गाजियाबाद बंदरों के आतंक से जनता परेशान, इलाहाबाद हाईकोर्ट ने विभाग से मांगा जवाब
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने गाजियाबाद में बंदरों के आतंक पर सुनवाई करते हुए नगर विकास विभाग से जवाब मांगा है। कोर्ट ने विभाग से बंदरों की समस्या से निपटने के लिए उठाए गए कदमों की जानकारी मांगी है। याचिकाकर्ताओं ने बताया कि बंदरों के कारण कई जिलों में लोग परेशान हैं फसलें बर्बाद हो रही हैं और बच्चों की सुरक्षा खतरे में है।

जागरण संवाददाता, गाजियाबाद। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने बंदरों के बढ़ते आतंक से जुड़ी एक याचिका पर सुनवाई करते हुए राज्य के नगर विकास विभाग से पूछा है कि बंदरों की समस्या से निपटने के लिए उन्होंने क्या कदम उठाए हैं। साथ ही, कोर्ट ने विभाग की योजना की जानकारी भी मांगी है।
मुख्य न्यायाधीश अरुण भसाली और न्यायमूर्ति क्षितिज शैलेंद्र की खंडपीठ ने गाजियाबाद के विनीत शर्मा और प्राजक्ता सिंघल की याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि एक विभाग दूसरे पर जिम्मेदारी डाल रहा है, जबकि जनता बंदरों के हमलों से परेशान है। कोर्ट ने यह भी कहा कि नगर निकाय नगर विकास विभाग के अधीन हैं, इसलिए उन्हें भी मामले में पक्षकार बनाना उचित है।
याचिकाकर्ता अधिवक्ता आकाश वशिष्ठ और पवन तिवारी ने कहा कि राज्य के लगभग सभी जिलों में लोग बंदरों से परेशान हैं और भोजन के अभाव में बंदर भूखे-प्यासे रह रहे हैं। इस संबंध में हाईकोर्ट में एक याचिका दायर की गई थी।
मामले की सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट ने कहा कि चूंकि सभी नगर पालिकाओं का प्रशासन नगर विकास विभाग के अधीन है, इसलिए नगर विकास विभाग को भी इस मामले में शामिल किया जाना चाहिए। याचिकाकर्ताओं ने अदालत में समाचार पत्रों की रिपोर्ट पेश कीं, जिनमें कहा गया कि कौशांबी, प्रयागराज, सीतापुर, बरेली और आगरा समेत कई ज़िलों में बंदरों ने लोगों का जीना मुश्किल कर दिया है। फसलें बर्बाद हो रही हैं, स्कूलों में बच्चों की सुरक्षा एक चुनौती बनी हुई है और कई जगहों पर लोग डर के मारे घरों में कैद रहने को मजबूर हैं।
अदालत को बताया गया कि वन्यजीव संरक्षण अधिनियम से बंदरों को हटाए जाने के बाद, अब वे नगर निगमों और नगर पालिकाओं के अधिकार क्षेत्र में आते हैं और इन निकायों का कर्तव्य है कि वे जनता की सुरक्षा और सुविधा सुनिश्चित करें। याचिका में तत्काल कार्ययोजना, पशु चिकित्सालयों और बचाव वैन की व्यवस्था, बंदरों को जंगलों में पुनर्वास, भोजन की व्यवस्था और 24 घंटे हेल्पलाइन पोर्टल की स्थापना की मांग की गई है।
गाजियाबाद के ज़िला मजिस्ट्रेट ने एक हलफ़नामा दायर कर बताया कि उन्होंने 20 अगस्त, 2025 को शहरी विकास विभाग और पर्यावरण विभाग को पत्र लिखकर दिशानिर्देश और मानक संचालन प्रक्रिया (SOP) तैयार करने की सिफ़ारिश की थी।
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