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    भोजपुरी गीतों के साथ हो रहे खिलवाड़ से आहत हैं लोक गायक भरत शर्मा Gorakhpur News

    By Pradeep SrivastavaEdited By:
    Updated: Mon, 13 Jan 2020 09:46 AM (IST)

    मशहूर लोक गायक भरत शर्मा व्यास अश्लील और सस्ते भोजपुरी गीतों के जरिये युवाओं में जल्द लोकप्रियता हासिल करने की बढ़ रही प्रवृत्ति से आहत हैं।

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    भोजपुरी गीतों के साथ हो रहे खिलवाड़ से आहत हैं लोक गायक भरत शर्मा Gorakhpur News

    गोरखपुर, जेएनएन। अश्लील और सस्ते भोजपुरी गीतों के जरिये युवाओं में जल्द लोकप्रियता हासिल करने की बढ़ रही प्रवृत्ति से मशहूर लोक गायक भरत शर्मा व्यास काफी आहत हैं। गोरखपुर महोत्सव के भोजपुरी नाइट में प्रस्तुति देने शहर आए लोक गायक ने रविवार को जागरण से बातचीत में अपना दर्द साझा किया। उन्होंने कहा कि आजकल के लोक गायक चंद पैसों के लिए पुराने गीतों की नकल कर रातों-रात स्टार बन जाना चाहते हैं। इससे उन्हें क्षणिक सफलता तो मिल जा रही है, लेकिन लोक संगीत को काफी नुकसान पहुंच रहा है।

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    भोजपुरी संगीत के स्तर को गिराने में टीवी के रियलिटी-शो की भी बड़ी भूमिका

    उन्होंने कहा, ज्यादातर नए लोक गायकों को यह भ्रम हो गया है कि संगीत की शास्त्रीयता केवल हिंदी संगीत तक सीमित है। दरअसल शास्त्रीय ज्ञान जितना जरूरी हिंदी संगीत के लिए है, उतना ही भोजपुरी संगीत के लिए भी है। भोजपुरी संगीत भी तभी सजता है, जब गुरु के सानिध्य में रियाज की लंबी परंपरा का निर्वहन होता है। भोजपुरी संगीत के स्तर को गिराने में टीवी के रियलिटी-शो की भी बड़ी भूमिका है। आसानी से मंच देकर यह शो सस्ते संगीत को बढ़ावा दे रहे हैं। थोड़ी सी सफलता से आज के युवा इतराने लगते हैं और वास्तविक संगीत तक नहीं पहुंच पाते।

    सुकून तो ओरिजनल में ही मिलता है

    पुराने फिल्मी गीतों पर बन रहे रीमिक्स से लोक गायक संतुष्ट नहीं हैं। उनका कहना है कि ओरिजनल का जो क्रेज है, वह रीमिक्स का नहीं। रीमिक्स कुछ पल के लिए जरूर आकर्षित करता है, लेकिन सुकून ओरिजनल गीत में ही मिलता है। भोजपुरी संगीत में शुरू रीमिक्स के दौर को लेकर उनका विश्वास है कि जनता इसे नकार देगी।

    साहित्य की दुकानों पर उमड़ी भीड़

    गोरखपुर महोत्सव में लगी पुस्तक प्रदर्शनी में साहित्य की दुकानों पर बड़ी भीड़ उमड़ी। छायावाद से लेकर अब तक के साहित्यकारों की पुस्तकों की उपलब्धता रही। हर दुकान पर लोगों की भीड़ लगी रही। देशी-विदेशी पुस्तकों की खूब मांग रही। विदेशी पुस्तकों में खासकर रूसी साहित्य की अनुवादित पुस्तकों की मांग ज्यादा रही। ओशो की पुस्तकें 'जिन खोजा तिन पाइयां', 'मैं मृत्यु सिखाता हूं', 'तंत्र सूत्र' व 'जस की तस धर दीन्हीं चदरिया' आदि  खूब पसंद की गईं। साहित्य में किसी को आचार्य रामचंद्र शुक्ल की पुस्तक 'हिंदी साहित्य का इतिहास' तो किसी को रामधारी सिंह दिनकर की पुस्तक 'संस्कृति के चार अध्याय' पसंद आई। प्रेमचंद की पुस्तकें भी युवाओं को खूब भायीं। वर्तमान दौर के रचनाकारों में मुनव्वर राना, बसीम बरेलवी, निदा फाजली आदि की पुस्तकें पसंद की गईं। सभी स्टालों पर सुबह से लेकर शाम तक भीड़ लगी रही। दुकानदार दस से लेकर 30 फीसद तक छूट दे रहे हैं। कुछ पुरानी पुस्तकें 50 फीसद छूट के साथ बेची जा रही हैं।