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    पंकज चौधरी के सहारे कुर्मियों को साधने उतरी भाजपा, पूर्वांचल और मध्य यूपी की कई सीटों पर है निर्याणक भूमिका

    By Rajnish TripathiEdited By: Vivek Shukla
    Updated: Sun, 14 Dec 2025 11:55 AM (IST)

    भाजपा पंकज चौधरी के सहारे कुर्मियों को साधने में जुटी है, क्योंकि पूर्वांचल और मध्य यूपी की कई सीटों पर कुर्मियों की निर्णायक भूमिका है। पार्टी इस समु ...और पढ़ें

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    केंद्रीय वित्त राज्य मंत्री पंकज चौधरी के भाजपा प्रदेश अध्यक्ष पद पर निर्विरोध निर्वाचित होने पर शेषपुर स्थित आवास पर उनकी मां उज्जवल चौधरी को मिठाई खिलाकर खुशी जताते शुभचिंतक। जागरण

    रजनीश त्रिपाठी, गोरखपुर। लोकसभा चुनाव में गैरयादव पिछड़ा वर्ग के बिखराव ने भाजपा की सियासत में नए समीकरणों को जन्म दिया है। कुर्मी समाज के कद्दावर नेता पंकज चौधरी को प्रदेश अध्यक्ष की कमान सौंपना इसी की पृष्ठभूमि है। यह फैसला सिर्फ संगठनात्मक नहीं, बल्कि आने वाले विधान सभा चुनाव में जीत की सियासी जमीन तैयार करने का संकेत है। भाजपा नेतृत्व का आकलन है कि कुर्मी समाज की नाराजगी दूर किए बिना पूर्वांचल और मध्य यूपी में चुनावी बढ़त हासिल करना चुनौतीपूर्ण होगा।

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    केंद्रीय वित्त राज्य मंत्री पंकज चौधरी की पूर्वांचल में मजबूत पकड़ को भाजपा अपनी रणनीतिक ताकत मान रही है। महराजगंज, कुशीनगर, बस्ती, सिद्धार्थनगर और गोरखपुर जैसे जिलों में कुर्मी, सैंथवार और चनऊ मतदाता कई सीटों पर निर्णायक भूमिका में हैं। पिछले लोकसभा चुनाव में यही वोट बैंक सपा की ओर झुका, जिससे भाजपा को नुकसान उठाना पड़ा।

    इसका लाभ समाजवादी पार्टी ने उठाया। सपा ने पूर्वी और मध्य यूपी में कुर्मी प्रत्याशियों पर दांव खेला और उत्कर्ष वर्मा, लालजी वर्मा, राम शिरोमणि वर्मा, राम प्रसाद चौधरी, नरेश उत्तम पटेल, एसपी सिंह पटेल और कृष्णा देवी जैसे नेताओं को संसद तक पहुंचाने में सफलता पाई। इसके उलट भाजपा और सहयोगी दलों से कुर्मी समाज के महज पंकज चौधरी, अनुप्रिया पटेल, रामशंकर कठेरिया और बीएल वर्मा ही लोकसभा तक पहुंच पाए। भाजपा इस सामाजिक आधार को दोबारा साधने में जुटी है।

    कांग्रेस सरकार में केंद्रीय गृह राज्यमंत्री रहे आरपीएन सिंह को भाजपा में शामिल कर राज्यसभा भेजा जाना भी कुर्मी वोटों को साधने की रणनीति का हिस्सा माना जा रहा है। अब पंकज चौधरी को प्रदेश अध्यक्ष बनाकर पार्टी ने संगठन और सियासत दोनों मोर्चों पर कुर्मी नेतृत्व को केंद्र में ला दिया है। इसी क्रम में भाजपा की नजर निषाद समाज पर भी टिकी है, जिसे पिछड़ा वर्ग की राजनीति में अहम कड़ी माना जाता है।

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    निषाद पार्टी के साथ गठबंधन, सरकार में प्रतिनिधित्व और योजनाओं के जरिए साधे गए इस वर्ग को भाजपा दोबारा मजबूत संदेश देना चाहती है। पूर्वांचल की कई सीटों पर निषाद मतदाता जीत-हार का संतुलन तय करते हैं, ऐसे में कुर्मी और निषाद समीकरण को एक साथ साधना भाजपा की साझा रणनीति का हिस्सा है।

    सियासी जानकारों के मुताबिक, यह कवायद आगामी विधानसभा चुनाव में बड़ी जीत की तैयारी से जुड़ी है। संकेत हैं कि जिला पंचायत चुनावों से लेकर संगठनात्मक नियुक्तियों और टिकट वितरण में कुर्मी, सैंथवार, चनऊ और निषाद समीकरण को प्राथमिकता दी जाएगी। भाजपा का सियासी दांव साफ है, गैरयादव पिछड़ा वर्ग को फिर से एकजुट कर सपा की जातीय रणनीति को उसी के मैदान में चुनौती देना और खोई हुई राजनीतिक जमीन वापस पाना।