'कारवाँ बनता गया': एक अकेले छात्र की प्रेरणा से शुरू हुआ बरेली को स्वच्छ बनाने का मिशन
बरेली में एक छात्र ने अकेले ही शहर को स्वच्छ बनाने का मिशन शुरू किया। धीरे-धीरे अन्य लोग भी उससे जुड़ते गए और यह एक बड़े आंदोलन में बदल गया। स्थानीय लोगों की भागीदारी से बरेली में स्वच्छता के स्तर में काफी सुधार हुआ है। यह अभियान आज भी जारी है और शहर को स्वच्छ रखने के लिए प्रयासरत है।
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कूड़ा उठाते शहर के युवा
हिमांशु अग्निहोत्री, बरेली। मैं अकेला ही चला था जानिब-ए-मंजिल, मगर लोग साथ आते गए और कारवां बनता गया... मजरूह सुल्तानपुरी की यह पंक्ति स्वच्छता का संदेश देने वाले युवाओं पर एकदम फिट बैठती है। इंटरनेट मीडिया के दौर में जहां यूजर्स के लिए तमाम तरह का कंटेंट परोसा जा रहा है, जिसमें मनोरंजन से लेकर अश्लीलता तक सब शामिल है।
इससे इतर शहर के कुछ युवा अपने शहर के लिए सिर्फ दो घंटे निकालने का संदेश दे रहे हैं, साथ ही वे प्रत्येक रविवार शहर की सड़कों और धर्म स्थलों के आसपास से कचरा भी एकत्रित करते है। जन सरोकार की पहल से प्रभावित होकर लोग इस कारवां में जुड़ने लगे हैं। इन युवाओं का मानना है कि जब दूसरे शहर साफ हो सकते हैं तो अपना शहर क्यों नहीं।
शहर में क्लीनअप बरेली अभियान की शुरुआत करने वाले इज्जतनगर के आलोक नगर निवासी 23 साल के भावेश सिंह नेे दिल्ली विश्वविद्यालय से बिजनेस इकोनामिक्स में स्नातक किया है। उन्होंने बताया, वह दोस्तों संग इस वर्ष की शुरुआत में जूनागढ़ घूमने गए थे। वहां की स्वच्छता ने काफी प्रभावित किया।
इस दौरान देखा कि कई युवा हाथों में दस्ताने और मुंह पर मास्क लगाकर धर्मस्थल और पर्यटन स्थलों की सफाई गर्व के साथ कर रहे थे। मानो उन्हें इस काम में आनंद आ रहा हो। वहां से प्रेरणा मिली कि अगर ये कर सकते हैं तो हम भी अपने बरेली को स्वच्छ रख सकते हैं। इसके बाद वापस गुरुग्राम गया, जहां नौकरी के दौरान देखा कि शहर में कूड़े के पहाड़ बन रहे हैं। यह सब काफी विचलित करने वाला रहा।
पहले हुआ विरोध, अब जुड़ने लगे लोग
भावेश ने बताया, वर्क फ्राम होम के दौरान मार्च में शहर में अकेले सफाई करना शुरू किया। रविवार को दो घंटे स्वच्छता को दिए। इंटरनेट मीडिया के माध्यम से नवादा शेखान निवासी हमउम्र शिवम शर्मा से बात हुई। इसके बाद क्लीनअप बरेली नाम से पेज बनाया, जिस पर साफ-सफाई के वीडियो डालने शुरू किए।
शुरुआत में लोगों ने कहा, यह नगर निगम का काम है। तुम क्यों कर रहे हो? रिश्तेदारों ने भी ऐसे काम के लिए मनाही की, लेकिन धीरे-धीरे लोग जुड़ने लगे। अब 20 से 25 युवाओं की टीम बन चुकी है, जो रविवार को दो घंटे अपने शहर के लिए निकालती है। इसके लिए गंदे स्थानों के बारे में इंस्टाग्राम पर लोगों से सुझाव भी लिया जाता है।
हम तो अच्छा काम कर रहे हैं...
शिवम ने बताया, सबसे पहले स्वच्छता की शुरुआत धर्मस्थल से की, जहां कैलेंडर, मूर्तियां व पूजा सामग्री मिलती थी। लोग खंडित प्रतिमाओं को फेंक देते हैं, जबकि ऐसा नहीं करना चाहिए। अब पार्क या सार्वजनिक स्थलों की सफाई भी कर रहे हैं, जहां से नगर निगम को कचरा दे देते हैं। प्रतिमाओं का विसर्जन कर देते हैं। टीम से जुड़े प्रेम गंगवार ने कहा, 'सार्वजनिक स्थानों पर कचरा फेंकने वाले गलत काम कर रहे हैं, हम तो अच्छा काम कर रहे हैं'।

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