'वो छोड़के यूं बढ़ा जाता है, जैसे मेरा...', Munawwar Rana के निधन पर भावुक हुए वसीम बरेलवी- पंक्तियों में छलका दर्द
अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त शायर प्रो. वसीम बरेलवी बोले मुनव्वर राणा दुनिया से जल्दी चले गए। सामान्य तौर पर गजल इश्किया इजहार के लिए जानी जाती थी। इससे इतर उन्होंने मां व अन्य रिश्तों को भी गजल के माध्यम से प्रस्तुत किया जोकि यादगार रहेगा। उनकी कलम को भुला पाना किसी के लिए भी संभव नहीं है। उन्होंने दैनिक जागरण से अपना दर्द साझा किया।

जागरण संवाददाता, बरेली। शायर मुनव्वर राणा के निधन पर प्रो. वसीम बरेलवी भावुक हो गए। रविवार रात उन्होंने दैनिक जागरण से अपना दर्द साझा किया। फोन पर कहा कि मुनव्वर राणा के साथ दर्जनों बार मंच साझा किया। हर बार उनके स्नेह को महसूस किया। वो देर से मंच पर आए मगर, अमिट छाप छोड़ी। उनके जाने से उर्दू-साहित्य का बड़ा नुकसान हुआ है। उन्हें याद करते हुए बोले- 'वो मुझे छोड़के यूं आगे बढ़ा जाता है, जैसे अब मेरा सफर खत्म हुआ जाता है।'
'उनकी कलम को भुला पाना संभव नहीं'
अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त शायर प्रो. वसीम बरेलवी बोले, मुनव्वर राणा दुनिया से जल्दी चले गए। सामान्य तौर पर गजल इश्किया इजहार के लिए जानी जाती थी। इससे इतर उन्होंने मां व अन्य रिश्तों को भी गजल के माध्यम से प्रस्तुत किया, जोकि यादगार रहेगा। उनकी कलम को भुला पाना किसी के लिए भी संभव नहीं है।
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मुनव्वर राणा के शहर आगमन का संस्करण सुनाते हुए उन्होंने कहा कि कुछ वर्ष पहले वह यहां आए थे। हम दोनों लोग टहलते हुए कचहरी के पास पान की दुकान तलाश रहे थे। कुछ दूर जाकर दुकान मिली, मुन्नवर राणा पान खाकर रुपये देने लगे। उन्हें ऐसा करता देख मैंने रोका तो उन्होंने तुरंत सुधार किया। कहने लगे, माफ करिए, इस शहर में तो आपका सिक्का चलता है। वो गंभीर बात को भी बड़े सहज शब्दों में कह जाते थे। शहर में उनका कई बार आना हुआ। देश के अन्य हिस्सों और विदेश में भी उनके साथ मंच साझा किए, जोकि यादगार बने रहेंगे।
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