Trending

    Move to Jagran APP
    pixelcheck
    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    आत्म चिंतन से मिलती है सीख

    By Edited By:
    Updated: Tue, 13 Oct 2015 01:56 AM (IST)

    आत्म अवलोकन का अर्थ है अपने आप को देखना। अर्थात किसी कार्य को करने या होने के बाद उसके करने में हमार

    आत्म अवलोकन का अर्थ है अपने आप को देखना। अर्थात किसी कार्य को करने या होने के बाद उसके करने में हमारे द्वारा अपनाई गई क्रिया और विचार पद्धति का विश्लेषण। यानी, हमने किसी बात को कैसे सोचा और समझा व उसे किस प्रकार क्रियान्वित किया।

    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    आत्म अवलोकन के द्वारा हमें अपनी गलतियों से सीखने और अच्छे किए गए कार्य को और बेहतर ढंग से करने का मौका मिलता है। महात्मा बुद्ध का कहना है कि व्यक्ति को जितना कोई बाहरी सिखा सकता है, उससे कहीं अधिक वह अपने स्वाध्याय एवं आत्म अवलोकन तथा आत्म चिंतन से सीख सकता है। इसलिए वह हमेशा कहते हैं, 'अप्पो दीपो भव' अर्थात अपने दीपक स्वयं बनो। यानी, अपने बुद्धि, चिंतन एवं आत्म अवलोकन से अपने जीवन को प्रकाशित करो। इस प्रकार प्राप्त किया हुआ ज्ञान कभी विस्मृत नहीं होता और हमेशा व्यक्ति को सही निर्णय लेने में मददगार होता है। क्योंकि यह गहन अनुभव चिंतन और आत्म अवलोकन पर आधारित है।

    आत्म अवलोकन के द्वारा सीखने की प्रक्रिया ऐसी होती है कि हम उसमें शांत भाव से बैठ कर किसी समस्या या बिंदु के बारे में चिंतन कर सकते हैं। शांति से चिंतन करने पर हमें उसके समस्त गुण-दोष समझ में आ जाते हैं। हमारे ऊपर मानसिक दबाव न होने के कारण हम उस अनुभव या चिंतन से पूर्ण होकर स्थित हो सकते हैं। इस प्रकार आत्म अवलोकन के द्वारा हमारी समझने की भावनात्मक क्षमता और विश्लेषण करने की बौद्धिक क्षमता दोनों का विकास होता है। उदाहरण के लिए भारतीय चिंतन परंपरा में मन को एकाग्र करने के लिए ध्यान की जो पद्धति विकसित है, वह इसी का प्रकट रूप है। जिसमें हम शांत भाव से स्थित बैठकर किसी समस्या या विचार पर चिंतन, विश्लेषण व समाधान करते हैं। किंतु यह तभी संभव है जब हम इसे बिना उद्वेग अथवा मानसिक दबाव के कर सकें। छात्र जीवन में भी आत्म अवलोकन की महती आवश्यकता है। अपने को बिना जाने और समझे हम आगे बढ़ने लगते हैं और लक्ष्य निर्धारित कर लेते हैं। इससे जीवन भर भटकाव होता है। जब हम अपनी प्रतिभा को बिना पहचाने आगे बढ़ेंगे तो भटकना स्वाभाविक है। ऐसे में यह जरूरी है कि लक्ष्य निर्धारित करने और उसपर आगे बढ़ने से पहले छात्र अपने आप को जाने और समझें। यह महसूस करने की कोशिश करें कि जीवन में सही ढंग से वह क्या कर सकते हैं। उसका लगाव किस विषय की तरह अधिक है। उसके महत्व और उपयोगिता को समझे और फिर उसे आत्मसात करे। वह जो करने जा रहे हैं उसका परिणाम क्या होगा, या जो कर रहे हैं उसकी उपयोगिता उनके जीवन में क्या है। अगर छात्र अपने आप को नहीं पहचान पा रहे हैं तो अभिभावक और शिक्षक का भी सहयोग ले सकते हैं। उनके सहयोग से अपने को समझ सकते हैं। इसके बाद उससे भावनात्मक रूप से जुड़ सकते हैं। जब अपनी प्रतिभा से भावनात्मक लगाव हो जाएगा तो सफलता अवश्य मिलेगी। चाहें वह कोई भी क्षेत्र हो। इसलिए, पहले आपने आप को देखें, समझे फिर आगे बढ़ें।

    ---

    कीर्ति दूबे

    सहायक अध्यापक, राजकीय जुबिली इंटर कालेज- गोरखपुर