कैंसर मरीजों की जिंदगी से खिलवाड़: दो साल तक बंद फर्म से चलता रहा एक्सपायर दवाओं की तस्करी का खेल
एक चौंकाने वाले मामले में, एक दो साल से बंद फर्म कैंसर रोगियों के लिए एक्सपायर हो चुकी दवाओं की तस्करी में शामिल पाई गई। यह अवैध गतिविधि मरीजों के जीवन को खतरे में डालती है। जांच शुरू हो गई है और अधिकारियों ने दोषियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई का वादा किया है ताकि भविष्य में ऐसी घटनाओं को रोका जा सके।

विनीत कुमार, गाजियाबाद। कैंसर की दवाओं की तस्करी में पकड़े गए विश्वास त्यागी की फर्म द मेडिसन हब पर अब नए सवाल उठने लगे हैं। औषधि विभाग ने दो वर्ष पूर्व नकली इंजेक्शन बेचने के मामले में उसका लाइसेंस निरस्त कर दिया था, लेकिन इसके बावजूद फर्म न केवल सक्रिय रही बल्कि बड़े पैमाने पर कैंसर की महंगी दवाओं की तस्करी और फर्जी बिलों के जरिए सप्लाई का केंद्र बनी रही।
महाराष्ट्र तक दवा की आपूर्ति कर रहा
कफ सीरप की जांच कर रही पुलिस को जानकारी मिली कि कैंसर के नाम पर भी दवा का काला कारोबार हो रहा है। इसकी जब जांच शुरू की गई तब विश्वास त्यागी का नाम सामने आया है। इसके बाद विश्वास त्यागी के कारोबार की जांच कराई गई तब पता चला कि बंद फर्म पर वह कारोबार कर रहा है और महाराष्ट्र तक दवा की आपूर्ति कर रहा है।
फिर भी होती रही दवाओं की खरीद-फरोख्त
सूत्रों के अनुसार लाइसेंस रद होने के बाद भी द मेडिसन हब से दवाओं की खरीद–बिक्री होती रही और विश्वास त्यागी अपने नेटवर्क की मदद से दिल्ली और मुंबई स्थित तीन फर्मों थ्राईव फार्मा, यतनेश फार्मा और ब्रदर्स फार्मा को दवाएं सप्लाई करता रहा।
इसके लिए वह गाजियाबाद की केयर हुड, दिल्ली के चावड़ी बाजार स्थित आरबी एंटरप्राइजेज और ओखला की नोविटा फार्मा से फर्जी क्रय बिल तैयार करवाता था। वहीं बिक्री के लिए द मेडिसन हब के नाम से नकली बिल काटता था।
जानबूझकर किया गया अनदेखा
यह पूरा सिस्टम इतनी सफाई से चलता रहा कि दो साल तक न तो औषधि विभाग की नजर पड़ी और न ही किसी निगरानी एजेंसी ने हस्तक्षेप किया। सबसे बड़ा सवाल यह है कि लाइसेंस निरस्त होने के बावजूद एक फर्म कैसे लगातार संचालित हो सकती है। इससे लग रहा है कि निरीक्षण करने वाले अधिकारियों ने जांच में लापरवाही बरती या फिर उन्हें इसकी जानकारी थी और उन्होंने अनदेखा किया।
मोहर मिटवाने जैसे गंभीर अपराध
यदि लाइसेंस निरस्त होते ही विभाग कड़ी निगरानी करता तो इतना बड़ा कारोबार नहीं चल पाता। फर्जी बिलिंग, एक्सपायर दवाओं की बिक्री और सीजीएचएस सप्लाई की दवाओं पर से मोहर मिटवाने जैसे गंभीर अपराध लंबे समय तक जारी रहे और इसका सीधा असर कैंसर मरीजों की जान पर पड़ने की आशंका है।
पुलिस अब इस बात की भी जांच कर रही है कि क्या विभागीय स्तर पर किसी की मिलीभगत से विश्वास त्यागी को संरक्षण मिला। आने वाले दिनों में कुछ और नाम सामने आ सकते हैं और कई लोगों से पूछताछ भी हो सकती है।
बेअसर हो जाती हैं एक्सपायर दवा
औषधि निरीक्षक आशुतोष मिश्रा के मुताबिक एक्सपायर हो चुकी दवा समय बीतने के साथ बेअसर हो जाती है। ऐसी दवाओं का सेवन करने के बाद मरीज के शरीर को कोई लाभ नहीं होता जबकि समय व्यतीत होता जाता है। इससे मरीज की बीमारी घटने की बजाय बढ़ जाती है। कई बार शरीर की प्रतिरोधक क्षमता इतनी कम हो जाती है कि कैंसर मरीज की जान चली जाती है।

कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों
कृपया धैर्य रखें।