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    दवा में खेल से दूना हो रहा कैंसर रोगियों का दर्द, अस्पताल में उपलब्ध दवाएं नहीं लिख रहे डॉक्टर

    By Gajadhar DwivediEdited By: Vivek Shukla
    Updated: Thu, 27 Nov 2025 09:07 AM (IST)

    कैंसर रोगियों के लिए दवाओं की उपलब्धता होने के बावजूद, डॉक्टरों द्वारा बाहर से दवाएं लिखने के कारण उनका दर्द और बढ़ रहा है। इससे मरीजों को आर्थिक और मानसिक परेशानी हो रही है। आरोप है कि डॉक्टर कुछ दवा कंपनियों के साथ मिलकर ऐसा कर रहे हैं।

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    कैंसर रोगियों के उपचार के लिए स्वीकृत और डॉक्टर द्वारा सत्यापित धनराशि, शासन द्वारा कटौती व भुगतान की सूची l जागरण

    गजाधर द्विवेदी, गोरखपुर। कैंसर पीड़ित सफीकुर रहमान को जो दवाएं मेडिकल कालेज से मुफ्त मिलनी चाहिए थी, वह 11,910 रुपये खर्च कर खरीदनी पड़ी। कमीशनखोरों ने उन्हें झांसा दिया था कि यह रकम मुख्यमंत्री राहत कोष से वापस मिल जाएगी। कैंसर रोग विभाग के चिकित्सक की सलाह पर बाहर से खरीदी गई कुल 29,471 रुपये की दवा प्रतिपूर्ति फाइल शासन में पहुंची तो 11,910 रुपये यह लिखते हुए काट दिया गया कि ये दवाएं अस्पताल के ड्रग स्टोर में उपलब्ध हैं, इसलिए इसका भुगतान नहीं होगा।

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    मुख्यमंत्री राहत कोष से 91 हजार रुपये स्वीकृत होने के बावजूद दवा के लिए रुपये का इंतजाम करने को मजबूर सफीकुर हैरान हैं कि जब दवाएं अस्पताल में उपलब्ध थीं तो उन्हें बाहर क्यों भेजा गया? कमीशन के खेल में कैंसर रोगियों से हो रही लूट का यह अकेला मामला नहीं है। इसी तरह ममता साहनी को उपचार के लिए 51 हजार रुपये की सहायता स्वीकृत हुई है।

    उन्होंने दवा और जांचों पर 38,180 रुपये खर्च कर भुगतान के लिए आवेदन किया। शासन ने केवल 26,235 रुपये का भुगतान किया और शेष राशि यह कहकर काट दी कि यह खर्च अस्पताल में उपलब्ध दवाओं और जांचों पर किया गया है। केवली देवी, संध्या देवी, शीबा खान व उर्मिला देवी को भी कैंसर रोग विभाग के चिकित्सकों की मनमानी के कारण मुख्यमंत्री राहत कोष से मिली सहायता का पूरा लाभ नहीं मिल पाया।

    इस गड़बड़झाले की जानकारी तब हुई जब प्रमुख चिकित्सा अधीक्षक कार्यालय ने बीआरडी मेडिकल कालेज के कैंसर विभाग में उपचाराधीन छह रोगियों के भुगतान की फाइल प्राचार्य कार्यालय को भेजी।

    यह भी पढ़ें- रोगी से 11 हजार रुपये वसूलने का वीडियो प्रसारित, इंप्लांट और खून दिलाने के नाम पर स्वजन से वसूली 

    लिखना है फार्मास्युटिकल नेम, पर्चों पर चमक रहे ब्रांड

    सभी रोगियों को सस्ता उपचार सुलभ हो, इसके लिए सभी सरकारी चिकित्सा संस्थानों में शासन ने डाक्टरों को केवल फार्मास्युटिकल नेम से ही दवाएं लिखना अनिवार्य कर रखा है। बावजूद इसके चिकित्सक धड़ल्ले से ब्रांड के नाम पर्चों पर लिख रहे हैं। इससे जो दवाएं जन औषधि या अमृत फार्मेसी पर कम कीमत में मिल सकती हैं, उन्हें भी मरीज ऊंचे मूल्य पर खरीद रहे हैं।

    मुख्यमंत्री की मंशा के अनुरूप रोगियों को सस्ता उपचार सुलभ हो, इसे लेकर प्रयासरत हूं। अस्पताल में उपलब्ध दवाएं किस दशा में बाहर खरीदनी पड़ीं, इसका पता कराएंगे। पर्चे पर फार्मास्युटिकल नेम ही लिखा जाए, इसे सुनिश्चित कराएंगे।

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    -डाॅ. राकेश कुमार रावत, अध्यक्ष, कैंसर रोग विभाग, बीआरडी मेडिकल काॅलेज

    मामला मेरे सामने आया था। विभागाध्यक्ष को बुलाकर पूछताछ की गई है। व्यवस्था में सुधार को लेकर उन्हें सख्त हिदायत दी गई है। इस तरह की शिकायत आगे फिर मिली तो सख्त कार्रवाई की जाएगी।

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    -डाॅ. रामकुमार जायसवाल, प्राचार्य, बीआरडी मेडिकल काॅलेज।