Trending

    Move to Jagran APP
    pixelcheck
    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    पत्नी की ये 3 जिदें बनी तलाक का कारण: कोर्ट ने पूछा- बच्चों को क्या सिखाएगी ये शिक्षिका?

    Updated: Fri, 05 Dec 2025 03:00 AM (IST)

    शिक्षित होने के बावजूद संयुक्त परिवार से दूर रहने की जिद और सुहाग चिन्ह न पहनने पर कोर्ट ने महिला शिक्षिका का तलाक मंजूर कर लिया। अपर प्रधान न्यायाधीश ...और पढ़ें

    Hero Image

    प्रतीकात्‍मक च‍ित्र

    जागरण संवाददाता, बरेली। एमए बीएड टीईटी प्रशिक्षित एक महिला ने अपने वैवाहिक जीवन को सुखमय बनाने के लिए पति के संयुक्त परिवार से दूरी बना ली। चार साल तक ससुराल से दूर रही। पति ने काफी प्रयास किया लेकिन वादी के ससुर ने शर्त रख दी कि या तो वह अलग मकान खरीदे या फिर मकान की ऊपरी मंजिल पर रहने लगे। जब तक ऐसा नहीं करेगा तब तक उनकी बेटी ससुराल नहीं जाएगी। अदालत ने इसे घोर आपत्तिजनक माना और पति की तरफ से दायर तलाक का दावा मंजूर कर लिया।

    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    विवाहिता का पैतृक निवास कस्बा फरीदपुर है, जबकि पति बदायूं रोड स्थित एक कालोनी का निवासी है। दोनों का विवाह वर्ष 2019 में हुआ था। वादी मां-बाप का एकलौता पुत्र है। उनके पिता की उम्र 64 साल और मां की उम्र 50 वर्ष है। उनके साथ एक अविवाहित बहन भी रहती है। विवाहिता को संयुक्त परिवार से समस्या थी। इसलिए उसने शर्त रखी कि वह तभी ससुराल जाएगी जब उसे एकांतवास का अवसर मिले।

    वादी ने अपने दावे के समर्थन में पति-पत्नी के बीच हुई चैटिंग को भी अदालत में रखा। जिसमें महिला की तरफ से अपनी बहन को लिखा गया कि उसे नौकरी मिल गई है, अब उसे घर के काम से छुटकारा मिल जाएगा। पति-पत्नी के बीच चैटिंग में पत्नी ने कहा था कि वह क्या चाहते हैं कि वह संयुक्त परिवार में उनकी गुलाम बन कर रहे। जिससे सिद्ध हुआ कि महिला को संयुक्त परिवार से चिढ़ है।

    वादी ने प्रतिवादिनी के फोटोग्राफ भी पेश किए। जिसमें पत्नी कोई भी सुहाग चिन्ह धारण नहीं किए है। सुहाग संबंधी मंगलसूत्र, सिंदूर, बिछिया आदि भी नहीं पहने। शादी के एक वर्ष बाद उसने दांपत्य सुख से भी पति को वंचित रखा। अपर प्रधान न्यायाधीश ज्ञानेंद्र त्रिपाठी ने पति का तलाक का दावा मंजूर कर लिया।

    कोर्ट ने अपने आदेश में उल्लेख किया कि विवाहिता प्राथमिक विद्यालय में शिक्षिका है। पारिवारिक मूल्यों से अनभिज्ञ एक महिला छात्रों को कैसे संस्कार प्रदान करती होगी सहज अनुमान लगाया जा सकता है। अदालत ने विवाहिता के पिता को भी कड़ी फटकार लगाते हुए उल्लेख किया कि जब वृक्ष ही दूषित हो तो फल को दोष दिया जाना उचित नहीं है।

    पिता ने बेटी को समझाने के बजाय पुत्री को संयुक्त परिवार से अलग रहने की शर्त रख दी। वर्तमान में परंपरागत संयुक्त परिवार को व्यक्तिगत स्वतंत्रता में अवरोध माना जाने लगा है। जो भारतीय समाज के लिए चिंता का विषय है। पारिवारिक मूल्य के संरक्षण के लिए विधायिका को भी इस और ध्यान आकर्षित करना चाहिए।

     

    एकाकी जीवन यापन करने की इच्छा रखने वाली लड़कियों को किसी ऐसे लड़के से शादी करना चाहिए जिसके मां-बाप भाई बहन जीवित न हों। उन्हें अपने बायोडाटा में स्पष्ट लिख देना चाहिए। ताकि संयुक्त परिवार से संबद्ध एक युवक को उसके माता-पिता, बहन व भाई से अलग रहने की नौबत ना आए। इस मामले में विवाहिता की तरफ से वैवाहिक जीवन के प्रति उपेक्षा और उदासीनता बरती गई है। विवाहिता के पिता ने नहीं सोचा कि उसका भी एकमात्र पुत्र है उनके घर भी बहू आएगी। उन्हें अपनी पुत्री का सुख सास ससुर से पृथक प्रवास में ही दिखता है। पति को उसके मां-बाप से अलग रहने हेतु दबाव बनाने का कुत्सित प्रयास किया गया जो घोर आपत्तिजनक और निंदनीय है। कानून का सरासर दुरुपयोग व उनका भय दिखाकर ऐसा किया गया है। ज्यादातर मुकदमों में इस तरह का प्रचलन बढ़ रहा है, जो चिंता का विषय है।

    - ज्ञानेंद्र त्रिपाठी, अपर प्रधान न्यायाधीश, परिवार न्यायालय, बरेली


    यह भी पढ़ें- बुलडोजर एक्शन पर 'सुप्रीम' ब्रेक! आजम खान के करीबी के बरातघर ध्वस्तीकरण पर SC का स्टे, 10 दिसंबर तक राहत