अयोध्या के इस भवन में उकेरे गए हैं रामायण के सभी 24 हजार श्लोक
नगरी की प्रतिनिधि इमारत वाल्मीकीय रामायण भवन आदिकवि और उनकी रचना के प्रति समर्पित है, यह भवन भव्य एवं विशाल सभागार के रूप में है।
अयोध्या (रघुवरशरण)। गुरुवार को आदि कवि वाल्मीकि की जयंती मनाई जाएगी। रामनगरी में आदि कवि की विरासत पूरे गौरव से प्रवाहमान है। यह स्वाभाविक भी है। संस्कृत गोस्वामी तुलसीदास की अवधी भाषा की तुलना में कुछ कठिन है पर रामनगरी के जिन संतों को संस्कृत की समझ है, वे वाल्मीकि रामायण के गहन अनुरागी हैं।
नगरी की प्रतिनिधि इमारत वाल्मीकीय रामायण भवन आदिकवि और उनकी रचना के प्रति समर्पित है। यह भवन भव्य एवं विशाल सभागार के रूप में है। सफेद संगमरमर से आच्छादित सभागार की आंतरिक सतह पर वाल्मीकीय रामायण के सभी 24 हजार श्लोक उत्कीर्ण हैं। एक दर्जन से अधिक विशाल स्तंभों से सज्जित सभागार के केंद्र में भगवान राम के पुत्र लव एवं कुश के साथ ऋषि वाल्मीकि की प्रतिमा स्थापित है।
वासुदेवघाट मुहल्ला स्थित इस भवन को देखने प्रतिदिन हजार के करीब लोग आते हैं। मेलों के दौरान यह संख्या कई गुना अधिक होती है। दर्शक सामान्य तौर पर इन पंक्तियों को देखते हुए गुजर जाते हैं पर कई ऐसे भी होते हैं, जो संस्कृत भाषा की पंक्तियों को पढ़ने और उनका अर्थ जानने की कोशिश करते हैं।
महाकाव्य में भगवान राम के जन्म से लेकर लंका विजय एवं विजय के बाद राज्याभिषेक तक का विस्तृत विवेचन है। रामायण भवन के निर्माण की शुरुआत 1965 में मणिरामदास जी की छावनी के महंत नृत्यगोपालदास ने की और करीब 10 वर्ष के अनवरत प्रयास के बाद इसका लोकार्पण संभव हुआ। महंत नृत्यगोपालदास की उपलब्धियों में सेवा एवं निर्माण के आज अनेक प्रकल्प शामिल हैं पर छावनी के ठीक सामने स्थित रामायणभवन चार दशक से स्थापत्य के वैभव का प्रतीक बना हुआ है।
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महंत नृत्यगोपालदास के शिष्य एवं प्रवचनकर्ता पं. राधेश्याम शास्त्री के अनुसार यहां रामायण को संगमरमर की दीवार पर क्रमवार निरूपित देखना बताता है कि युगों पूर्व रची गई रामायण अमरत्व से ओत-प्रोत है।
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