भाजपा की राष्ट्रीय परिषद की सूची से भगवा का गढ़ गाजियाबाद गायब, यूपी से 120 कार्यकर्ताओं के नाम शामिल
गाजियाबाद के कार्यकर्ताओं को निराशा हाथ लगी क्योंकि राष्ट्रीय परिषद की सूची में उनका नाम नहीं था, जिसमें उत्तर प्रदेश के 120 कार्यकर्ताओं के नाम हैं। ...और पढ़ें

आशुतोष गुप्ता, साहिबाबाद। उत्तर प्रदेश में भाजपा का सबसे मजबूत किला माने जाने वाले गाजियाबाद के कार्यकर्ताओं के निराशा हाथ लगी है। रविवार को केंद्रीय संगठन की ओर से राष्ट्रीय परिषद की सूची जारी कर दी गई। इस सूची में उत्तर प्रदेश के 120 कार्यकर्ताओं के नाम शामिल हैं। जबकि भगवागढ़ कहे जाने वाले गाजियाबाद का एक भी कार्यकर्ता इस सूची में नाम शामिल कराने में कामयाब नहीं हो सका।
राष्ट्रीय परिषद की यह सूची स्थानीय सियासत की भेंट चढ़ती हुई नजर आ रही है। सूत्र बता रहे हैं आपसी खींचतान के कारण केंद्रीय नेतृत्व ने गाजियाबाद के कार्यकर्ताओं का नाम इस सूची में शामिल नहीं किया। जबकि पश्चिमी उत्तर प्रदेश के कई जिलों गौतमबुद्धनगर, हापुड़, मुरादाबाद, मेरठ, शामली, मुजफ्फरनगर, बिजनौर, बागपत, बुलंदशहर, सहारनपुर से एक या एक से अधिक नाम हैं।
गाजियाबाद को लंबे समय से भाजपा का गढ़ माना जाता रहा है। वर्तमान में यहां से सांसद अतुल गर्ग, पांच विधायक सुनील शर्मा, अजीतपाल त्यागी, संजीव शर्मा, नंदकिशोर गुर्जर व डाॅ. मंजू शिवाच, महापौर सुनीता दयाल, प्रदेश के केबिनेट मंत्री सुनील शर्मा, एमएलसी, दिनेश गोयल, राज्यमंत्री नरेंद्र कश्यप, बड़ी संख्या में नगर निगम में पार्षद भाजपा से ही हैं।
माना जा रहा था कि राष्ट्रीय परिषद के सदस्य बनाने के लिए सभी लोग अपने चहेतों का नाम आगे करेंगे और इन्हें सूची में शामिल कराएंगे। इसको लेकर चर्चा भी जोरों पर थी, लेकिन बताया गया है कि आपसी खींचतान के आगे किसी की भी नहीं चली और नामों को दरकिनार कर दिया गया।
इसके बाद गाजियाबाद की अनदेखी से कार्यकर्ताओं में तो निराशा का माहौल है ही साथ ही इस सूची को लेकर विभिन्न प्रकार की चर्चाओं का बाजार गर्म है। गाजियाबाद के राजनीतिक दिग्गज अब इस बात के कारणों को खोजने में लगे हैं कि गाजियाबाद के कार्यकर्ताओं की उपेक्षा क्यों की गई है।
जबकि पूर्व का इतिहास इस बात का गवाह रहा है कि जब भी प्रदेश या राष्ट्रीय स्तर से कोई बड़ा आयाम आता है तो गाजियाबाद महानगर विशेष भूमिका में रहता है। सूत्र बता रहे हैं कि गाजियाबाद में एसआईआर में मतदाताओं के बीच निष्क्रियता भी इसका एक बड़ा कारण हो सकती है।
गाजियाबाद को माना जाता है वीवीआईपी क्षेत्र
वर्ष 2009 में जब हापुड़ लोकसभा सीट का परीसिमन हुआ था और गाजियाबाद लोकसभा सीट पहली बार अस्तित्व में आई थी तो, भाजपा के तत्कालीन राष्ट्रीय अध्यक्ष राजनाथ सिंह यहां से चुनाव लड़े थे। इसके बाद से गाजियाबाद सीट को वीवीआईपी सीट माना जाने लगा था। वर्ष 2014 व वर्ष 2019 का लोकसभा चुनाव यहां से जनरल वीके सिंह लड़े और दोनों बार जीतकर उन्हें केंद्रीय मंत्री बनाया गया।
इसके साथ ही यहां से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी व मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का भी खासा लगाव रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी यहां अपने करीब आधा दर्जन कार्यक्रम कर चुके हैं। जबकि योगी आदित्यनाथ समय-समय पर गाजियाबाद में समय देते हैं।
इस कारण से गाजियाबाद का नाम देश भर में चर्चाओं में रहता है। इसके साथ ही यहां के कार्यकर्ता शीर्ष स्तर पर बैठे हुए नेताओं से अपनी करीबी बताते हैं। इसके बाद भी सूची में एक कार्यकर्ता का नाम भी शामिल नहीं होना, वरिष्ठों की कार्यप्रणाली पर सवाल खड़ा करता है।
राष्ट्रीय अध्यक्ष के चुनाव में वोट से रह जाएंगे वंचित
केंद्रीय नेतृत्व द्वारा राष्ट्रीय अध्यक्ष के चुनाव में मतदान के लिए हर प्रदेश की राष्ट्रीय परिषद की सूची जारी की जाती है। इस सूची में संबंधित प्रदेश के कार्यकर्ताओं का नाम शामिल किया जाता है। सूची में शामिल लोग राष्ट्रीय अध्यक्ष चुनने के लिए अपने मताधिकार का प्रयोग करते हैं। लेकिन गाजियाबाद के कार्यकर्ता का कोई भी प्रतिनिधि इस बार राष्ट्रीय अध्यक्ष के चुनाव में वोट नहीं कर पाएगा।
राज्य परिषद से चुने गए थे तीन नाम
पिछले सप्ताह ही भाजपा की राज्य परिषद की सूची जारी की गई थी। इसमें गाजियाबाद के तीन कार्यकर्ताओं के नाम शामिल थे। इनमें भाजपा कार्यकर्ता प्रदीप चौहान, प्रति चंद्रा राय व देवेंद्र गिरी का नाम शामिल था।
इस सूची के जारी होने के बाद यह तय था कि यदि प्रदेश अध्यक्ष के लिए चुनाव हुआ तो तीनों कार्यकर्ता वोट का इस्तेमाल करेंगे। इसको लेकर कार्यकर्ताओं में खुशी का माहौल भी था। लेकिन अब राष्ट्रीय परिषद की सूची जारी होेन के बाद कार्यकर्ताओं में निराशा है।

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