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कृषि कानून का बड़ा तोहफा : सही मायने में अब किसान कर सकेंगे तरक्की

Agriculture Reform Bill 2020 गन्ने की खेती व गुड़ से मनमाफिक कमाने वाले फर्रुखाबादी किसान बंधु का नजरिया बोलेकांट्रैक् ट फार्मिंग से किसानों को अब बड़ी कंपनियों से मिलेंगी नई तकनीक। कृषि बिल लाकर सरकार ने किसानों की समस्या समझी है।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Tue, 08 Dec 2020 10:14 AM (IST)Updated: Tue, 08 Dec 2020 10:23 AM (IST)
कृषि बिल लाकर सरकार ने किसानों की समस्या समझी है।

विजय प्रताप सिंह, फर्रुखाबाद। गुड़ 350 रुपये प्रति किलो, सुनकर चौंक गए न आप, लेकिन यह सोलह आने सच है। वजह इसकी विशेषता है, जिसे जानते ही आप भी ये गुड़ खरीदकर खाने को उत्सुक हो जाएंगे। ठंड के मौसम में मेहमानों के सामने रख देंगे तो अच्छी मिठाइयों को दरकिनार करके वो भी इसकी सराहना करते नहीं थकेंगे। ये गुड़ तैयार कर रहे हैं जिले के कुइयां धीर गांव निवासी प्रगतिशील किसान सुधांशु गंगवार और उनके जुड़वा भाई हिमांशु गंगवार।

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परास्नातक सुधांशु खेती और कारखाना संभालते हैं तो मैकेनिकल इंजीनियर हिमांशु मार्केटिंग संग नई तकनीक पर काम करते हैं। दोनों का कहना है कि कृषि बिल के लागू होने से किसानों को अब सही मायने में आजादी मिली है। सुधांशु व हिमांशु बगैर रासायनिक खाद और कीटनाशक इस्तेमाल किए पूरी तरह से जैविक विधि से खेतों में तैयार गन्ने से गुड़ बनाते हैं। इसके अलग-अलग फ्लेवर हैं।

गुड़ के फ्लेवर और दाम

  • 4150 रुपये प्रतिकिलो बिकता है सादा गुड़
  • 4190 रुपये प्रतिकिलो में सोंठ युक्त गुड़ की बिक्री।
  • 4250 रुपये प्रति किलोग्राम में तिल और अलसी वाला गुड़।
  • 4350 रुपये में एक किलो अखरोट-बादाम मिला गुड़।
  • 4500-500 ग्राम की आकर्षक र्पैंकग में चॉकलेट और केक की तरह दिखता है अखरोट-बादाम मिला गुड़

खास बातें

  • 420 एकड़ जमीन है गंगवार बंधुओं के पास में
  • गन्ने संग हल्दी, केला, पपीता, चना, मसूर, मूंग, लहसुन की भी जैविक खेती करते हैं
  • अपने उत्पाद की खुद मार्केटिंग करके लखनऊ, दिल्ली, आगरा, अहमदाबाद, देहरादून समेत बड़े शहरों में बेचते हैं

अब किसान स्वतंत्र, सहफस ली खेती से लाएं समृद्धि : सुधांशु कहते हैं कि कृषि बिल लागू होने से किसान अब अपना उत्पाद कहीं भी बेचने के लिए स्वतंत्र हैं। पहले उन्हें बंदिशों का सामना करना पड़ता था। मंडी से रसीद कटवानी पड़ती थी, नहीं तो मंडी शुल्क के नाम पर उत्पीड़न होता था। मंडियों में कुछ व्यापार्री सिंडीकेट बनाकर फसल औने-पौने दामों में खरीद लेते थे। अभी रबी में गेहूं, आलू और खरीफ में धान व मक्का जैसी फसलों पर ही बातें होती हैं। इसलिए किसानों को भी अपनी खेती में विविधता लानी होगी। कांट्रैक्ट फार्मिंग से बड़ी कंपनियों के जरिए किसानों को नई तकनीक और नई सोच मिलेगी। सह-फसली खेती करनी चाहिए। 


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