धर्म का आधार आडंबर नहीं, व्यवहार
(देवरिया) : सद्भाषण, सद्विचार, सद्भावना और न्याय निष्ठा का परित्याग कर बाह्य आडंबर से धर्मात्मा नहीं बना जा सकता। धर्म का आधार आडंबर नहीं, व्यवहार है। नाम-जप, अभ्यास नहीं प्रत्युत पुकार है। अभ्यास में इंद्रिय और मन की प्रधानता है और पुकार में स्वयं की प्रधानता है। नाम की तरफ वृत्ति हो तो सप्राण जप होता है।
यह बातें कथा व्यास पंकज मणि ने रविवार को कही। वह क्षेत्र के ग्राम धौला पंडित में आयोजित भागवत कथा के अंतिम दिन श्रद्धालुओं को कथा का रसपान करा रहे थे। समाज में अर्थ के बढ़ते प्रभाव को रेखांकित करते हुए कहा कि धन महत्वपूर्ण है, लेकिन धन किसी को अपना गुलाम नहीं बनाता। मनुष्य खुद ही धर्म का गुलाम बन कर अपना पतन कर लेता है। धन का उपयोग बुरा नहीं है, पर आसक्ति बुरी है। यदि आप चाहते हैं कि कोई भी आप को बुरा न समझे तो दूसरों को बुरा समझने का आपको कोई अधिकार नहीं है।
इसके पूर्व भागवत कथा का समापन हवन पूजन के साथ हुआ। हवन कुंड में डाली गई घी,जौ, तिल, धूप, गुड़ आदि की आहुतियों के सुगंध से वातावरण महक उठा। तत्पश्चात बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं ने प्रसाद ग्रहण किया।
कथा को सफल बनाने में रामनिहोरा पांडेय, रामअशीष पांडेय, जयनाथ पांडेय, विंध्यवासिनी देवी, उमेश पांडेय, बेचन पांडेय, देवेंद्र पांडेय, अशोक पांडेय, संतोष पांडेय, बनारसी विश्वकर्मा, बैजनाथ उपाध्याय, हरेराम पांडेय आदि का प्रमुख योगदान रहा।
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