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    'कांच ही बांस के बहंगिया, बहंगी लचकत जाय…' गोरखपुर सबरंग में पढ़िए छठ महापर्व की कहानी

    Updated: Sun, 26 Oct 2025 01:07 PM (IST)

    गोरखपुर सबरंग में छठ महापर्व की कहानी बताई गई है, जिसमें 'कांच ही बांस के बहंगिया...' जैसे गीत शामिल हैं। यह लेख छठ पर्व के सांस्कृतिक महत्व और रीति-रिवाजों पर प्रकाश डालता है, जो पूर्वी उत्तर प्रदेश और बिहार में मनाया जाता है। सबरंग कार्यक्रम में छठ पर्व की जीवंतता का अनुभव होता है, जहाँ लोकगीतों के माध्यम से श्रद्धा और भक्ति का प्रदर्शन किया जाता है।

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    गोरखपुर सबरंग: छठ महापर्व की अनूठी कहानी

    मूल रूप से बिहार का महापर्व माने जाने वाले छठ की छठा अपने पुरातन दायरे से बाहर निकल चुकी है। पर्व की आभा देश के अन्य राज्यों में ही नहीं बल्कि दुनिया भर में फैल रही है। इस दृष्टि से गोरखपुर को देखें तो तो छठ के दौरान यह बिहार का हिस्सा जैसा दिखता है। तीन दशक तक पहले तक शहर के जिन घाटों पर चंद परिवार ही छठ मनाते दिखते थे, वहां अब लाखों श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ती है। राप्ती नदी, रामगढ़ताल, सूरजकुंड धाम और गोरखनाथ मंदिर के भीम सराेवर तक हर घाट पर छठ मैया के प्रति श्रद्धा की गूंज सुनाई देती है।

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    व्रती महिलाओं की प्रति वर्ष बढ़ती संख्या गोरखपुर में इस पर्व की चढ़ती लोकप्रियता का प्रमाण है। नई पीढ़ी भी पूरे उत्साह से जुड़ रही है। आस्था व परंपरा के इस लोक उत्सव से नई पीढ़ी के जुड़ने के बाद फैशन ने भी इसमें अपनी जगह बना ली है लेकिन आस्था के दायरे में रहकर। चमकीले वस्त्र और गहनों से सजी महिलाएं जब जल में उतरकर सूर्य को अर्घ्य देती हैं, तो यह दृश्य परंपरा और फैशन के अद्भुत संगम में बदल जाता है। गुरु गोरक्ष की नगरी में छठ महापर्व की शुरुआत और बढ़ी लोकप्रियता पर उप मुख्य संवाददाता डा. राकेश राय की रिपोर्ट...

    गोरखपुर में छठ के प्रति बढ़ी आस्था के मूल में जाएं तो इसमें रेलवे की महती भूमिका सामने आती है। रेलवे के शुरुआती दौर में गोरखपुर का क्षेत्र असम बंगाल-तिरहुत रेल के दायरे में आता था। इस क्रम में बिहार से एकीकृत बंगाल के कर्मचारियों को नौकरी के लिए गोरखपुर भेजा जाता था। फिर तो बिहार के लोगों का गोरखपुर में आना शुरू हुआ। पूर्वोत्तर रेलवे का मुख्यालय बनने के बाद यह सिलसिला और बढ़ गया।

    अन्य विभागों में बिहार के लोगों का प्रवेश होने लगा। धीरे-धीरे गोरखपुर में एक बिहार बस गया। बिहार के लोग आए तो उनकी पर्व संस्कृति भी उनके साथ शहर में आई और धीरे-धीरे छायी। छठ चूंकि श्रद्धा, भक्ति और आस्था से जुड़ा पर्व था, इसलिए शहर के लोगों ने भी इसे दिल से स्वीकार किया। मान्यता पूरी होने लगी तो पर्व की लोकप्रियता बढ़ने लगी। समय के साथ यह चरम पर पहुंच गई।

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    सामाजिक संगठन ने निभाई महत्वपूर्ण भूमिका
    सामाजिक संगठनों और युवाओं की सक्रियता ने शहर में इस महापर्व की सामूहिकता को नई ऊंचाई दी है। पर्व की लोकप्रियता जब बढ़ी तो घाटों पर भीड़ उमड़ने लगी। इतना ही नहीं, भीड़ सुविधा भी खोजने लगी। इसे लेकर मांग को देखते हुए सामाजिक संगठनों ने कदम बढ़ाया। घाटों की साफ-सफाई, सजावट और निश्शुल्क जलपान की व्यवस्था के कई संगठन सामने आने लगे।

