Dussehra 2025: कहीं 'रावण' न बिगाड़ दे गाजियाबाद की हवा, प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड रखेगा नजर
गाजियाबाद में रावण दहन के बाद होने वाले प्रदूषण को रोकने के लिए प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड सतर्क है। बीते वर्ष शहर प्रदूषण में दूसरे स्थान पर था। इस बार प्रतिबंधित पटाखों के उपयोग पर कार्रवाई की जाएगी। जिले में 57 स्थानों पर रावण दहन होगा और बोर्ड की टीमें निगरानी रखेंगी। ग्रीन पटाखों के उपयोग पर जोर दिया जा रहा है ।

राहुल कुमार, साहिबाबाद। हर वर्ष विजयादशमी पर रावण दहन कर लोग असत्य पर सत्य की जीत का जश्न तो मनाते हैं, लेकिन रावण दहन के बाद हर वर्ष जिले की हवा खराब हो जाती है। बीते वर्ष भी गाजियाबाद शहर प्रदूषण के मामले में देश में दूसरे नंबर पर पहुंच गया था।
कहीं रावण इस बार भी जिले की हवा खराब न कर दे इसके लिए दहन से पहले हर गतिविधि पर नजर रहेगी। उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड रावण दहन में प्रतिबंधित पटाखे उपयोग करने वालों पर इस बार कड़ी कार्रवाई करेगा। इसके लिए बोर्ड की चार टीमें नजर रखेंगी।
जिले में विजयादशमी पर कल बृहस्पतिवार को करीब 57 स्थानों पर रावण, कुंभकरण व मेघनाद के पुतलों का दहन किया जाएगा। शहर में 21, ट्रांस हिंडन में 11 और ग्रामीण क्षेत्रों में 25 स्थानों पर पुतलों का दहन किया जाएगा।
सबसे बड़ा रावण का 80 फीट ऊंचा पुतला कविनगर में फूंका जाएगा। हर रामलीला समिति दावा करती है कि रावण का पुतला फुंकने में ग्रीन पटाखों का इस्तेमाल किया जाएगा। इन पटाखों से प्रदूषण नहीं फैलता है। इसके बाद भी रावण दहन के बाद शहर की हवा खराब हो जाती है, जो लोगों के फेफड़ों को नुकसान पहुंचाती है।
बीते वर्ष देश का दूसरा प्रदूषित शहर रहा था गाजियाबाद
बीते वर्ष रावण दहन के अगले दिन गाजियाबाद की हवा खराब श्रेणी में दर्ज की गई थी। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की वेबसाइट के अनुसार शहर देश के 244 शहरों में दूसरा सबसे प्रदूषित शहर रहा था।
गाजियाबाद का एक्यूआई 265 दर्ज किया गया था। जबकि दशहरे के दिन एक्यूआइ महज 177 मध्यम श्रेणी में दर्ज किया गया था। पहले नंबर पर 267 एक्यूआई के साथ मुजफ्फरनगर रहा था। अधिकारियों का मानना था कि रावण दहन के बाद प्रदूषण के स्तर में बढ़ोतरी हुई।
पुतलों में किन पटाखों का किया गया उपयोग, नहीं होती जांच
उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के एक अधिकारी ने नाम न लिखने की शर्त पर बताया कि पुतलों में पटाखे लगाते समय कोई जांच नहीं की जाती है। जबकि यह जांच होनी चाहिए कि पटाखे ग्रीन हैं या प्रदूषण फैलाने वाले हैं।
पटाखों में खतरनाक तत्व होते हैं। जो वायु को पूरी तरह से प्रदूषित कर देते हैं। वायु में पटाखों के धुएं से निकलने वाले विभिन्न खतरनाक तत्व मौजूद होते हैं। जो स्वास्थ्य को सीधे नुकसान पहुंचाते हैं।
ग्रीन पटाखे व पारंपरिक पटाखों में अंतर
प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अधिकारी ने बताया कि ग्रीन पटाखे जलाने से जल वाष्प उत्पन्न होती है। इससे निकलने वाली धूल की मात्रा कम हो जाती है। हरे पटाखे 110 से 125 डेसिबल के बीच ध्वनि उत्पन्न करते हैं। वहीं, पारंपरिक पटाखे करीब 160 डेसिबल की ध्वनि उत्पन्न करते हैं। इससे ग्रीन पटाखे, पारंपरिक पटाखों की तुलना में लगभग 30 प्रतिशत कम शोर व प्रदूषण करते हैं।
सामान्य पटाखों में प्रदूषण फैलाने वाले ये खतरनाक तत्व हैं मौजूद
- तांबा
- -कैडमियम
- सल्फर
- एल्यूमीनियम
- बोरियम आदि
रावण, कुंभकरण व मेघनाद के पुतलों की ऊंचाई
कविनगर रामलीला मैदान -
- रावण -80 फीट
- कुंभकरण -75 फीट
- मेघनाद -70 फीट
घंटाघर रामलीला मैदान
- रावण -75
- कुंभकरण -70 फीट
- मेघनाद -65 फीट
वसुंधरा सेक्टर-सात की प्राचीन संकट मोचन श्री हनुमान मंदिर धार्मिक रामलीला समिति-
- रावण -61 फीट
- कुंभकर्ण -55 फीट
- मेघनाद -51 फीट
रामायण कला संगम समिति लाजपत नगर
- रावण -55
- कुंभकरण -50
- मेघनाद -45
प्रतिबंधित पटाखे जलाने पर रोक है। अगर कोई प्रतिबंधित पटाखों का उपयोग करता है तो जुर्माने की कार्रवाई होगी। नियम के अनुसार रावण के पुतले में ग्रीन पटाखों का उपयोग करना होगा। इनसे प्रदूषण कम होता है।
-अंकित सिंह, क्षेत्रीय अधिकारी, उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड
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