UP के इस जिले में मनरेगा में करा लिए काम, मजदूरी मिल रही न सामान के दाम
बस्ती जिले में मनरेगा के तहत काम करने वाले मजदूरों को मजदूरी का भुगतान समय पर नहीं हो रहा है। पक्के कार्यों में लगे सामान का भी भुगतान बाकी है जिससे मजदूरों और आपूर्तिकर्ताओं को परेशानी हो रही है। अधिकारियों का कहना है कि बजट की कमी के कारण भुगतान में देरी हो रही है लेकिन जल्द ही भुगतान किया जाएगा।

ब्रजेश पांडेय, बस्ती। महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण योजना गारंटी अधिनियम यानी मनरेगा में जाब कार्ड धारकों को न तो मजदूरी मिल रही है और न पक्के कार्यों में लगे सामान के दाम। अधिकारी काम तो करा लिए, लेकिन भुगतान नहीं करा पा रहे। जबकि जाब कार्ड धारकों को सात दिन के भीतर भुगतान करने के नियम हैं। योजना की हालत इतनी खराब है कि पक्के कार्यों का भुगतान डेढ़-दो वर्ष से फंसा है।
मनरेगा अधिनियम में यदि एक सप्ताह के अंदर श्रमिकों के लिए डोंगल नहीं लगा तो विभागीय जुर्माना और दंड का प्रावधान है, लेकिन छह महीने से अधिक समय से भी मजदूरी फंसी हुई है। इस योजना के तहत साठ प्रतिशत कच्चा और चालीस प्रतिशत पक्का कार्य होता है।
श्रमिक दोनों में लगते हैं। हालात तो इतने खराब हैं कि रोजगार सेवक, ग्राम प्रधान और सेक्रेटरी अपने क्षेत्र में श्रमिकों को जवाब नहीं दे पा रहे। उधार में सामग्री देने वाली फर्म भी भुगतान की आस में बैठी हैं, लेकिन बजट न आने के चलते उनका भुगतान नहीं हो पा रहा है। सिर्फ बस्ती जिले में पक्के कार्यों का बकाया 16170 लाख रुपये है। जबकि जाब कार्ड धारकों का 72. 52 लाख की देनदारी फंसी है।
अर्ध कुशल कारीगरों का सात करोड़ छह लाख रुपये बकाया है। यह तो बानगी भर है। पूरे प्रदेश की हालत यही है। सिस्टम ऐसे बनाया गया है कि आन लाइन भुगतान पूरे प्रदेश का एक साथ होता है। वैसे भी मनरेगा मजदूरी शासन ने बाजार दर से बहुत कम 237 रुपये रखा है। बाजार में पांच सौ रुपये से कम में कोई दिहाड़ी मजदूर नहीं मिल रहा। ऐसे में फर्जी रिपोर्टिंग की शिकायतें भी सामने आ जाती हैं।
मिट्टी के कार्य कहीं ट्रैक्टर से हो जाते हैं तो कहीं दस की जगह बीस मस्टररोल भर दिया जाता है। कहीं-कहीं एक दिन कोई जाब कार्ड धारक काम कर लेता है तो उसे दो दिन दिखाया जाता है। ऐसी शिकायतों पर कुछ ग्राम प्रधान और ग्राम सचिवाें पर कार्रवाई भी हो चुकी है, लेकिन सबसे ज्यादा परेशान पक्के कार्यों पर काम करने वाले अकुशल और अर्धकुशल श्रमिकों की है। जो ब्लाक मुख्यालय से लेकर जिला तक भुगतान के लिए चक्कर काट रहे हैं।
मनरेगा द्वारा कराए गए पक्के कार्य का एक वर्ष से धन नहीं मिला है। करीब पांच लाख रुपये सड़क निर्माण का फंसा हुआ है। ब्लाक के अधिकारियों से कहने पर बजट न होने की बात कहते हैं। उधार के बल पर कितना और कब तक कार्य किया जाए। सामान देने वाले फर्म भी रोज पैसे की मांग करते हैं।
-रिचा गोस्वामी, नंदपुर, बस्ती सदर
ग्राम पंचायत के विकास के लिए मनरेगा से दो वर्ष में 30 लाख का कार्य हुआ है। लेकिन अभी तक एक भी रुपये का भुगतान न होने से परेशानी हो रही है। आपूर्तिकर्ता सामान देने से हाथ खड़ा कर दे रहे हैं। पुराना भुगतान न होने से नया कार्य करना मुश्किल हो रहा है।
-धर्मेंद्र चौधरी, प्रधान मसुरिहा, कुदरहा
वर्ष 2023 - 24 तथा 2024-25 का मनरेगा के पक्का कार्यों का भुगतान नहीं हुआ। करीब 55 लाख रुपया गिट्टी, मोरंग, ईंट सीमेंट के आपूर्तिकर्ता का बकाया है। आए दिन वह भुगतान के लिए तगादा करते हैं। हर बार जल्द भुगतान होने का सिर्फ आश्वासन ही देना पड़ता है।
निशा सिंह, प्रधान दैजी, कुदरहा
गांव में 35 लाख रुपये से आरसीसी सड़क और नाली का निर्माण कराए दो वर्ष हो गए। लेकिन इसका भुगतान अभी तक नहीं हो पाया। चुनाव भी करीब आ चुका है। ग्राम पंचायत में कई सड़कों का निर्माण जरूरी है। लेकिन पुराना भुगतान न होने से आगे का कार्य नहीं हो पा रहा है।
-सरिता देवी, जगरनाथपुर, कुदरहा
मनरेगा में भुगतान के लिए शासन स्तर पर पत्राचार किया गया है। जिस हिसाब से आन लाइन बजट आता है, वैसे ही विभागीय डोंगल से भुगतान भी कराया जाता है, जो सीधे संबंधित व्यक्ति के खाते में चला जाता है। जल्द ही बजट आने की उम्मीद है। पहले श्रमिकों को ही भुगतान कराया जाता है, फिर पक्के कार्यों का भुगतान होता है।
रवीश गुप्ता, जिलाधिकारी, बस्ती
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