पर्यटक स्थल है लार्ड कार्नवालिस का मकबरा
गुलाम भारत में अपने प्रशासनिक सुधार के लिए प्रसिद्ध गवर्नर जनरल लार्ड।

जागरण संवाददाता, गाजीपुर : गुलाम भारत में अपने प्रशासनिक सुधार के लिए प्रसिद्ध गवर्नर जनरल लार्ड कार्नवालिस जाते-जाते गाजीपुर को अपनी देह सौंप गए। नगर के गोराबाजार में बना उनका भव्य मकबरा जनपद का सबसे प्रमुख प्रर्यटक स्थल है। अपनी अद्भुत कलाकृति के लिए मशहूर इस मकबरे को देखने के लिए विदेशी सैलानी भी आते हैं। लार्ड कार्नवालिस की मृत्यु पांच अक्टूबर 1805 को गाजीपुर के गौसपुर गांव के पास 66 वर्ष की उम्र में हो गई। वह बुखार से पीड़ित थे। मौत के बाद उनको नगर के पास स्थित गोराबाजार में दफना दिया गया। उस स्थान पर शानदार मकबरा बनाया गया है और 10 बीघे के क्षेत्रफल में बड़ा पार्क भी बनाया गया है। आज मंगलवार को उनकी पुण्यतिथि है, लेकिन जिले में कहीं नहीं मनाई जाती।
पत्थरों पर कहीं दाग नहीं
- पांच गज मोटे, बारह-बारह विशाल व 40 फुट ऊंचे खंभों पर खड़ा पांच प्रस्तर खंड वाला यह मकबरा देखने लायक है। इसके हलके गुलाबी रंग के पत्थरों पर कहीं दाग नहीं हैं । सोलह सीढ़ी को पार कर उसकी ऊंचाई पर पहुंचा जा सकता है। इसमें, चार तरह के पत्थर है। खंभों में प्रयोग किए गए पत्थर पर नीले छींटे हैं। फूल पत्तियों की सजावट और ब्रिटिश सरकार का राजकीय चिन्ह, दाहिनी ओर पत्र बंध की एक माला और खूब उभरी हुई, आकर्षक शिल्प चमत्कार से युक्त है। सामने अंग्रेजी में और पीछे फारसी में लार्ड कार्नवालिस के आने और दिवंगत होने आदि की सूचना और परिचय है। यूरोप व भारत के वेस्टर्न का समन्वय
: राजकीय महिला पीजी कालेज में इतिहास विभाग के प्रोफेसर डा. विकास सिंह ने बताया कि यह मकबरा यूरोप व भारत के वेस्टर्न का समन्वय है। एक बड़े भू-भाग पर बना यह गोल स्मारक हमें दृढ़ता का संदेश देता है। संगमरमर का फर्श और मध्य स्तम्भ का दुग्ध धवल पत्थर अद्भुत है। सामने अंदर जाली में लार्ड कार्नवालिस का आधा ऊपरी शीर्ष भाग, जिसके अगल बगल हिदू और मुसलमान शोकमग्न खड़े हैं। बीच में कमल का फूल, बाएं पाश्व में पत्रमाला का शुक्षम कलात्मक बंधक पीछे को और दो सिपाही बंदूक नीचे किए मुरझाए खड़े हैं। आज भी प्रभावी हैं कार्नवालिस के सुधार
: डा. विकास सिंह ने बताया कि कार्नवालिस के कई प्रशासन सुधार आज भी देश में प्रभावी हैं। लार्ड कार्नवालिस फोर्ट विलियम प्रेसिडेंसी के गवर्नर जनरल रहे थे। उन्होंने 1793 ईस्वी में बंगाल में स्थायी बंदोबस्त के रूप में एक नई राजस्व पद्धति की शुरुआत की। इनके समय में जिले के सभी अधिकार कलेक्टर को दिया गया और इसे ही भारतीय सिविल सेवा का जनक माना जाता है।
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