Ram Mandir: न थकान न डर, सब रामलला की कृपा से हो गया, ढांचा गिराते ही मनी थी दीवाली; चंद्र प्रकाश चौहान ने साझा की यादें
नमामि गंगे और गंगा विचार मंच के प्रदेश संयोजक भोपुरा के चंद्र प्रकाश चौहान ने कहा कि इन दिनों सब श्रीराममय है तो सब स्मृतियां चलायमान हैं। पता नहीं उस समय शरीर में कहां ताकत आ गई थी। न कोई थकान न डर सब रामलला की कृपा से हो गया। अपने इन संस्मरणों को सुनाते हुए गौरव की अनुभूति करते हैं।

अवनीश मिश्र, गाजियाबाद। एक दिसंबर 1992 को मां और पत्नी ने तिलक चंदन लगा कर गीत गाते हुए मुझे अयोध्या जी के लिए विदा किया था। मेरी तरह ही हजारों कारसेवक जय श्रीराम के उद्घोष के साथ रामकाज को घरों से चल निकले थे। पांच दिसंबर तक नियमित विवादित ढांचे पर जय श्रीराम के जयकारे और राम भजन गाते हुए कारसेवा करते थे। छह दिसंबर सुबह 11 बजे से चार बजे तक एक के बाद एक तीनों गुंबद धराशायी हो चुकी थी। बहुत से कारसेवक बलिदान हुए। उस समय का घटनाक्रम आज भी मन मस्तिष्क में रील जैसा चलता है।
नमामि गंगे, गंगा विचार मंच के प्रदेश संयोजक भोपुरा के चंद्र प्रकाश चौहान ने कहा कि इन दिनों सब श्रीराममय है तो सब स्मृतियां चलायमान हैं। पता नहीं उस समय शरीर में कहां ताकत आ गई थी। न कोई थकान न डर सब रामलला की कृपा से हो गया। अपने इन संस्मरणों को सुनाते हुए गौरव की अनुभूति करते हैं। चंद्र प्रकाश कहते हैं वर्ष-1990 व 1992 दोनों बार अयोध्या में कारसेवा करने का सौभाग्य मिला। सीमा शुल्क विभाग में नौकरी करता था, सबसे पहले वहां से त्याग पत्र दे, पूरी श्रद्धा से रामकाज में लग गया।
कोठारी भाइयों से हुई मुलाकात
कारसेवा वर्ष- 1990: चंद्र प्रकाश चौहान कहते हैं कि विहिप नेता अशोक सिंहल ने वर्ष-1990 में अयोध्या में 30 अक्टूबर सेवा करने के आह्वान किया। अपने मित्र उमेश की नई बाइक से उमेश व अजय के साथ 25 अक्टूबर 1990 को अयोध्या के लिए निकल पड़े। कभी मुख्य सड़क तो कभी गांव के खड़ंजे तो कभी कच्चे रास्तों से पुलिस से बचते हुए 28 अक्टूबर को अयोध्या पहुंचे। परिचित अवध बिहारी पांडेय के यहां रुके।
बाइक अवध बिहारी के यहां खड़ी करके दूसरे दिन एक आश्रम में आश्रय लिया। कुछ दूर पर ही अशोक सिंहल व अन्य राज्यों से आए कारसेवक ठहरे थे। कलकत्ता(अब कोलकाता) से आए राजकुमार कोठारी व शरद कोठारी भी वहीं पहली बार मिले। उनसे उनके पते आदि का आदान प्रदान हुआ। आज तक उनकी बहन नीलिमा कोठारी से संवाद होता है। वह नमामि गंगे की बंगाल की संयोजिका हैं। 29 अक्टूबर को अयोध्या में चारों और पुलिस ही पुलिस थी लेकिन एकदम सन्नाटा था।
'पुलिस ने कारसेवकों को घेर कर गोलियां चलाई'
चंद्र प्रकाश चौहान कहते हैं कि रात को ही हम जिस समूह के साथ रुके थे, सबने तय किया था कि कुछ लोग अशोक सिंहल के साथ ढांचे की तरफ चलेंगे, जिससे पुलिस का सारा ध्यान इधर आ जाए। कुछ लोग अलग रास्ते से ढांचे पर जाकर भगवा फहराएंगे। 30 अक्टूबर को ठीक वैसा ही हुआ। राजकुमार, शरद अन्य कारसेवकों के साथ विवादित ढांचे तक पहुंचकर उस पर भगवा फहराने में सफल रहे। वह लोग इधर अशोक सिंहल के साथ थे। पुलिस ने लाठीचार्ज कर दिया और सब कारसेवक इधर-उधर बिखर गए। अवध बिहारी के घर पहुंचे वहां पता चला सरयू पुल पर पुलिस ने कारसेवकों को घेर कर गोलियां चलाई हैं। बहुत कारसेवक मारे गए हैं। पुलिस ने चिढ़कर राजकुमार और शरद कोठारी को भी गोली मार दी है। घर-घर तालशी होने जा रही है। इस वजह से वह दोनों मित्रों के साथ तड़के चार बजे दिल्ली के लिए निकल गए।
