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    मृदा परीक्षण प्रयोगशालाओं पर लटका ताला, विज्ञानी बांट रहे ज्ञान

    By JagranEdited By:
    Updated: Tue, 13 Jul 2021 12:12 AM (IST)

    किसानों को आधुनिक खेती का ज्ञान बांटने वाले कृषि विज्ञान केंद्र के विज्ञानियों को दूसरे संस्थानों की मृदा रिपोर्ट पर भरोसा करना पड़ रहा। कारण खुद के लैब दस साल से बंद पड़े हैं। यह स्थिति चंदौली जिले की नहीं बल्कि आजमगढ़ गाजीपुर बहराइच बलिया वाराणसी समेत अन्य जिलों के 17 केविके की है।

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    मृदा परीक्षण प्रयोगशालाओं पर लटका ताला, विज्ञानी बांट रहे ज्ञान

    जितेंद्र उपाध्याय, चंदौली

    किसानों को आधुनिक खेती का ज्ञान बांटने वाले कृषि विज्ञान केंद्र के विज्ञानियों को दूसरे संस्थानों की मृदा रिपोर्ट पर भरोसा करना पड़ रहा। कारण खुद के लैब दस साल से बंद पड़े हैं। यह स्थिति चंदौली जिले की नहीं बल्कि आजमगढ़, गाजीपुर, बहराइच, बलिया, वाराणसी, समेत अन्य जिलों के 17 केविके की है। इनमें भी मिट्टी की जांच दस साल से नहीं हो रही है। जबकि नरेंद्रदेव कृषि विश्वविद्यालय, फैजाबाद की ओर से एक दशक पूर्व सभी केंद्रों में 10-10 लाख की लागत से प्रयोगशालाएं बनाई गईं थी। मृदा विज्ञानियों की नियुक्ति भी की गई, लेकिन उन्होंने कभी भी मिट्टी जांच शुरू कराने की जहमत नहीं उठाई। कमोवेश यही स्थिति कृषि विभाग की लैब की भी है। शासन से बजट न मिलने के कारण दो साल से मृदा परीक्षण का कार्य ठप है। प्रगतिशील किसान अपने खेत की मिट्टी की जांच कराने चाहते हैं तो उनके पास बीएचयू कृषि विज्ञान संस्थान के लैब में सैंपल भेजने के अलावा और कोई विकल्प नहीं। केविके की मृदा जांच प्रयोगशालाओं में मिट्टी में नाइट्रोजन, फास्फोरस, पोटास समेत अन्य पोषक तत्वों की मात्रा जांचने के लिए जरूरी मशीनें लगाई गई हैं। हालांकि सूक्ष्म तत्वों की जांच के लिए मशीनें नहीं हैं। इन वर्षों में मिट्टी जांच को तमाम अभियान चले लेकिन विज्ञानी बीएचयू के भरोसे ही रहे या प्राइवेट संस्थानों में किसानों ने जितनी जेब ढीली की उतनी ही रिपोर्ट प्राप्त कर सके। ऐसा नहीं कि केविके में मृदा विज्ञानियों की नियुक्ति नहीं हुई, लेकिन जिसका तबादला हुआ उसका पद नहीं भरा गया। मिट्टी में घट रहा जीवांश कार्बन

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    दो साल पहले कृषि विभाग की ओर से अभियान चलाकर मिट्टी में पोषक तत्वों की जांच की गई थी। इसमें जीवांश कार्बन की मात्रा दो प्वाइंट ही मिली। सामान्य तौर पर यह आठ होनी चाहिए। पोटाश 125 से 130 किलोग्राम मिली, जो 250 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर होनी चाहिए। सल्फर आठ से नौ पीपीएम (पार्टिकल पर मिलियन) मिल रहा है। इसकी मात्रा कम से कम 15 पीपीएम होनी चाहिए। जिक 1.2 पीपीएम है, जबकि इसकी मात्रा तीन से चार पीपीएम होनी चाहिए। कृषि विभाग को बजट का इंतजार

    उपनिदेशक कृषि दफ्तर में लेबल-2 लैब है। इसमें मिट्टी में सामान्य के साथ ही सूक्ष्म तत्वों की जांच के लिए मशीनें लगाई गई हैं। हालांकि दो साल से लैब ठप पड़ा है। इसके पीछे अहम कारण शासन से बजट न जारी किया जाना है। ऐसे में किसानों को मिट्टी की जांच कराने के लिए भटकना पड़़ रहा। 'समस्या के बारे में उच्चाधिकारियों को अवगत कराया गया है। जल्द ही मृदा विज्ञानी की नियुक्ति होने की उम्मीद है। इसके बाद लैब में मिट्टी जांच की प्रक्रिया शुरू करा दी जाएगी।

    डाक्टर एसपी सिंह, प्रभारी व वरिष्ठ विज्ञानी, कृषि विज्ञान केंद्र