बरेली मंडल में 72,800 मृदा नमूनों की जांच: क्यों कम हो रहा है खेतों का 'सोना'? पूरी रिपोर्ट और समाधान
72,800 मिट्टी नमूनों की जांच में खुलासा: बरेली के खेतों में नाइट्रोजन और कार्बन न्यूनतम। तुरंत कार्रवाई ज़रूरी! फसलों के अवशेष न जलाएं और दलहनी फसलें उगाकर ज़मीन की उर्वरा शक्ति लौटाएं। खेती की लागत कम करने के लिए महत्वपूर्ण जानकारी।
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प्रतीकात्मक चित्र
कमलेश शर्मा, जागरण बरेली। किसान की खून पसीने से धरती अन्न के रूप में सोना उगलती आ रही है। अंधाधुंध रासायनिक उर्वरकों का उपयोग और लगातार खेतों में फसल उगाने से पोषक तत्वों में कमी आ गई है। इसका असर उत्पादन पर भी पड़ रहा है। मंडल में 72,800 मृदा नमूनों की प्रयोगशाला में कराई गई जांच में नाइट्रोजन और जीवांश कार्बन की मात्रा आवश्यकता से कम पाई गई है।
फास्फोरस, जिंक, सल्फर, मैग्नीज, बोरान और पोटाश की मात्रा सामान्य मिली है। किसानों को सुझाव दिए गए हैं कि भूमि की उर्वरा शक्ति बढ़ाने के उपाय करें, तभी लागत में कमी आएगी और उत्पादन में वृद्धि हो सकेगी। बरेली के 21,000, पीलीभीत के 9,800, शाहजहांपुर के 21,000 और बदायूं के 21,000 मृदा नमूनों की प्रयोगशाला में दो स्तर पर जांच कराकर विश्लेषण किया गया है।
परीक्षण में पाया गया कि मंडल के चारों जिलों के खेतों में नाइट्रोजन और जीवांश कार्बन की मात्रा न्यूनतम हो चुकी है। फसलों को भूमि से यह पोषक तत्व नहीं मिल पा रहे हैं। इनकी पूर्ति के लिए उर्वरक अनिवार्य हो गया है। इससे खेती की लागत बढ़ रही है। उर्वरक का उपयोग नहीं किए जाने पर उपज नहीं मिल पा रही है। फास्फोरस और पोटाश की मात्रा में भी कमी आई है, लेकिन स्थिति अभी मध्यम बनी हुई है।
समय रहते किसान सचेत नहीं हुए तो इनकी मात्रा भी न्यून हो सकती है। हालांकि पीएच ईसी, आयरन, मैग्नीज, जिंक, सल्फर, बोरान और कापर की स्थिति सामान्य है। मृदा परीक्षण कराकर विश्लेषण के आधार पर किसानों को मृदा कार्ड उपलब्ध कराए जा रहे हैं। पोषक तत्वों की उपलब्धता के अनुरूप उर्वरकों का उपयोग करने के सुझाव दिए जा रहे हैं।
गर्मी में ढैंचा उगाएं, दलहनी फसलों की करें खेती
उप निदेशक भूमि संरक्षण नरेंद्र कुमार ने किसानों को सुझाव दिया है कि भूमि की उर्वरा शक्ति बढ़ाने के लिए खेतों में अवशेष न जलाएं। इससे पोषक तत्व नष्ट हो जाते हैं। धान की कटाई के बाद पलेवा करके यूरिया का छिड़काव कर अवशेष को उसी में पलट दें। गर्मी में खेत खाली होने पर उसमें ढैंचा उगाएं और खेत में हरी खाद की जोताई करा दें।
दलहनी फसल उगाएं, इनकी जड़ें वायुमंडल से नाइट्रोजन अवशोषित कर लेती हैं। उड़द, मूंग की फली तोड़ने के बाद फसल को खेत में पलट दें। इन्हीं तरीकों से खेतों की उपजाऊ क्षमता बनी रहेगी। खेती की लागत कम आएगी और उत्पादन अधिक मिल सकेगा।
मृदा नमूनों को दो स्तर पर परीक्षण कर जिलावार निष्कर्ष निकाल लिया गया है। अब ब्लाकवार रिपोर्ट तैयार की जा रही है ताकि किसानों को सटीक जानकारी मिल सके। उसी अनुरूप फसल का उत्पादन और उर्वरक का उपयोग करने से लागत में कमी आएगी और उत्पादकता में वृद्धि होगी।इसके लिए सभी किसानों को मृदा कार्ड उपलब्ध कराए जा रहे हैं।
- दुर्विजय सिंह, संयुक्त कृषि निदेशक
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