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    फर्रुखाबाद में हर 14 घंटे में एक नवजात की मौत, 30 दिन में 49 मरे

    By Dharmendra PandeyEdited By:
    Updated: Wed, 30 Aug 2017 03:19 PM (IST)

    फर्रुखाबाद के डॉ.राममनोहर लोहिया जिला अस्पताल में 30 दिन में 49 नवजात की मौत हो चुकी है। इनमें से 30 तो अकेले सिक न्यूबॉर्न केयर यूनिट (एसएनसीयू) में ही काल के गाल में समा गए।

    फर्रुखाबाद में हर 14 घंटे में एक नवजात की मौत, 30 दिन में 49 मरे

    फर्रुखाबाद (जेएनएन)। गोरखपुर का बाबा राघवदास मेडिकल कालेज  इन दिनों बच्चों की मौत के कारण बेहद चर्चा में है। कुछ ऐसा ही हाल यहां के लोहिया अस्पताल का है। जहां पर बीते एक महीने से लगातार बच्चों की मौत का सिलसिला बना हुआ है। यहां पर बीती 21 जुलाई से 20 अगस्त तक हर 14 घंटे पर एक बच्चे की मौत हो रही है। डाक्टर इन मौत का कारण अभी तक नहीं जान पा रहे हैं।

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    सरकार जच्चा-बच्चा के स्वास्थ्य के प्रति भले ही सतर्कता के दावे कर रही हो, लेकिन हालत यह है कि यहां के डॉ.राममनोहर लोहिया जिला अस्पताल में विगत 30 दिनों में 49 नवजात की मौत हो चुकी है। इनमें से 30 शिशु तो अकेले सिक न्यूबॉर्न केयर यूनिट (एसएनसीयू) में ही काल के गाल में समा गए। वहीं सुरक्षित प्रसव की आस लेकर लोहिया महिला अस्पताल आईं 19 प्रसूताओं की गोद भरने से पूर्व ही सूनी हो गई। आंकड़ों की यह बानगी तो केवल 21 जुलाई से 20 अगस्त के बीच के ही हैं।

    शिशु-मातृ मृत्यु दर को कम करने के लिए सरकार की ओर से करोड़ों खर्च हो रहे हैं। जननी सुरक्षा व जननी शिशु सुरक्षा योजना के तहत टीकाकरण, आन कॉल एंबुलेंस व आशाओं की तैनाती भी है। वहीं जन-जागरूकता के नाम पर पोस्टर, बैनर, वॉल पेंटिग जैसे विभिन्न मदों में खर्च का खाता अलग है। इसके बावजूद राम मनोहर लोहिया महिला अस्पताल में 21 जुलाई से 20 अगस्त तक 49 नवजात शिशुओं की मौत होना स्वास्थ्य सेवाओं पर सवाल खड़े कर रहा है। विभागीय आंकड़ों के अनुसार उपरोक्त अवधि में लोहिया अस्पताल में 468 नवजात शिशुओं का जन्म हुआ। अस्पताल में प्रसव के दौरान इनमें से 19 बच्चों की मौत हुई है। उपरोक्त अवधि में गंभीर रूप से बीमार 211 नवजात शिशुओं को एसएनसीयू वार्ड में भर्ती कराया गया। इनमें से 30 बच्चों की मौत हो गई।

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    यह तब है जबकि लोहिया अस्पातल में नवजात शिशुओं की सुरक्षा के लिए हाईटेक तकनीक से युक्त एसएनसीयू व केएमसी वार्ड स्थापित है। शिशु-मातृ मृत्यु को रोकने के लिए स्वास्थ्य विभाग यहां मदर एंड चाइल्ड ट्रैकिंग का सिस्टम भी संचालित है।

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    इसमें आशा वर्कर की मदद से प्रसूता महिला को अस्पताल लाया जाता है।  उनका एमसीएच कार्ड बनता है, जिसके तहत प्रसूता का अस्पताल में तीन बार परीक्षण होता है। मरीज के स्वास्थ्य के अनुसार उसका उपचार होता है।

    इस बारे में बाल रोग विशेषज्ञ और एसएनसीयू ( सिक न्यूबोर्न केयर यूनिट) के इंचार्ज डॉ कैलाश दुल्हानी का कहना है कि इस यूनिट में अत्यंत सीरियस मरीज भर्ती होते हैं। ऐसे में 10 से 12 प्रतिशत बच्चों की मौत हो ही जाती है।

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    इसके पीछे लापरवाही कारण नहीं है। जो नवजात शिशु वार्ड में भर्ती हुए थे वह पहले से ही गंभीर थे। जिससे मृत्यु होना स्वाभाविक है। आक्सीजन, दवाइयां आदि पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध हैं। बच्चों की देख रेख के लिए नर्स 24 घंटे उपलब्ध रहती हैं।

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