Trending

    Move to Jagran APP
    pixelcheck
    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    Basti Lok Sabha Chunav Result 2024: बस्ती में अपनों से दूरी के चलते हारे हरीश द्विवेदी, जिनपर जताया था भरोसा उनसे टूट गया था रिश्‍ता

    Updated: Wed, 05 Jun 2024 12:31 PM (IST)

    बस्‍ती में 2014-2019 के चुनाव में जो लोग हरीश से जुड़े थे वह इनकी अनदेखी के चलते नाराज हो गए और धीरे-धीरे दूरी बना ली। टिकट को लेकर भी जिले में कई वरिष्ठ नेताओं की नाराजगी खुलकर सामने आई। पार्टी ने भी कुछ ऐसे फैसले लिए जिससे जिले में भाजपा की टीम कमजोर हुई। हार का एक कारण भाजपा के पूर्व जिलाध्यक्ष दयाशंकर मिश्र का विरोध में आ जाना रहा।

    Hero Image
    बस्‍ती लोकसभा में हरीश द्विवेदी जीत की हैट-ट्रिक से चूक गए। जागरण

     जागरण संवाददाता, बस्ती। अपनों से दूरी के चलते हरीश द्विवेदी को जीत की हैट-ट्रिक लगाने की बजाय हार का सामना करना पड़ा है। जिन्होंने पहले साथ रहकर उनपर भरोसा जताया था, उनसे रिश्ता टूट गया था। चुनाव में वह कहीं साथ नजर नहीं आए। जिन पर हरीश ने आंख मूंद कर भरोसा किया वे लोग समय के साथ कदम से कदम मिलाकर तो चलते रहे, लेकिन उनके दिल में उपजे जख्म पर मरहम लगाने में वह सफल नहीं हो पाए।

    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    यही कारण रहा कि वह बड़े अंतर से चुनाव हार गए। बात शुरू होती है उस दौर से जब राम प्रसाद चौधरी के भतीजे अरविंद चौधरी वर्ष 2009 में बस्ती से सांसद बने। उन पर पूरे पांच वर्ष यह आरोप लगता रहा कि उनका जनता से न कोई सरोकार रहा और न ही उनकी जनता की अपेक्षा के मुताबिक सामाजिक रूप से उपस्थिति हो पाई। लेकिन हरीश द्विवेदी लगातार राजनीतिक व सामाजिक रूप से सक्रिय रहे। जिसका परिणाम था कि वर्ष 2014 के मोदी लहर में जनता ने इन्हें चुनकर संसद में भेज दिया।

    इसे भी पढ़ें-यूपी के दोनों मंडलों में 62 प्रत्याशियों की जमानत जब्त, हाथी की भी नहीं सुनाई दी चिंघाड़

    दूसरी बार भी वह सफल रहे। लेकिन 2014 व 2019 के चुनाव में जो लोग इनसे जुड़े थे वह इनकी अनदेखी के चलते नाराज हो गए और धीरे-धीरे दूरी बना ली। टिकट को लेकर भी जिले में कई वरिष्ठ नेताओं की नाराजगी खुलकर सामने आई। पार्टी ने भी कुछ ऐसे फैसले लिए, जिससे जिले में भाजपा की टीम कमजोर हुई।

    आखिरी दौर में तमाम ऐसे लोगों को पार्टी में शामिल कराया गया, जिनका पार्टी के ही स्तर पर विरोध खुलकर सामने आया। हरीश द्विवेदी कार्यकर्ताओं व समर्थकों को मनाने के साथ दूसरे दलों से आए हुए नेताओं के सहयोग से समीकरण साधने में जुटे रहे, लेकिन वह अंदरखाने में अपने ही खिलाफ बिछाई जा रही बिसात को भांपने में सफल नहीं हो पाए।

    इसे भी पढ़ें-गोरखपुर-बस्‍ती मंडल में निर्दलियों से आगे रहा 'नोटा', छह सीटों पर हैरान करने वाला स्‍थान किया हासिल

    लोग आश्वासन व भरोसा देते रहे। कुछ पूर्व विधायकों व पार्टी के वरिष्ठ पदाधिकारियों ने भी विरोध किया। कुछ मंच पर दिखते थे तो कुछ मंच पर भी किनारा किए रहे। हार का एक कारण भाजपा के पूर्व जिलाध्यक्ष दयाशंकर मिश्र का विरोध में आ जाना रहा।

    पहले तो उन्हें बसपा ने अपना प्रत्याशी बनाया लेकिन नामांकन के अंतिम दिन अचानक उनका टिकट कट गया। दयाशंकर मिश्र ने हरीश पर टिकट कटवाने का आरोप लगवाया। चुनाव प्रचार के दौरान सपा गठबंधन के प्रत्याशी लगातार आरक्षण और संविधान संशोधन को लेकर हमला बोलते रहे, लेकिन इसके जवाब में भाजपा प्रत्याशी समेत बड़े नेताओं ने चुप्पी साध ली, इसके चलते बसपा का बड़ा वोट बैंक सीधे सपा गठबंधन की तरफ शिफ्ट हो गया और भाजपा उन मतदाताओं को समझाने में सफल नहीं हो पाई, जो आरक्षण और संविधान संशोधन को लेकर आशंकित थे।