'पुलिस के जवानों का भी मिला पूरा साथ'
कारसेवा वर्ष 1992: चंद्र प्रकाश चौहान बताते हैं कि वर्ष-1992 में उत्तर प्रदेश में सरकार बदल गईं थी। कल्याण सिंह मुख्यमंत्री थे। वह भाजपा युवा मोर्चा नंद नगरी मंडल जिला नवीन शाहदरा का अध्यक्ष बन गए थे। दिसंबर में कारसेवा का बुलावा हुआ। एक दिसंबर 1992 को मां व पत्नी ने तिलक चंदन लगा कर गीत गाते हुए अयोध्या के लिए विदा किया। इस बार पूरी ट्रेन बुक थी। अयोध्या तक पहुंचने में कोई परेशानी नहीं हुई। दो दिसंबर को अयोध्या पहुंचे। अपने प्रांत की टोली के साथ रुके। हमारी टोली को निर्देश प्राप्त हुआ की हमें भजन गाते हुए ढांचों तक पहुंचना है। अंदर-बाहर दो-दो घंटे सुबह-शाम कारसेवा करनी है। हमारी टोली का नंबर 24 घंटे बाद आता था। अयोध्या में मेले जैसा माहौल था। हर तरफ भजन व जय श्रीराम के उद्घोष सुनाई देते थे।
'लोग बुलाकर पकवान और मिठाई खिलाते थे'
चंद्र प्रकाश चौहान कहते हैं कि स्थानीय लोग घर बुलाकर पकवान मिठाई दूध आदि खिलाते-पिलाते थे। पुलिस बल के जवान कहते थे कि हाथ बंधे हैं लेकिन ढांचे को मिटाने का अंतिम मौका है। फिर छह दिसंबर की सुबह की प्रार्थना में सूचना मिली की सभी कारसेवकों को सिर्फ सांकेतिक कारसेवा करनी है। सरयू पर श्रीराम नाम का भजन गाते जाना है। वहां की रेत लाकर ढांचे से बहुत दूर डालनी है। सबको हाथों में पन्नी पकड़ा दी गई। लोग बहुत गुस्सा हुए ये सुनकर, जो अनुशासन प्रिय थे वो राम नाम गाते चले गए।
हमारी टोली के मुझ सहित कुछ लोगों ने निर्णय लिया की उन्हें सीधे ढांचे पर जाना है उसे गिराना है। बस चाहे जान चली जाए और उसी तरफ बढ़ गए। गुस्सा इतना बढ़ गया की कोई किसी की बात मानने के लिए राजी नहीं हुआ। कहा कि क्या इसी दिन के लिए कुदाल चलवाई थी यही बातें एक दूसरे से कहते थे। हम लोग सब ढांचे के पास पहुंचे। वहां मंच से नेताओं के भाषण चल रहे थे। कुछ देर सुने और जब उमा भारती ने हनुमान चालीसा कराया तो ढांचे की ओर बढ़ गए। फिर तो रामधुन और जोश में जिसके हाथों में जो लगा उसी से हो शुरू हो गए।
'लोग हमें गुलाल लगा रहे थे और पैर छू रहे थे'
चंद्र प्रकाश चौहान कहते हैं कि कुछ पुलिस के जवानों ने कारसेवकों को अपनी रायफल में लगी संगीन दे दीं। उन्हीं से काम शुरू हो गया। बहुत से पुलिस के जवान भी जोश में कारसेवकों के साथ थे। इस कारण कोई डर ही नहीं रहा था। विवादित ढांचा गिरने के बाद जब वापस आने लगे तो लोग हमें गुलाल लगा रहे थे। पैरों को छू रहे थे। हमारी आंखों में आंसू थे। रात को अयोध्या में दीवाली मनाई गई।
सात दिसंबर की सुबह ट्रेन से टोली के साथ दिल्ली आ गए। रास्ते में ट्रेन पर कई जगह पथराव हुआ लेकिन हम भी तैयार थे। इसे भगवान की लीला मानते हैं कि उन्होंने हमें अपने इस कार्य के लिए चुना बहुत खुशी हो रही है। भगवान का टेंट में दर्शन किया था। अब दिव्य श्रीराम मंदिर में दर्शन करने के बारे में सोच कर ही मन उत्साहित हो जाता है।
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