Gorakhpur Book Festival: Zen-G के सिर चढ़कर बोल रहा 'अपनों की कलम' का जादू, हाथोहाथ बिकीं किताबें
गोरखपुर विश्वविद्यालय में चल रहे पुस्तक महोत्सव में युवाओं का किताबों के प्रति रुझान दिखा, खासकर स्थानीय लेखकों की कृतियों में उनकी रुचि रही। आकृति विज्ञा की 'लोकगीत सी लड़की' खूब बिकी। मुंशी प्रेमचंद और राम प्रसाद बिस्मिल की पुस्तकों को भी पाठकों ने पसंद किया। देशभक्ति और बाल साहित्य भी आकर्षण का केंद्र रहे। यह महोत्सव गोरखपुर की साहित्यिक आत्मा का उत्सव बन गया।

प्रभात कुमार पाठक, जागरण, गोरखपुर। दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय परिसर में चल रहा नौ दिवसीय पुस्तक महोत्सव अब दो दिन शेष है। लेकिन, अब तक गुजरे मेले पर समग्रता में दृष्टिपात करें तो कहना गलत न होगा कि स्क्रीन टाइम को लेकर बदनाम जेन-जी पन्ने पलटने की ओर लौट रही है।
खास बात यह कि वह इसके लिए ‘अपनों’ की किताबें खोज रही है। युवा ही नहीं, वरिष्ठ पाठकों के बीच भी इनकी खूब मांग दिखी। इस लिहाज से कहा जा सकता है कि गोरखपुर पुस्तक महोत्सव पूरी तरह ‘अपनों के नाम’ रहा। साहित्यप्रेमियों के रुझान ने इस मेले को गोरखपुर के लेखकों का उत्सव बना दिया। यहां उमड़ी भीड़ का बड़ा हिस्सा अपनी माटी की कलम से निकले शब्दों को सहेजने में जुटा दिखा।
मेले के मुख्य आकर्षण में रही गोरखपुर की युवा लेखिका आकृति विज्ञा की किताब ‘लोकगीत सी लड़की’। सर्वभाषा ट्रस्ट के स्टाल प्रभारी लालचंद यादव ने बताया कि यह किताब रोज़ाना 20 से 25 प्रतियों की बिक्री के साथ अब तक की सबसे लोकप्रिय रही है। साथ ही चेतना पाण्डेय की ‘नदी का समर्पण’ और ‘नहीं भूल जाना’ ने भी पाठकों को खूब आकर्षित किया।
यह भी पढ़ें- Indian Railways News: रूटीन ट्रेनें फुल, पूजा स्पेशल चल रही खाली, इन ट्रेनों में उपलब्ध हैं पर्याप्त बर्थ
स्थानीय साहित्य का उत्सव बना मेला
गोरखपुर के साहित्यिक धरोहरों का प्रभाव हर ओर झलकता रहा। मुंशी प्रेमचंद की ‘नमक का दारोगा’ और फिराक गोरखपुरी की ‘धरती की करवट’ जैसी पुस्तकों की बिक्री ने पाठकों की साहित्यिक समझ का प्रमाण दिया। वहीं, अमर शहीद राम प्रसाद बिस्मिल के जीवन पर आधारित ‘निज जीवन की एक झलक’ को लोगों ने श्रद्धा और उत्साह से खरीदा। विद्यानाथ मिश्र के लेखन के प्रति भी पाठकों में गहरा सम्मान दिखा, उनके संपूर्ण 21 खंडों का संग्रह मेले की शोभा बढ़ा रहा था।
देशभक्ति और बाल साहित्य का भी रहा आकर्षण
पुस्तक मेले के सातवें दिन शुक्रवार को पाठकों के बीच देशभक्ति का जोश और बाल साहित्य की मिठास दोनों का संगम दिखा। ‘मेरा संघर्ष’ (नेताजी सुभाष चंद्र बोस), ‘द हिंदू कोड बिल’ (श्यामा प्रसाद मुखर्जी) और रामधारी सिंह दिनकर की ‘शहरनामा’ ने देशप्रेमी पाठकों को बांधे रखा। बच्चों ने भी ‘बेताल पचीसी’ जैसी क्लासिक कथाओं से अपने बैग सजाए। मेले में आए हर वर्ग के लोगों- युवाओं, महिलाओं और विद्यार्थियों के बीच एक साझा भावना स्पष्ट थी-अपनों की रचनाओं पर गर्व। इस तरह गोरखपुर पुस्तक महोत्सव सिर्फ किताबों का मेला नहीं रहा, बल्कि गोरखपुर की सृजनशील आत्मा और साहित्यिक गौरव का जीवंत उत्सव बन चुका है।

कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों
कृपया धैर्य रखें।