ चल रहा था। एडीजी, कमिश्नर, डीआइजी, डीएम और फायर अधिकारियों ने मौके पर डेरा डालकर हालात पर नियंत्रण की कोशिश की।

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    आग लगने के तुरंत बाद पहला लक्ष्य पाइप लाइन की स्थिति समझना था। फायर टीमों ने भीतर झोंकने के लिए तीन अलग-अलग पोजीशन चुनीं,एक ऊपरी तरफ से, दूसरी मुख्य द्वार के कोने से और तीसरी स्टोरेज टैंक की दिशा से। हर दिशा पर अलग टीम तैनात की गई।पाइप लाइन में लगातार बढ़ रहे तापमान को ध्यान में रखते हुए पानी के फोर्स को धीरे-धीरे बढ़ाया गया। कई बार ऐसा हुआ जब तेज भाप उठी और फायर टीमों को पीछे हटना पड़ा। बावजूद इसके, लाइन बनाए रखी गई ताकि आग को फैलने से रोका जा सके।

    कुछ देर बाद टैंक की गर्मी बढ़ने लगी, तब अधिकारियों ने आपात बैठक कर रणनीति बदल दी।फायर ब्रिगेड का अगला ध्यान पाइप लाइन के ऊपरी हिस्से को नियंत्रित करने पर था, जहां से आग बार-बार उछल रही थी। ऊंचाई अधिक होने से स्प्रे का एंगल बार-बार बदलना पड़ा। इसके लिए हाइड्रोलिक प्लेटफार्म मंगाया गया और दो टीमों ने मिलकर ऊंचाई पर सीधे पानी छोड़ना शुरू किया। इससे कुछ हिस्सों में आग की तेजी कम हुई।हर घंटे प्रशासन ने हालात का मूल्यांकन कर रहा है।देर शाम तक हर अपडेट के बाद रणनीति में बदलाव होते रहे। कभी पानी का दबाव बढ़ाया गया, कभी दिशा बदली गई, कभी तीन की जगह पांच पाइंट से पानी डाला गया। कई बार फोर्स इतना बढ़ाना पड़ा कि पानी के संपर्क में आते ही पाइप लाइन से भाप का गुबार आसमान तक उठ जाता।

    फायर टीम को लगातार मास्क, ग्लव्स और प्रोटेक्टिव किट बदलनी पड़ीं।डिस्ट्रिक्ट कंट्रोल रूम में भी लगातार अपडेट भेजे जाते रहे। बिजली विभाग ने फैक्ट्री और आसपास के कई पोल लाइनें बंद कर दीं, ताकि किसी तरह की चिंगारी से हालात और न बिगड़ें।दिन भर आपरेशन चलता रहा। अफसरों ने न केवल फायर टीमों के साथ रहकर निर्देश दिए, बल्कि मौके पर खड़े होकर खुद स्थिति को देख-परख कर निर्णय लिए। उनके हाथों में टार्च, वाकी-टॉकी और लगातार बजती कालों का दबाव साफ झलक रहा था। हर अफसर स्थिति के किसी न किसी हिस्से पर निगरानी में लगा था—किसी के जिम्मे भीड़, किसी के जिम्मे दमकलों की लाइनिंग, किसी के जिम्मे एंट्री पाइंट, किसी के जिम्मे पाइप लाइन की सुरक्षा।


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