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    दर्दनाक दूरी: 500 मीटर के जाम में तड़प रहे मरीज, कोतवाली से जिला अस्पताल का रास्ता बना 'मौत का फासला'

    Updated: Wed, 26 Nov 2025 07:00 AM (IST)

    बरेली जिला अस्पताल रोड पर अतिक्रमण के चलते 500 मीटर की दूरी एंबुलेंस में 15 मिनट से ज़्यादा लग रही है, जिससे गंभीर मरीजों और प्रसव पीड़ा वाली महिलाओं की जान खतरे में है। 3 मिनट का रास्ता जानलेवा फासला बन गया है। प्रशासन की अनदेखी से गहराया स्वास्थ्य संकट।

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    मुख्‍य बाजार के बीच से नि‍कलती एंबुलेंस

    जागरण संवाददाता, बरेली। कोतवाली के पास से जिला अस्पताल तक का महज तीन मिनट का रास्ता एंबुलेंस में तड़पते मरीजों को मीलों से कम नहीं लग रहा। वजह, करीब 500 मीटर का यह लगभग रास्ता फुटपाथ और ठेले वालों के साथ पक्की दुकान वालों के कब्जे में है। एक मात्र यही मुख्य रोड जिला और महिला अस्पताल के लिए है।

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    ऐसे में यहां से हर दिन गुजरने वालीं 30 से 40 छोटी-बड़ी एंबुलेंस किसी तरह से जाम में फंसते-बचते हुए मरीजों को अस्पताल पहुंचा पा रहीं हैं। ऐसे में कई बार गर्भवतियों या गंभीर हालत के मरीजों की जान तक आफत में आ जाती है। इसे लेकर कई बार स्वास्थ्य विभाग के अधिकारी इसे लेकर पुलिस-प्रशासन के अधिकारियों को लिखा-पढ़ी की है, लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई। इसे लेकर एक बार फिर से पत्राचार किया गया है।

    जिला और महिला अस्पताल में हर दिन सैकड़ों मरीज सामान्य रोगों की ओपीडी के साथ बड़ी बीमारियों का इलाज कराने के लिए आते हैं। इसके अलावा गर्भवती महिलाओं, नवजात शिशुओं या हादसे में घायल वालों के फौरी इलाज के लिए भी यहां आने वालों की काफी संख्या है। इसके लिए गंभीर मरीजों के लिए सरकारी एंबुलेंस सेवा तो है लेकिन उन्हें कोतवाली से जिला अस्पताल के बीच करीब 500 मीटर के महज तीन मिनट के फासले को पूरा करने में 15 तो कभी-कभी इससे भी ज्यादा समय लग जाता है।

    कारण यह है कि सरकारी अस्पताल एक तो बीच बाजार में है। रही-सही कसर यहां फुटपाथ-ठेले वालों के साथ पक्की दुकान वालों के कब्जों ने पूरा कर दी है। यहां दिन में अक्सर लंबा जाम लगा रहा है। छोटी-बड़ी एंबुलेंस गाड़ियां तो दूर बाइक से निकलना तक दूभर हो जाता है। दिक्कत उस वक्त ज्यादा होती है, जब एबुलेंस में सवार मरीज की जान बचाने के लिए एक-एक पह बेहद कीमती होता है।

    हार्टअटैक, प्रसव पीड़ा से तड़पती महिलाएं, किसी हादसे में गंभीर रूप से घायल या अन्य किसी आपातकालीन स्थिति से गुजर रहे मरीज की हालत तब और ज्यादा खराब होने की आंशका रहती है, जब उसे ले जा रही एंबुलेंस जाम में फंसी रहती है, जिससे काफी समय बर्बाद हो जाता है। मरीजों के प्रति जिम्मेदार अधिकारियों की ऐसी संवेदनहीनता लोगों में नाराजगी का कारण भी बनी हुई है।

    इस मौसम में ज्यादा ही खराब हो जाती हालत

    इस रोड पर ज्यादातर कपड़े की दुकानें ही है। पास में इंदिरा बाजार भी पूरा कपड़ों का ही बाजार है। इस समय सर्दी बढ़ रही है, इसलिए स्वेटर, शाल सहित अन्य गर्म कपड़ों की बिक्री काफी बढ़ गई है। इसलिए यहां सस्ते कपड़ों की बिक्री करने वाले फुटपाथ और ठेले वालों का भी खूब जमावड़ा लग रहा है। मनमानी यह है कि वे आधी से भी ज्यादा सड़क पर दुकानें लगाए रहते हैं। पक्की दुकान वाले भी कब्जे करने में पीछे नहीं है। अस्पताल गेट के पास तक भी खोमचे वाले भी खड़े रहते हैं। मरीजों को लेकर उनकी अनदेखी तो हर दिन नजर ही आती है, सरकारी सिस्टम भी कोई कार्रवाई नहीं करता।

    दिव्यांगों को भी हर हफ्ते झेलनी पड़ रही परेशानी

    जिला अस्पताल में ही सीएमओ कार्यालय की ओर दूसरा गेट बंद रहता है। कारण ये है कि वह गेट खुले जाते बाहरी लोग बाइक-स्कूटी खड़ी करके चले जाते है। इसलिए मेन गेट ही आने-जाने का एकमात्र रास्ता है। चूंकि रह सोमवार को सीएमओ दफ्तर के पास ही दिव्यांग प्रमाणपत्र बनवाने के लिए कैंप लगता है। ऐसे में चल-फिर पाने में अक्षम या व्हीलचेयर से आने वाले तमाम दिव्यांगों को भी इसी जाम से होकर निकलना पड़ रहा है। हालांकि अस्पताल प्रशासन ने कैंप के पास ही अब हर सोमवार को दूसरे गेट को खुलवाने की व्यवस्था कर दी है।

    जिलेभर में चल रहीं 84 सरकारी एंबुलेंस

    मरीजों को सरकारी अस्पतालों तक पहुंचाने के लिए जिलेभर में 86 सरकारी एंबुलेंस दौड़ लगा रही है। इन गाड़ियां सभी 16 सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों पर भी लगाई गई है। इसका उद्देश्य तोयही है कि मरीजों को जल्द से जल्द अस्पताल पहुंचाया जा सके। 108 एंबुलेंस सेवा के मीडिया प्रभारी सुनील यादव ने बताया कि गर्भवती महिला या नवजात शिशु के तत्काल इलाज की जरूरत के लिए कोई भी 102 नंबर डायल कर सकता है, जबकि अन्य के लिए 108 नंबर सेवा उपलब्ध है।

     

    जाम लगने की वजह से मरीज को एंबुलेंस से अस्पताल तक आने में काफी देरी होती है। इस संबंध में कई बार नगर निगम व पुलिस-प्रशासन के अधिकारियों को पत्राचार भी किया जा चुका है, लेकिन इसका कोई स्थायी समाधान नहीं निकल पा रहा है।

    - डा. अजय मोहन अग्रवाल, एडीएसआइसी, जिला अस्पताल


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