Trending

    Move to Jagran APP
    pixelcheck
    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    Kamakhya Temple: सुहागनगरी में भी हैं माता कामाख्या देवी का मंदिर, दूर-दूर से आते श्रद्धालु

    By Prateek GuptaEdited By:
    Updated: Fri, 28 Aug 2020 08:20 PM (IST)

    Kamakhya Temple असोम की तर्ज पर जसराना में होता है जून में हर साल अम्बुवाची महोत्सव। 1984 में मंदिर में स्थापित कराई गई थी प्रतिमा देश भर से आते हैं श्रद्धालु।

    Kamakhya Temple: सुहागनगरी में भी हैं माता कामाख्या देवी का मंदिर, दूर-दूर से आते श्रद्धालु

    फीरोजाबाद, डॉ राहुल सिंघई। कांच की चूड़ियों के लिए देश भर में सुहागनगरी के नाम से मशहूर फीरोजाबाद में आस्था का बड़ा केंद्र है माता कामाख्या देवी का मंदिर। असोम के गुवाहाटी स्थित कामाख्या धाम की तरह यहां भी अम्बुवाची महोत्सव का सालाना जलसा होता है। जिसमें देश भर के श्रद्धालु आते हैं।

    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    जिला मुख्यालय से लगभग 40 किमी दूर जसराना कस्बा में स्थित है कामाख्या धाम। यहां पर 1976 में देवी मंदिर की स्थापना हैं, जिसमें अन्य देवी देवताओं की प्रतिमाएं भी स्थापित की गई। इसके बाद 1984 में माता कामाख्या देवी की प्रतिमा स्थापित कराई गई। इसके साथ ही जून में तीन दिवसीय सालाना अम्बुवाची महोत्सव शुरू हो गया ।

    ऐसे हुई थी स्थापना

    एटा जैथरा के स्वामी माधवानंद मां कामाख्या देवी के भक्त थे। 1976 में वे कस्बे में आए। लोगों से माता का मंदिर बनवाने में सहयोग मांगा। वर्तमान मंदिर पहले खंडहर था, जहां पर जनसहयोग से मंदिर का निर्माण शुरू हुआ। मां कामाख्या देवी की प्रतिमा 1984 में स्थापित हुई। कहा जाता है कि जयपुर के कारोबारी के बच्चे का अपहरण हुआ था। परिजन खोजते हुए यहां आए और लोगों के कहने पर मंदिर पहुंचे और मन्नत मांगी। स्वामी ने कहा कि कल तक बच्चा मिल जाएगा और अगले दिन बच्चा मिल गया। बच्चे ने बताया कि रात में एक छोटी लड़की आई थी। उसके आते ही उसके हाथ-पैर की रस्सी खुल गई और उसने बदमाशों के चंगुल से निकाला। परिवार की ओर से दिए गए चढ़ावे में भक्तजनों ने सहयोग देकर प्रतिमा स्थापित करवाई।

    तीन दिन रहती है महोत्सव की धूम

    हर साल 22 जून को अम्बुवाची महोत्सव शुरू होता है। बताते हैं कि माता तीन दिन के लिए रजस्वला होती है। 22 जून को महिलाएं माता की सेवा करती हैं। माता को सफेद साड़ी पहनाकर पट बंद कर दिए जाते हैं। तीसरे दिन 25 को मंदिर के पट खोले जाते हैं और माता का भव्य श्रृंगार होता है। इसके बाद सफेद कपड़े को छोटे छोटे टुकड़ों में श्रद्धालुओं को बांटा जाता है। मंदिर के पीठाधीश स्वामी श्री महेश स्वरुप ब्रहमचारी जी बताते हैं कि इन तीन दिनाें तक मां को होने वाली पीड़ा को भक्त महसूस करते हुए पूजा अर्चना करते हैं। इन तीन दिनाें तक मां कामाख्या की गयी आराधना से भक्ताें के समस्त संकटाें का नाश होता है।

    ऐसे पहुंचे मंदिर

    ट्रेन और सड़क मार्ग के जरिए आगरा-कानपुर हाईवे पर स्थित फीरोजाबाद जिले के कस्बे शिकोहाबाद तक पहुंचा जा सकता है। यहां से जसराना 16 किमी दूर है। निजी वाहन और टैम्पो से यहां पहुंचा जा सकता है। जसराना में ब्लॉक कार्यालय के पास सड़क के किनारे मंदिर है।