    कई संगठन तो लोगों की सुविधा के लिए मोहल्ले व कालोनियों मेंं भी अस्थायी पोखरा बनाकर घाट सजाने लगे। जनप्रतिनिधि में इसमें सक्रिय भूमिका निभाने लगे। सुविधा मिली तो पर्व से जुड़ने वाले परिवारों की संख्या भी बढ़ी। अब तो शायद ही शहर को कोई कोना होगा, जहां छठ की छटा देखने को नहीं मिलती। हर गली-मोहल्ले मेंं पर्व की भीड़ उमड़ती।

    डूबते सूर्य को प्रणाम करने का अद्वितीय पर्व
    उगते सूरज को तो दुनिया प्रणाम करती है लेकिन छठ पहला ऐसा पर्व है, जिसमें डूबते सूर्य की भी आराधना की जाती है। इतना ही नहीं उगते सूर्य की आराधना की बारी डूबते सूर्य के बाद आती है। यही इस पर्व की खूबी है। दरअसल छठ पर्व आज के दौर की आवश्यकता बन गया है। यह एकाकी परिवारों के नाते-रिश्तेदारों और परिचितों से मेल-मिलाप का अवसर देता है।

    गोरखपुर में राप्ती नदी, सूरजकुंड धाम, गोरखनाथ मंदिर के ताल, सुमेर सागर पोखरा, राजघाट, रामगढ़ ताल के अलावा अपार्टमेंट, बहुमंजिली इमारतों की छतों पर छठ का नजारा देखने लायक होता है। पर्व के उत्साह में अमीर-गरीब, ऊंच-नीच, जाति-धर्म की दीवारें टूट जाती हैं। अघ्र्य अनुष्ठान का हिस्सा हर कोई बिना किसी भेदभाव के बनता है।

    छठ एक पारंपरिक व्रत है। जिसमें सास अपनी बहू को डाला छठ की खास पूजन डलिया देती है। इस व्रत को आगे बढ़ाने में महिलाओं का ही योगदान प्रमुख है। परंपरा से जुड़ा होने के कारण तमाम व्यस्तताओं के बीच महिलाएं व्रत के लिए समय निकाल ही लेती हैं। यह पर्व शुद्धता, धैर्य और अनुशासन की मिसाल है।

    चार चरणों में संपन्न होती है पूजन विधि
    छठ व्रत की संपूर्ण पूजन विधि चार प्रमुख चरणों में सम्पन्न होती होती है। पहला चरण है नहाय-खाय, जिसमें व्रती महिलाएं नदी या तालाब में स्नान कर शुद्धता का संकल्प लेती हैं और शाम को कद्दू-भात ग्रहण करती हैं। दूसरे चरण खरना में दिनभर निर्जला उपवास रखा जाता है और रात में गुड़-खीर व रोटी का प्रसाद ग्रहण कर कठोर उपवास की शुरुआत होती है। तीसरे चरण से शुरू होती है सूर्य पूजा। पहले अस्त होते सूर्य को जल में खड़े होकर अर्घ्य दिया जाता है। उसके बाद उदीयमान सूर्य को अर्घ्य अर्पित करने के साथ महापर्व का समापन होता है।

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    पर्व ही नहीं, जीवन दर्शन भी है छठ
    गोरखपुर में छठ अब केवल एक धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि लोकसंस्कृति, अनुशासन और सामाजिक एकता का उत्सव बन चुका है। डूबते सूर्य को अर्घ्य देकर जब महिलाएं जल से बाहर आती हैं, तो लगता है मानो आस्था ने फिर से जीवन को नई रोशनी दे दी हो। यह पर्व सिखाता है कि श्रद्धा केवल पूजा में नहीं, बल्कि प्रकृति, परिवार और समाज के प्रति कृतज्ञता में निहित है।

    यह भी पढ़ें- गोरखपुर सबरंग: छठ का प्रसाद, आस्था में घुला पवित्रता का रस

    लोकधुन में सजे गीत हैं पर्व की जान
    छठ पर्व का असली सौंदर्य उसके गीतों में बसता है। घाटों पर जब व्रती महिलाएं जल में खड़ी होकर ''''कांच ही बांस के बहंगिया...'''' और ''''केरवा जे फरेला घवद से...'''' जैसे पर्व गीत गाती हैं, तो पूरा वातावरण भक्ति की भावनाओं से भर उठता है। हर गीत में छठ मइया से परिवार की सुख-समृद्धि की प्रार्थना झलकती है। ये लोकगीत केवल सुर नहीं, पीढ़ियों से चली आ रही उस परंपरा के प्रतीक हैं, जिसमें ममता, समर्पण और विश्वास एक साथ गूंजते हैं। छठ घाटों पर गूंजते ये लोकगीत पर्व के प्रति श्रद्धा व आस्था को ऊंचाई देते हैं-

