मिट्टी व पैदावार के लिए रामबाण है हरी खाद
गोरखपुर : लगातार दोहन से नष्ट हो रहे मिट्टी और पौधों की बढ़वार के लिए आवश्यक तत्व किसान ही नहीं कृष
गोरखपुर : लगातार दोहन से नष्ट हो रहे मिट्टी और पौधों की बढ़वार के लिए आवश्यक तत्व किसान ही नहीं कृषि वैज्ञानिकों के लिए भी चिंता का विषय बन गए हैं। ऐसे में न्यूनतम खर्च, सिंचाई और कम पादप संरक्षण से मिट्टी की क्षतिपूर्ति व उपजाऊ शक्ति को बनाए रखने में हरी खाद रामबाण साबित हो सकती है। कम लागत और विपरीत परिस्थितियों में भी उगाई जाने वाली हरी खाद खेत की उर्वरा शक्ति को बचाए रखने में जहां कारगर साबित होती हैं वहीं फसलों के पैदावार बढ़ाने में सहायक हैं।
कृषि विज्ञान केंद्र, बेलीपार के प्रभारी संजीत कुमार बताते हैं कि मिट्टी में नाइट्रोजन या जीवांश की मात्रा बढ़ाने के लिए बिना गले-सड़े हरे पौधे को जब खेत में दबाने की प्रक्रिया को हरी खाद देना कहते हैं। भूमि में पोषक तत्वों को बढ़ाने एवं जैविक पदार्थो की पूर्ति के उद्देश्य से जिस सहायक फसल की खेती की जाती है वह भी हरी खाद के नाम से ही जानी जाती है। हरी खाद के इस्तेमाल से न केवल भूमि में नाइट्रोजन की उपलब्धता होती है बल्कि म़ृदा की भौतिक रासायनिक एवं जैविक दशा में भी सुधार होता है। ये वातावरण व भूमि प्रदूषण की समस्या को समाप्त करने में भी सहायक होती है। हरी खाद के इस्तेमाल से जहां खेतों को असंतुलित रासायनिक उर्वरकों से बचाया जा सकता है वहीं मिटटी की उर्वरा शक्ति को अगली पीढ़ी के लिए भी बचाया जा सकता है।
हरी खाद वाली प्रमुख फसलें
ढैंचा : इस फसल का वानस्पतिक नाम सेस्बेनिया एक्यूलिएटा है। सीधी व लंबी होने वाली ये फसल सूखा व जलाक्रांति में प्रति सहनशील होती है।
सनई : इसका वानस्पतिक नाम क्रोटोलेरिया जुन्शिया है। सीधी व तीव्र वृद्धि वाली ये फसल उत्तर प्रदेश के वातारण में सहनशील है।
लोबिया : विग्ना कैटजंग नाम वाली ये प्रजाति सीधा व तीव्र वृद्धि वाला होता है। संवदेनशील है।
मूंग : सूखे के प्रति लेकिन जलाक्रांति में संवेदनशील माने वाले वाले मूंग का वानस्पतिक नाम फैजिलोअस रेडिएट्स है। इसका पौधा सीधा व तीव्र वृद्धि वाला होता है।
हरी खाद की बुआई का समय
इसकी बुआई जलवायु और मौसम के हिसाब से तय होती है। बारिश शुरू होने के तुरंत बाद इसकी बुआई मुफीद रहती है। सिंचाई की सुविधा उपलब्ध होने पर वर्षा शुरू होने से पहले भी की जा सकती है। बुआई के समय खेत में पर्याप्त नमी होनी चाहिए। जिन फसलों के बीज छोटे होते हैं उनमें 25-30 किलो प्रति हेक्टेयर है जबकि बड़े किस्मों वाली बीज 40-50 किलो प्रति हेक्टेयर पर्याप्त मानी जाती है।
फसल की पलटाई का समय
निश्चित और विशेष अवस्था में फसल को खेत में 15 से 20 सेंटीमीटर पलटने से भूमि को पर्याप्त नाइट्रोजन एवं जीवांश पदार्थ की प्राप्ति होती है। समय से पहले या बाद में करने पर अपेक्षित लाभ नहीं मिल पाता है। सनई की फसल 50 दिन बाद, ढैंचा में 40 दिन बाद ये अवस्था आती है। बरसीम की फसल में 3-4 कटाई के बाद फसल को पलटना लाभप्रद रहता है। वर्तमान समय में रोटावेटर इसके लिए सबसे मुफीद सयंत्र है। इसमें फसल को सीधे छोटे-छोटेटुकड़ों में काटकर मिट्टी में मिलाने की प्रक्रिया होती है।
हरी खाद से ये होंगे लाभ
- मिट्टी में जीवांश पदार्थ और नाइट्रोजन की वृद्धि होगी।
- मृदा सतह में पोषक तत्वों का संरक्षण होता है, अगली फसल को तत्व पुन: प्राप्त हो जाते हैं।
- पोषक तत्वों की उपलब्धता में वृद्धि होने के साथ मुख्य फसलों की उत्पादकता भी बढ़ती है।
- जीवांश पदार्थ हरी खाद द्वारा मिट्टी में मिलकर रेतीली व चिकनी मिट्टी की संरचना को सुधारता है।
- हरी खाद में कार्बनिकअम्ल बनने से पीएच को कम करके मृदा की क्षारीयता को कम करता है।
यहां लाभकारी होगी हरी खाद
उन क्षेत्रों में जहां नाइट्रोजन की कमी हो
जिस क्षेत्रों में मिट्टी की नमी में कमी हो
कम वर्षा वाले क्षेत्रों में हरी खाद का प्रयोग न करें
हरी खाद के अन्य गुण
इसको उगाने में न्यूनतम खर्च आता है।
कम से कम सिंचाई और पादप संरक्षण
विपरीत परिस्थितियों में उगने की क्षमता हो
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