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    Salempur Lok Sabha Chunav Result 2024: भाजपा कार्यकर्ताओं के मनमुटाव ने सलेमपुर में हैट्रिक से रोका, सामने आया हैरान करने वाली वजह

    विपक्ष की ओर से संविधान का मुद्दा जोरदार ढंग से उठाए जाने के कारण भाजपा से जुड़े कुछ अति पिछड़े-दलित वोटर दूर हो गए। जिससे भाजपा को हैट-ट्रिक से रोक दिया। सलेमपुर संसदीय सीट पर भाजपा प्रत्याशी व सांसद रविंदर कुशवाहा के पिता हरिकेवल प्रसाद चार बार सांसद रहे थे। उनके निधन के बाद इस सीट पर रविंदर कुशवाहा वर्ष 2014 व 2019 में मोदी लहर में चुनाव जीत गए।

    By Jagran News Edited By: Vivek Shukla Updated: Wed, 05 Jun 2024 11:47 AM (IST)
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    बाएं से भाजपा उम्‍मीदवार रविंदर कुशवाहा, सपा उम्‍मीदावार रमाशंकर राजभर

     जागरण संवाददाता, देवरिया। सलेमपुर से लोकसभा प्रत्याशी व सांसद रविंदर कुशवाहा की मामूली अंतर से हार के बाद राजनीतिक गलियारे में चर्चा का बाजार गर्म है। चुनाव परिणाम आने के बाद लोगों की नाराजगी को हार की वजह बता रहा है। साथ ही उनके भाई की राजनीतिक महात्वाकांक्षा के चलते भी भीतरघात की बात सामने आ रही है। जिससे कार्यकर्ताओं में मनमुटाव रहा।

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    इसके अलावा विपक्ष की ओर से संविधान का मुद्दा जोरदार ढंग से उठाए जाने के कारण भाजपा से जुड़े कुछ अति पिछड़े व दलित वोटर दूर हो गए। जिससे भाजपा को हैट-ट्रिक से रोक दिया। सलेमपुर संसदीय सीट पर भाजपा प्रत्याशी व सांसद रविंदर कुशवाहा के पिता हरिकेवल प्रसाद चार बार सांसद रहे थे। उनके निधन के बाद इस सीट पर रविंदर कुशवाहा वर्ष 2014 व 2019 में मोदी लहर में चुनाव जीत गए।

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    उन्होंने दस वर्ष के कार्यकाल में विकास कार्यों को तरजीह जरूर दी, लेकिन जनभावनाओं की कद्र न करने के कारण उनसे नाराजगी थी। कुछ लोगों का कहना है कि सांसद चुने जाने के बाद कई गांवों में गए ही नहीं। कई मामलों में पक्षकार बनने के कारण भी लोग उनसे दूर हो गए। दूसरी तरफ इस बात की भी चर्चा है कि उनके छोटे भाई जयनाथ कुशवाहा उर्फ गुड्डन भी राजनीतिक में अपना भविष्य संवारना चाहते हैं।

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    वह भाटपाररानी से भाजपा के टिकट पर एक बार विधानसभा का चुनाव लड़ चुके हैं। यह बात भी पार्टी से जुड़े लोगों को नागवार लग रही थी। कुछ लोग भाटपाररानी विधानसभा क्षेत्र से जयनाथ कुशवाहा को अपनी राजनीति के मार्ग में बाधक मान रहे हैं।

    जिसके कारण उन्होंने भाजपा प्रत्याशी के साथ रहने का दिखावा किया और जनता में नाराजगी को हवा देने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी। जिसके कारण सवर्ण मतदाताओं का एक खेमा सपा के साथ चला गया।