पूर्वाचल का सबसे लंबा टांडा पुल, बनने में लगा आठ साल
- घाघरा नदी का टांडा पुल तैयार, बस हरी झंडी का इंतजार
- बिना उद्घाटन पुल पर आवागमन रोकने के लिए पुलिस ने संभाला मोर्चा
- पुल बनने से समाज का हर तबका खुश, दो जिलों का होगा विकास
- 2231 मीटर लंबा पुल और एप्रोच बनाने पर खर्च हुआ 1.19 अरब
- नदी का पाट लंबा होने के चलते दो बार बदली पुल की डिजाइन
जागरण संवाददाता, बस्ती : 22 किमी दूर घाघरा नदी का बहुप्रतीक्षित टांडा पुल बनकर तैयार हो गया है। पुल और सड़क यानी पहुंच मार्ग के फिनीशिंग कार्य जोरों पर है। 2231 मीटर लंबे इस पुल को बनाने में आठ साल का वक्त लग गया। यह पूर्वाचल का सबसे लंबा पुल है जो 72 खंभों पर खड़ा किया गया है।
2005 में बस्ती और अंबेडकर नगर के विकास के लिए लाखों लोगों की मांग पर घाघरा नदी पर पुल बनाने की स्वीकृति दी गई। पहले यह पुल 1200 मीटर लंबा बनना था पर यहां नदी के दो तीन पाट होने के चलते विशेषज्ञों ने पुल की डिजाइन पर सवाल खड़े कर दिया। पुल बनने में आठ साल का वक्त लग गया। कई बार बीच में धन के अभाव में पुल का निर्माण कार्य रुक गया। इधर प्रदेश में सपा की सरकार आने के बाद राज्यमंत्री रामकरन आर्य ने लोक निर्माण मंत्री से मिलकर न केवल धन जारी कराया बल्कि कार्य भी तेज हो गया। जनता के दबाव में लोक निर्माण मंत्री ने दो बार खुद ही इसके पूरा होने की समय सीमा तय की। मंत्री की इस सार्वजनिक घोषणा का असर भी हुआ। पुल के साथ ही पहुंच मार्ग का निर्माण कार्य भी तेजी से हुआ। अब जब पुल बनकर तैयार है तो लोग उस पर चलने को उतावले हो गए हैं।
सेतु निगम ने पुल पर फिनिशिंग का कार्य चलने के कारण आवागमन रोकने के लिए दो दिन पहले प्रशासन को पत्र लिख दिया । गुरुवार को पुल के दोनों तरफ पुलिस तैनात कर दी गई। पुल पर अब आवागमन बंद हो गया है। पुल के उद्घाटन के लिए लोक निर्माण मंत्री शिवपाल यादव से समय मांगा गया है। सेतु निगम ने पुल तो बना दिया है लेकिन इसकी निर्माण लागत पुनरीक्षित कर 86 करोड़ 40 लाख कर दिया है।
टांडा पुल का निर्माण वर्ष 2005 में स्वीकृत हुआ तब यह 1200 मीटर लंबा बनना था। वर्ष 2008 में पुल की डिजाइन बदल दी गई और लंबाई बढ़कर 2231 मीटर हो गई। 72 खंभों वाले इस सेतु निर्माण पर 86.40 करोड़ धन व्यय हुआ है। दोनों तरफ एप्रोच मार्ग के निर्माण की लागत 32.80 करोड़ है।
अब हो सकेगी तरक्की
टांडा पुल बनने से लाखों लोगों को सीधा फायदा होगा। दो जिलों का अब तेजी से विकास भी हो सकेगा। पुल बनने से कलवारी और टांडा के आसपास रहने वाले काफी खुश हैं। पेश है लोगों की जुबानी।
कटरी गांव के रहने वाले मंतराम का कहना है कि नदी को पार कर आना जाना बहुत कठिन था। अब न केवल कहीं जाना आसान हो गया है बल्कि खेती और कारोबार का काम भी तेज हो जाएगा।
जैतुआ गंाव के राजेंद्र का कहना है कि खेती के लिए बीज और दवाएं लाने काफी दूरी तय कर बस्ती जानी पड़ी थी अब उनके लिए टांडा का बाजार आसान है।
देवापार गांव की रेखा भारती पुल बनने की खबर से काफी खुश थी ,वह गांव में यह खबर सुनकर तीन किमी की दूरी तय कर पुल देखने आई थी। उसने पुल पर बातचीत में कहा कि हमारे पूर्वजों का सपना साकार हो गया है। इसी तरह से नगर बाजार के उमाकांत और भैरोपुर के वीरेन्द्र कुमार ने भी पुल बनने पर खुशी जताई।
रिश्ते होंगे आसान, होगा विकास
पुल को लेकर युवा, महिला, व्यापारी और किसान तो खुश हैं ही वृद्धों में यह खबर जोश पैदा करने वाली रही। पेश है रपट।
कल्याणपुर, कुदरहा के रहने वाले 65 वर्षीय राजेंद्र प्रसाद का कहना है कि टांडा पुल बनने से अब रिश्ते आसान हो जाएंगे। पहले वह लोग रिश्ते के लिए दूर जाते थे। अब आसपास के जिलों में ही वह रिश्ते बना सकते हैं।
उसी गांव के रहने वाले 70 वर्षीय रामसेवक तो पुल को लेकर भावुक हो गए। उनका कहना था एक बार उनको एक करीबी के घर शोक की खबर मिली पर वह चाहकर नदी पार करके नहीं जा सके। उस समय बरसात का मौसम था और नाव से ही जाने का सहारा था। यहां नदी का पाट काफी चौड़ा है। नदी का नजारा देख कर लोग कांप जाते थे।
बैड़ारी मुस्तकम के रहने वाले 55 वर्षीय राजाराम का कहना था दोनों जिलों के एक हो जाने से न केवल व्यापार आसान हो गया बल्कि लोगों विकास भी तेजी से हो सकेगा।
पूर्वाचल का अब तक का सबसे बड़ा पुल माना जाने वाला टांडा पुल बनकर तैयार है। उद्घाटन की तैयारी चल रही है। वहां फोर्स लगायी गई है।
भूपेंद्र कुमार, परियोजना प्रबंधक राज्य सेतु निगम
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