आज भी बासगांव क्षेत्र के लोग 50 किमी चलकर पकड़ते हैं ट्रेन Gorakhpur News
आज भी कुछ क्षेत्र ऐसे हैं जहां घोषणा और धन स्वीकृत होने के बाद भी ट्रेनें नहीं चल सकीं। बासगांव क्षेत्र के लोगों को ट्रेन पकडऩे के लिए 50 किमी चलना पड़ता है। यह तब है जब रेल लाइन बिछाने के लिए पांच बार सर्वे हो चुका है।
गोरखपुर, जेएनएन। कोरोना काल में भी रेलवे के विकास की रफ्तार पर ब्रेक नहीं लगा। निर्माण कार्य लगातार चलता रहा, आज भी जारी है। लेकिन आपद काल में भी पूर्वांचल की जनता की मुश्किलें कम होने का नाम नहीं ले रहीं। रोजी-रोटी की तलाश में दिल्ली,पंजाब, मुंबई, बेंगलुरु और अहमदाबाद जाने वाले लोगों को टिकट के लिए परेशानी झेलनी पड़ी है। यह तब है जब सभी नियमित ट्रेनें स्पेशल के रूप में चल रही हैं।
लोगों को नहीं मिल रहा कंफर्म टिकट
लोगों को कंफर्म टिकट नहीं मिल रहा। जो टिकट मिल रहा उसपर भी लोगों को अतिरिक्त चार्ज देना पड़ रहा। पैसेंजर ट्रेनें नहीं चलने से स्थानीय लोग परेशान हैं। आज भी कुछ क्षेत्र ऐसे हैं जहां घोषणा और धन स्वीकृत होने के बाद भी ट्रेनें नहीं चल सकीं। बासगांव क्षेत्र के लोगों को ट्रेन पकडऩे के लिए 50 किमी चलना पड़ता है। यह तब है जब सहजनवां से दोहरीघाट तक 70 किमी रेल लाइन बिछाने के लिए पांच बार सर्वे हो चुका है।
जनपद मुख्यालय होने के बाद भी महराजगंज तक नहीं पहुंची ट्रेन
जिला मुख्यालय होने के बाद भी महराजगंज तक रेल लाइन नहीं बिछी। भगवान बुद्ध के महापरिनिर्वाण स्थली कुशीनगर तक आज भी विदेशी पर्यटक सड़क मार्ग से पहुंचते हैं। घोषणा के बाद भी यह क्षेत्र रेल लाइनों से अछूता है। पड़ोसी मुल्क नेपाल तक भी रेल लाइन नहीं बिछ सकी। वर्ष 2015-2016 में तत्काल रेलमंत्री सुरेश प्रभाकर प्रभु ने बढऩी से काठमांडू तक रेल लाइन बिछाने के लिए सर्वे कार्य की घोषणा की थी। भारतीय क्षेत्र में तो सर्वे पूरा हो गया लेकिन नेपाल की अनुमति का आज भी इंतजार है। अनुमति न मिल पाने के कारण अभी उक्त रेल परियोजना शुरू नहीं की जा सकी है। इस परियोजना का न केवल नेपाल के लोग अर्से से इंतजार कर रहे हैं अपितु भारतीय भी कर रहे हैं। यह कब पूरा होगा कुछ कहा नहीं जा सकता है।