जमीन या घर खरीदते समय भूलकर भी न करें ये गलती, रील्स के चक्कर में ठगी का शिकार हो रहे लोग; चौंकाने वाली है रिपोर्ट
गाजियाबाद में सोशल मीडिया के माध्यम से रियल एस्टेट में धोखाधड़ी बढ़ रही है। अवैध कॉलोनाइजर फेसबुक और इंस्टाग्राम पर आकर्षक रील्स बनाकर लोगों को ठग रहे ...और पढ़ें

शाहनवाज अली, गाजियाबाद। गाजियाबाद शहर में तेजी से हो रहे विकास के साथ जमीन की कीमतें भले ही आसमान छू रही हों, लेकिन इसी का फायदा उठाकर शातिर सोशल मीडिया के जरिए रियल एस्टेट के नाम पर बड़े पैमाने पर लोगों की पसीने की कमाई को ठग रहे हैं।
फेसबुक और इंस्टाग्राम पर आकर्षक रील्स बनाकर अवैध और नक्शाहीन कॉलोनियों को वैध बताकर वीडियो में चमचमाती सड़कें, पार्क, पानी-बिजली और आधुनिक सुविधाएं दिखाकर लोगों को प्लाट की बिक्री की जा रही है।
सोशल मीडिया पर वायरल रील्स पर लोग भरोसा कर दिन-प्रतिदिन ठगी का शिकार हो रहे हैं। वह दस्तावेज लेकर जब जीडीए कार्यालय नहीं पहुंचते। तब उन्हें इसका पता चलता है। ऐसे मामलों की शिकायतें रोजाना प्राधिकरण तक पहुंच रही हैं। हाल ही में विजयनगर निवासी प्रेमप्रकाश ने एनएच-9 के पास एक कॉलोनी की रील देखकर 33 हजार रुपये प्रति वर्ग गज की दर से प्लाट खरीद लिया। बाद में जीडीए में जानकारी लेने पर पता चला कि संबंधित कॉलोनी का ले-आउट स्वीकृत ही नहीं है।
इसी तरह संजय नगर निवासी सुनील कुमार भी मुरादनगर की एक कॉलोनी की रील देखकर प्लाट खरीदने वाले थे, लेकिन समय रहते जीडीए से जांच कराने पर वह ठगी से बच गए।
सोशल मीडिया पर वायरल रील्स में कॉलोनियों को आधुनिक योजनाओं की तरह प्रस्तुत किया जाता है। कई बार भरोसा दिलाने के लिए वीडियो में जीडीए कार्यालय की तस्वीरें तक जोड़ दी जाती हैं, जबकि कई स्थानों पर केवल खेत की घास काटकर प्लाटिंग दिखा दी जाती है।
नियमानुसार एक एकड़ भूमि का ले-आउट पास कराने में करीब 50 लाख रुपये तक का खर्च आता है, लेकिन अवैध कॉलोनाइजर बिना किसी स्वीकृति के सीधे प्लाट बेचकर मोटा मुनाफा कमा रहे हैं। इससे वैध बिल्डरों को भी नुकसान हो रहा है।
नियमों के अनुसार, वर्ष 2008 के बाद विकसित किसी भी अवैध कॉलोनी में मकान या दुकान का नक्शा पास नहीं होता। ऐसे में खरीदार वर्षों तक नक्शा पास कराने, बिजली-पानी जैसी मूलभूत सुविधाओं के लिए सरकारी दफ्तरों के चक्कर काटते रहते हैं।
कॉलोनी में अत्याधुनिक सुविधाओं का भरोसा दिलाने वाले कॉलोनाइजर प्लाट बेचकर गायब हो जाते हैं। कई मामलों में जमीन ग्राम समाज या सरकारी होती है, जहां किसी भी तरह की स्वीकृति संभव नहीं होती। नतीजतन खरीदार अपनी जमा पूंजी गंवा बैठते हैं।
जीडीए ने पिछले तीन माह में विभिन्न जोन में 30 से अधिक अवैध कॉलोनियों को ध्वस्त किया है। प्राधिकरण की ओर से लोगों से अपील की जा रही है कि भूखंड खरीदने से पहले ले-आउट स्वीकृति पत्र, भूमि की स्थिति और जीडीए वेबसाइट पर उपलब्ध अवैध कॉलोनियों की सूची जरूर जांच लें और सोशल मीडिया प्रचार पर भरोसा न करें।
बिजली और एआइजी स्टांप कार्यालय पुलिस विभाग को लिखा पत्र
प्राधिकरण क्षेत्र में अवैध रूप से विकसित की जा रही कालोनियों में प्लाट की रजिस्ट्री न करने और विद्युत कनेक्शन न देने के लिए जीडीए की ओर से सुप्रीम कोर्ट के आदेश का हवाला देेते हुए पत्र लिखा गया है, जिसमें कहा गया है कि ऐसी किसी कॉलोनी के प्लाट की रजिस्ट्री या कनेक्शन न दें, जिसके पास प्राधिकरण से स्वीकृत नक्शा न हो। जीडीए अधिकारियों के अनुसार ऐसे ही विभागीय समन्व्य से अवैध कॉलोनियों और निर्माण पर अंकुश लगाने में मदद मिलेगी।
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अवैध कॉलोनियों के खिलाफ प्राधिकरण सख्त है। हर माह अभियान चलाकर ऐसी कालोनियों को ध्वस्त किया जा रहा है। कुछ लोग रील्स के माध्यम से अवैध कालोनियों को वैध बताकर गलत जानकारी फैला रहे हैं, जिन पर कार्रवाई की जाएगी। किसी भी प्लाट में निवेश से पहले जीडीए से वैधता की पुष्टि अवश्य करें। - नन्द किशोर कलाल, उपाध्यक्ष जीडीए

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