गाजियाबाद के थानों में बदलेगी ब्रिटिशकालीन नियम, शिकायतकर्ताओं को मिलेगा सम्मान
गाजियाबाद के थानों में अंग्रेजों के जमाने से चली आ रही ऊंची काउंटर व्यवस्था को खत्म किया जा रहा है। अब थानों में ढाई फीट ऊंची मेजें लगाई जाएंगी जिससे फरियादी और मुंशी आमने-सामने बैठकर बात कर सकेंगे। इसका उद्देश्य थानों में पारदर्शिता लाना और भ्रष्टाचार को कम करना है। ट्रांस-हिंडन क्षेत्र के थानों से इसकी शुरुआत हो चुकी है और जल्द ही यह बदलाव पूरे गाजियाबाद में दिखेगा।

आशुतोष गुप्ता, साहिबाबाद। अंग्रेजों के जमाने के पुराने कानून भले ही खत्म हो गए हों और नए कानून लागू हो गए हों, लेकिन थानों की ब्रिटिशकालीन संरचना आज भी कायम है। आज भी थानों में कार्यालय काउंटर चार से साढ़े चार फीट ऊंचे होते हैं। यहीं पर मुंशी और हेड क्लर्क बैठते हैं, जबकि फरियादियों के पास बैठने की जगह तक नहीं होती।
मुंशी काफी ऊंचाई पर बैठकर फरियादियों की समस्याएं सुनता है, जिससे आगंतुक के प्रति अनादर का भाव झलकता है। अंग्रेजों के जमाने से चली आ रही इस व्यवस्था को अब गाजियाबाद में खत्म किया जा रहा है। स्मार्ट और कम्युनिटी पुलिसिंग के इस दौर में इन ऊंचे काउंटरों को तोड़ा जा रहा है।
इनकी जगह थानों में ढाई फीट ऊंची मेजें लगाई जाएंगी, जिससे फरियादी और मुंशी आमने-सामने बैठकर बातचीत कर सकेंगे और शिकायतकर्ता मुंशी द्वारा की जा रही कार्रवाई को भी देख सकेगा।
गौरतलब है कि अंग्रेजों के जमाने से ही थानों में यही व्यवस्था रही है। जीडी रजिस्टर समेत सभी रिकॉर्ड और अन्य दस्तावेज इसी कार्यालय में रखे जाते हैं। इन कार्यालयों को पुलिस स्टेशन मुख्यालय भी कहा जाता है। कार्यालयों में काउंटर लगाने की प्रथा ब्रिटिश काल से चली आ रही है। सबसे पहले, लगभग दो फीट का एक चबूतरा बनाया जाता है।
इसके ऊपर, लगभग चार से साढ़े चार फीट का एक ठोस काउंटर बनाया जाता है। मुख्य लिपिक और लिपिक चबूतरे पर ऊंची कुर्सियों पर बैठते हैं। जब कोई शिकायतकर्ता आता है, तो उन्हें लिपिक और लिपिक से काफ़ी नीचे बैठाया जाता है, और शिकायतकर्ता को अपना पक्ष रखने के लिए अपना सिर ऊपर उठाना पड़ता है।
इस व्यवस्था के तहत, पीड़ित यह नहीं देख पाता था कि लिपिक कागज़ पर क्या लिख रहा है या शिकायतकर्ता के आवेदन पर क्या कार्रवाई कर रहा है।
कानूनी विशेषज्ञों का कहना है कि अंग्रेजों का इरादा थाने आने वाले शिकायतकर्ताओं पर मानसिक दबाव बनाने का था। अब, इस व्यवस्था को समाप्त कर दिया गया है और स्मार्ट कमरे बनाए जा रहे हैं, जिनमें लिपिक और शिकायतकर्ताओं के लिए कम ऊँचाई वाली मेज़ें और कुर्सियां हैं।
ऊंचे काउंटरों की आड़ में अवैध गतिविधियां
विशेषज्ञों का कहना है कि ऊंचे काउंटरों की आड़ में लिपिक, मुंशी और थाने के कर्मचारी न केवल अवैध गतिविधियों में लिप्त थे, बल्कि भ्रष्टाचार में भी लिप्त थे। कार्यालयों में पारदर्शिता की कमी के कारण, ये लोग खुलेआम पैसे वसूलते थे। काउंटरों के पीछे आपत्तिजनक सामान भी रखा जाता था। अब काउंटरों के हटने से थानों में पारदर्शी व्यवस्था स्थापित होगी और भ्रष्टाचार व अवैध गतिविधियों पर अंकुश लगेगा।
ट्रांस-हिंडन थानों से शुरुआत
ट्रांस-हिंडन क्षेत्र में सात थाने हैं। सभी सातों थानों के कार्यालयों में काउंटरों को तोड़ने का काम शुरू हो गया है। साहिबाबाद, इंदिरापुरम, लिंक रोड और शालीमार गार्डन में काउंटर तोड़े जा चुके हैं। इसके बाद, गाजियाबाद के अन्य थानों में भी काउंटरों को तोड़कर उनकी जगह मेज-कुर्सियाँ लगाई जाएँगी।
थानों में काउंटरों की व्यवस्था अंग्रेजों के जमाने से चली आ रही है। काउंटरों की वजह से लोग उनकी गतिविधियों को देख नहीं पाते थे, जिससे थानों में पारदर्शिता का अभाव था। इन्हें तोड़कर उनकी जगह मेज-कुर्सियों की व्यवस्था करना कहीं बेहतर है।
-पीपी कर्णवाल, सेवानिवृत्त पुलिस उपाधीक्षक
सभी थानों के काउंटरों को ध्वस्त किया जा रहा है। अब फरियादी किसी क्लर्क या मुंशी के सामने बैठकर अपनी बात बेहतर तरीके से रख सकेंगे। यह निर्णय थानों में पारदर्शी व्यवस्था बनाने के लिए लिया गया है। थानों में आने वाले फरियादियों के सम्मान का पूरा ध्यान रखा जा रहा है।
-जे. रवींद्र गौड़, पुलिस आयुक्त
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