बरेली : कौन पी रहा है एफेरेसिस मशीन का 'खून'? ड्रग विभाग क्यों नहीं कर रहा सर्वे, अधिकारी मौन
यह मशीन एक डोनर से सीधे 40-50 हजार प्लेटलेट्स निकाल सकती है, जो मौजूदा तरीके से 5 गुना है। इससे स्टॉक करने और प्लेटलेट्स खराब होने की समस्या खत्म होगी। लेकिन ड्रग निरीक्षकों के सर्वे न करने से यह सुविधा एक साल से शुरू नहीं हुई।
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बरेली जिला अस्पताल
अनूप गुप्ता, जागरण, बरेली। प्लेटलेट्स की कमी को तेजी से पूरा करने वाली एफेरेसिस मशीन का खून सरकारी सिस्टम पी रहा है। वजह, स्वास्थ्य विभाग ने लाखों रुपये से मशीन मंगवाकर जिला अस्पताल में लगवा तो दी लेकिन सालभर से उसके लाइसेंस की प्रक्रिया ही पूरी नहीं हो पा रही है। इस मशीन को चालू कराने के लिए केंद्र, राज्य के साथ स्थानीय स्तर पर ड्रग विभाग की टीम को संयुक्त रूप से सर्वे करना है। इसके बाद शासन से इसका लाइसेंस जारी किया जाना है।
इसके लिए स्वास्थ्य विभाग कई बार रिमांइडर भी जारी कर चुका है लेकिन ड्रग विभाग की संयुक्त टीम सर्वे करने अब तक नहीं पहुंची है। ऐसे में जरूरतमंद मरीज और उनके तीमारदारों को प्लेटलेट्स की कमी पूरा करने के लिए काफी दिक्कत झेलनी पड़ रही है। डेंगू या अन्य किसी संक्रमण की चपेट में आने वाले मरीजों की अगर प्लेटलेट्स अगर तेजी से नीचे गिरती है तो उन्हें इसकी कमी को तत्काल पूरा करने की जरूरत होती है।
जिला अस्पताल के ब्लड बैंक में अभी यह व्यवस्था है कि डोनर के खून से प्लेटलेट्स के साथ प्लाजमा भी निकलना पड़ता है। इसके अलावा बड़ी दिक्कत यह भी है कि एक डोनर से अभी सात से 10 हजार तक ही प्लेटलेट्स निकाली जा सकती है, लेकिन अगर किसी मरीज को इससे ज्यादा की जरूरत न पड़ जाए, इसे देखते हुए इमरजेंसी के लिए कई यूनिट अतिरिक्त खून लेकर उससे ज्यादा संख्या में प्लेटलेट्स एकत्र कर रख ली जाती है।
ब्लड बैंक के यूपी सिंह ने बताया कि ऐसे में दिक्कत ये होती है कि अगर अधिक मात्रा में प्लेटलेट्स को निकालकर उसे स्टाक में रख भी लिया जाए और चार से पांच दिन में उसके इस्तेमाल करने की जरूरत न पड़े तो वह खराब भी हो जाता है। ऐसे में हर साल प्लेटलेट्स के खराब होने की मात्रा काफी रहती है।
इधर, इस दिक्कत को देखते हुए स्वास्थ्य विभाग ने करीब सालभर पहले लगभग 20 लाख रुपये की कीमत वाली मशीन मंगवाकर ब्लड बैंक में रखवाई थी। इसकी खासियत यह है कि इस मशीन के जरिये डोनर से सीधे 40 से 50 हजार तक प्लेटलेट्स निकाली जा सकती है। ऐसे में प्लेटलेट्स को स्टाक कर रखने की जरूरत भी न होने से इसके खराब होने की आशंका भी नहीं रहती।
इन्हीं खूबियों की वजह से इस महंगी को खरीदा गया गया लेकिन तकरीबन सालभर का समय हो गया है लेकिन केंद्र, राज्य के साथ स्थानीय ड्रग निरीक्षकों की संयुक्त टीम इसका सर्वे करने के लिए ही नहीं आई है। स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों की ओर से इसके लिए कई बार रिमाइंडर भी भेजे जा चुके हैं लेकिन इसका कोई असर अब तक नहीं पड़ा है।
ऐसे में शासन स्तर से इस मशीन को संचालित करने के लिए लाइसेंस की प्रक्रिया भी पूरी नहीं हो पा रही है। ऐसे में मरीजोंं को इसका फायदा भी नहीं मिल पा रहा है।
डेंगू के साथ लिवर रोगियों की कम रहतीं प्लेटलेट्स
डेंगू सहित वायरल बुखार और मलेरिया में प्लेटलेट्स काउंट कम होने से तीमारदार परेशान होने लगते हैं। जबकि यह सामान्य प्रक्रिया है, वैसे भी हर घंटे प्लेटलेट काउंट बदलते हैं। बुखार के मरीजों में 10 दिन में काउंट सामान्य हो जाते हैं। वहीं अल्कोहल का सेवन करने वाले और लिवर सिरोसिस के मरीजों में प्लेटलेट काउंट कई माह तक 50 से 60 हजार के बीच में रहते हैं। स्वास्थ्य विभाग इस बार थोड़ी राहत में इसलिए रहा कि क्योंकि इस वर्ष डेंगू के मरीजों की संख्या कम रही।
20 से 30 हजार भी है प्लेटलेट्स तो भी घबराने की जरूरत नहीं
जिला अस्पताल के वरिष्ठ फिजिशियन डा. हरपाल सिंह बताते है कि एक स्वस्थ इंसान में डेढ़ से चार लाख तक प्लेटलेट्स होती हैं लेकिन अगर किसी को किसी बीमारी ने जकड़ लिया है और काउंट में उसकी प्लेटलेट्स 20 हजार तक भी हैं तो उसे कोई परेशानी नहीं होती है। रक्तस्राव होने की स्थिति 10 हजार के नीचे पैदा होती है। वह बताते हैं कि एक यूनिट में 350 यूनिट ब्लड होता है। डोनर से यह खून लेने के बाद उसमें प्लेटलेट्स के साथ उसमें प्लाजमा और आरबीसी को भी अलग कर दिया जाता है। जिस मरीज को जो जरूरत पड़ती है, उसे वह उपलब्ध करा दिया जाता है।
प्लेटलेट्स को अधिक और तेजी से चढ़ाने के लिए स्वास्थ्य विभाग ने जो मशीन मंगवाई थी, उसे ब्लक बैंक में स्थापित तो कर दिया गया है लेकिन उसके लिए सेंट्रल व स्टेट के साथ लोकल ड्रग विभाग के निरीक्षकों की टीम को इसका सर्वे कर रिपोर्ट देनी है। उसके बाद ही इसका सर्वे होना है लेकिन दिक्कत ये आ रही है कि कई बार रिमांडर भेजने के बाद टीम सर्वे करने के लिए नहीं आ रही है। इससे यह मशीन भी चालू नहीं हो पा रही है।
- डा. एके दिनकर, प्रभारी, ब्लड बैंक, जिला अस्पताल
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