कर्तव्य निभाने पर मर्यादा पुरुषोत्तम कहलाए श्रीराम
मनुष्य अपने कर्मों से महान बनता है। कर्महीन मनुष्य जीवन भर भाग्य के पीछे दौड़ता रहता है और
मनुष्य अपने कर्मों से महान बनता है। कर्महीन मनुष्य जीवन भर भाग्य के पीछे दौड़ता रहता है और हासिल कुछ नहीं कर पाता है। कर्तव्य परायणता मनुष्य को बुलंदियों और ऊंचाइयों का शिखर तक पहुंचाती है। मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम ने अपने कर्तव्य को कभी नहीं भूले। अपने कर्तव्य पालन के लिए वह जंगल में दर दर भटकते रहे और चौदह वर्षों तक के बाद रामचंद्र से मर्यादा पुरुषोत्तम बने। भारतीय संस्कृति में धर्म की व्यापकता पर जोर दिया गया है। जिसका अर्थ है कि वह नियम जिसके धारण करने से व्यक्ति एवं समाज का सर्वांगीण हित साधना होता है। हमारे धर्म ग्रंथों में आस्तिकता एवं कर्तव्य परायणता को अंगीकार करने की बात कही गई है। उसे मानव जीवन के धर्म कर्तव्य के रूप में स्वीकार करने तथा अपनाने की घोषणा की गई है। इसलिए धर्म कर्तव्य सामान्य कर्तव्यों से ऊपर यह कर्तव्य है। जिनको जीवन में अपनाकर व्यक्ति से लेकर समाज तक और लौकिक से लेकर आध्यात्मिक उत्कर्ष के मार्ग प्रशस्त होते हैं। इसलिए धर्म कर्तव्यों से कष्ट सहकर भी विपरीत परिस्थितियों में भी अपनाये रखने को आग्रह शास्त्रों एवं विचारकों द्वारा किया जाता रहा है। जब मनुष्य अपने कर्तव्य धर्म को कठोरता पूर्वक पालन करने के लिए स्वयं श्रद्धा एवं विश्वास पूर्वक कटिबद्ध न होगा तब तक उसे संमार्गी बनाया जाना कठिन है।
जय प्रकाश नारायण
प्रधानाचार्य
पीसीपीएम इंटर कॉलेज, दरियापुर
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कर्तव्यपरायणता के साथ आगे बढ़ने में सफलता सुनिश्चित होती
मनुष्य क्रियाशील प्राणी है। शारीरिक और मानसिक रूप से सदैव क्रियाशील रहते हैं। विभिन्न प्रकार के गतिविधियों और कार्यों में अपने योगदान से समाज में अपना स्थान सुनिश्चित करते हैं। स्वस्थ, सुदृढ़ और सुरक्षित समाज के निर्माण में अधिकारों के प्रति जागरूकता के साथ ही कर्तव्यों का पूरी निष्ठा से किया जाना अति आवश्यक है। कर्मों से हमें अधिकार प्राप्त होते हैं। यह क्रिया-प्रतिक्रिया जैसा ही सामान्य सिद्धांत है। अपने आसपास के परिवेश के प्रति सजगता, सभी के प्रति संवेदनशीलता, अपने कार्यों के प्रति इमानदारी हमारी कर्तव्य परायणता को दर्शाते हैं। इमानदारी और निष्ठा से किए गए कार्यों में फल की चिता से अधिक आत्म संतुष्टि का सुख निहित होता है। ऐसा हम अपने व्यवहार में तभी ला पाते हैं, जब हम दूसरों के कार्यों का सम्मान कर पाते हैं। किसी उद्देश्य की पूर्ति के लिए सदैव इमानदारी से किए गए प्रयासों से ही सफलता मिलती है। सभी के सहयोग, सभी के सम्मान , ऐसी भावना के साथ अपने पथ पर कर्तव्यपरायणता के साथ आगे बढ़ने में सफलता सुनिश्चित होती है।
डॉ. गौरी सिंह गौतम
प्रधानाध्यापक, कंपोजिट विद्यालय, नारायणपुर ------------------------
बेटी ने समर्पण से लिखा कर्तव्य परायणता का इतिहास
बात उन दिनों की है जब लोगों के दिल और दिमाग से रंग का खुमार नहीं उतरा था। अचानक पूरे देश में लॉकडाउन की घोषणा हो गई। चारों तरफ वीरानगी फैली हुई थी लोग एक दूसरे से भी नहीं मिल पा रहे थे। तमाम व्यक्ति पैसे-पैसे के लिए जद्दोजहद कर रहा था। शहर में मजदूरी करने वाले लोग अपने घरों की ओर पलायन करने लगे। उन्हीं में से 13 साल की बेटी झोली में धन न होने के चलते घर पहुंचने की आशा खो बैठी थी। उधर प्रतिदिन लॉकडाउन और बढ़ती भूख के चलते लोगों की जान निकल रही थी। बेटी 24 घंटे चिता में डूबी रहती थी। उसके अंदर जागे दृढ़ निश्चय से घर पहुंचने और पहुंचाने की इच्छा जागी। पिता को साइकिल से बिठाकर उसने सैकड़ों किमी का सफर तय कर लिया और एक दिन वह अपने पैतृक गांव जा पहुंची। उस बच्ची के हौसलों के आगे सारी समस्याएं नतमस्तक हो गई। उसने सफलता का इतिहास रचा। यह कहानी दिल्ली के गुरुग्राम से बिहार की सड़कों के बीच लिखी गई और देश भर में यह चर्चित हो गई। यह सब उसके ²ढ़ निश्चय समर्पण ओर कार्य के लिए समर्पित भाव के कारण संभव हो पाया है।
राजीव कुमार सिंह, सहायक अध्यापक, कंपोजिट विद्यालय अखरी, हथगाम ------------------------
अच्छाईयों की बेल में छिपा होता फलसफा
अपने जन्म से लेकर अब तक हमने वही कार्य किए हैं जो हमने जाने और देखे हैं। हमारे कई कार्यों में हमे प्रोत्साहन मिलता है। ये वही कार्य है तो हमने अपने पूर्वजों-महापुरुषों से सीखे हैं और उसे कर्तव्य मानते हैं। मनुष्य की तरह प्राकृतिक वस्तुएं भी अपना कर्तव्य बखूबी निभाती हैं। जैसे पेड़, पौधे मिट्टी में जन्म लेते हैं और कंक्रीट की सतह पर फलते फूलते हैं। बरगद का पेड़ अपने बगल में खड़े अमरूद के पेड़ केा बिना नुकसान पहुंचाते हुए अपनी डालें टेढ़ी कर लेता है और इस प्रकार अपना कर्तव्य निभाता है। अगर पेड़ अपना कर्तव्य निभाता है तो फिर हम मनुष्यों को अपना फर्ज निभाना चाहिए। एक अध्यापक के रूप में शिष्यों में उन सभी गुणों को गढ़ता हूं जिससे वह एक अच्छे नागरिक बन सके। देश और समाज की सेवा में योगदान दे सकें। खुद कर्तव्य परायण होते हुए दूसरों में विकास विकसित किया जाना चाहिए। इस पर यह पंक्तियां बे मुसक्कत पे मुपस्सर हो नहीं सकता गनी, रंग लाई तन हिना, पिसी-कुटी-भीगी-छनी।
रुपेश कुमार, प्रधानाध्यापक, प्राथमिक विद्यालय सिठौरा प्रथम
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