    कांच ही बांस के बहंगिया, बहंगी लचकत जाय…
    ससुरा में मांगी ले अन्न धन लक्ष्मी हे छठी मइया…
    केरवा जे फरेला घवद से ओह पे सुग्गा मेड़राय…
    छठी मइया दे द एगो ललना, बजवाइब बजना…

    शहर में सजती हैं छठ माता की 267 प्रतिमाएं
    मां दुर्गा, माता लक्ष्मी और भगवान गणेश के लिए ही नहीं, अब शहर में छठ मैया के लिए बड़ी संख्या में पंडाल सजने लगे हैं। साल-दर-साल पंडालों की संख्या बढ़ती जा रही है। प्रशासन से मिले आंकड़ाें के अनुसार छठ माता के लिए पूजा पंडालों को सजाने का क्रम वर्ष 2010 के शुरू हुआ। 2013 में कुल 13 पूजा पंडाल बने। इस वर्ष तक यह संख्या बढ़कर 268 तक पहुंच गई है।

    अर्घ्य की बात की तो आश्चर्य में पड़ गईं सासू मां
    पूर्व महापौर अंजू चौधरी गोरखपुर में छठ मनाने को लेकर अपने अनुभव को साझा करते हुए बताती हैं कि 1970 में जब पटना से ब्याह कर शहर में आईं तो यहां बहुत कम लोग छठ के बारे में जानते थे। छठ पर उन्होंने अपनी सासू मां से अर्घ्य देने की इच्छा जताई तो वह आश्चर्य में पड़ गईं क्योंकि वह इसके बारे में कुछ नहीं जानती थी।

    पता करने पर जानकारी हुई कि कुछ लोग गोरखनाथ मंदिर के भीम सरोवर में अर्घ्य देते हैं। पर्व की परंपरा को निभाने के लिए जब वह भीम सरोवर पहुंची तो वहां मुश्किल से 15 से 20 लोग ही अर्घ्य के लिए मौजूद थे। अंजू बताती हैं कि उनके देखते-देखते शहर में छठ लोकप्रिय हो गया। आज वह अपनी बहुओं के साथ घाट पर अर्घ्य देने जाती हैं। पर्व की परंपरा को प्रति वर्ष निभाती हैंं।

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    बलिया से लेकर आईं परंपरा, अब बहुएं निभा रहीं
    ट्रांसपोर्ट नगर के न्यू राय कालोनी की रहने वाली भाग्यवती राय बलिया से छठ की परंपरा लेकर शहर में आईं। उन्होंने शहर में पहली बार छठ 1984 में मनाया। उस समय अर्घ्य देने के लिए उन्हें गोरखनाथ के भीम सरोवर जाना पड़ा था। बताती है कि उस समय उनके साथ मुश्किल से 10 परिवार की महिलाएं अर्घ्य दे रही थीं।

    आज उन्हें यह देखकर आश्चर्य होता है कि जो घाट छठ पर उनके जमाने में सूने रहते थे, वहां अब श्रद्धालुओं का ऐसा रेला उमड़ता है कि नया शहर बस जाता है। भाग्यवती के अनुसार उन्हें देखकर करीब दर्जन भर परिवारों की महिलाओं ने छठ का व्रत शुरू किया। उन्हें इस बात की खुशी है कि अब उनकी बहुएं भी परंपरा को निभा रही हैं। पूरे विधि-विधि से छठ मना रही हैं।

    आसान नहीं था शुरू मेंं पर्व को मनाना
    पूर्व महापौर सीताराम जायसवाल की पत्नी देवमुन्ना देवी बीते 46 वर्ष से शहर में छठ मना रही हैं और शुरुआती दौर में इसे मनाने की मुश्किलें भी साझा कर रही हैं। बता रही हैं कि शुरू में केवल उनका और कुछ और बिहार के रहने वाले लोगों का परिवार ही छठ मनाता था। सभी हनुमानगढ़ी पर अर्घ्य देने के लिए जाया करते थे।

    अर्ध्य देने के लिए नदी के किनारे तक कच्चे रास्ते से जाना पड़ता था। बहुत दिक्कत होती थी लेकिन पर्व के प्रति आस्था दिक्कत पर भारी पड़ती थी। अब तो स्थिति बदल गई है। बिहार ही नहीं, उत्तर प्रदेश के लोग भी बढ़चढ़ कर छठ मना रहे हैं। नई पीढ़ी परंपरा को निभा रही है। पर्व के मनाने के लिए घाट पर पूरी तैयारी हो रही है। लाखों की भीड़ उमड़ रही है।